अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 1
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
तस्मा॑ उ॒षा हिङ्कृ॑णोति सवि॒ता प्र स्तौ॑ति।
स्वर सहित पद पाठतस्मै॑ । उ॒षा: । हिङ् । कृ॒णो॒ति॒ । स॒वि॒ता । प्र । स्तौ॒ति॒ ॥१०.१॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्मा उषा हिङ्कृणोति सविता प्र स्तौति।
स्वर रहित पद पाठतस्मै । उषा: । हिङ् । कृणोति । सविता । प्र । स्तौति ॥१०.१॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6;
पर्यायः » 5;
मन्त्र » 1
विषय - भूति, प्रजा, पशु
पदार्थ -
१. (यः एवं वेद) = जो इसप्रकार अतिथियज्ञ के महत्त्व को समझता है, (तस्मै) = उसके लिए (उषा) = उषा (हिङ्कृणोति) = आनन्द का सन्देश देती है, (सविता प्रस्तौति) = सूर्य विशेष प्रशंसा करता है, (बृहस्पति:) = प्राण (ऊर्जया उद्गायति) = बल के साथ उसके गुणों का गान करता है, (त्वष्टा पुष्टया प्रतिहरति) = त्वष्टा उसे पुष्टि प्रदान करता है, (विश्वे देवा निधनम्) = अन्य सब देव उसे आश्रय प्रदान करते हैं, अतः वह (भूत्या: प्रजायाः पशूनाम्) = सम्पत्ति, प्रजा व पशुओं का (निधनं भवति) = आश्रयस्थान बनता है।
भावार्थ -
अतिथि सत्कार करनेवाला सम्पत्ति, प्रजा व पशुओं का आश्रयस्थान बनता है।
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