अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 3
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - साम्नी भुरिग्बृहती
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
नि॒धनं॒ भूत्याः॑ प्र॒जायाः॑ पशू॒नां भ॑वति॒ य ए॒वं वेद॑ ॥
स्वर सहित पद पाठनि॒ऽधन॑म् । भूत्या॑: । प्र॒ऽजाया॑: । प॒शू॒नाम् । भ॒व॒ति॒ । य: । ए॒वम् । वेद॑ ॥१०.३॥
स्वर रहित मन्त्र
निधनं भूत्याः प्रजायाः पशूनां भवति य एवं वेद ॥
स्वर रहित पद पाठनिऽधनम् । भूत्या: । प्रऽजाया: । पशूनाम् । भवति । य: । एवम् । वेद ॥१०.३॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6;
पर्यायः » 5;
मन्त्र » 3
विषय - भूति, प्रजा, पशु
पदार्थ -
१. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार अतिथियज्ञ के महत्त्व को समझता है, (तस्मै) = उसके लिए (उषा) = उषा (हिङ्कृणोति) = आनन्द का सन्देश देती है, (सविता प्रस्तौति) = सूर्य विशेष प्रशंसा करता है, (बृहस्पति:) = प्राण (ऊर्जया उद्गायति) = बल के साथ उसके गुणों का गान करता है, (त्वष्टा पुष्टया प्रतिहरति) = त्वष्टा उसे पुष्टि प्रदान करता है, (विश्वे देवा निधनम्) = अन्य सब देव उसे आश्रय प्रदान करते हैं, अतः वह (भूत्या: प्रजायाः पशूनाम्) = सम्पत्ति, प्रजा व पशुओं का (निधनं भवति) = आश्रयस्थान बनता है।
भावार्थ -
अतिथि सत्कार करनेवाला सम्पत्ति, प्रजा व पशुओं का आश्रयस्थान बनता है।
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