अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 6/ मन्त्र 8
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अतिथिः, विद्या
छन्दः - त्रिपदा विराडनुष्टुप्
सूक्तम् - अतिथि सत्कार
अति॑थी॒न्प्रति॑ पश्यति हिङ्कृणोत्य॒भि व॑दति॒ प्र स्तौत्यु॑द॒कं याच॒त्युद्गा॑यति।
स्वर सहित पद पाठअति॑थीन् । प्रति॑ । प॒श्य॒ति॒ । हिङ् । कृ॒णो॒ति॒ । अ॒भि । व॒द॒ति॒ । प्र । स्तौ॒ति॒ । उ॒द॒कम् । या॒च॒ति॒ । उत् । गा॒य॒ति॒ ॥१०.८॥
स्वर रहित मन्त्र
अतिथीन्प्रति पश्यति हिङ्कृणोत्यभि वदति प्र स्तौत्युदकं याचत्युद्गायति।
स्वर रहित पद पाठअतिथीन् । प्रति । पश्यति । हिङ् । कृणोति । अभि । वदति । प्र । स्तौति । उदकम् । याचति । उत् । गायति ॥१०.८॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 6;
पर्यायः » 5;
मन्त्र » 8
विषय - अतिथियज्ञ, सामगान
पदार्थ -
१. जब यह अतिथि-सत्कार करनेवाला (अतिथीन् प्रतिपश्यति) = अतिथियों का दर्शन करता है, तब मानो (हिड्कृणोति) = सामगान का हिंकार करता है, (अभिवदति) = जब अभिवादन करता है तब मानो (प्रस्तौति) = स्तुति करता है। (उदकं याचति) = अतिथि के लिए उदक माँगता है तो (उदायति) = उद्गान करता है। (उपहरति) = जब उसके सामने खाद्य पदार्थ रखता है तब (प्रतिहरति) = प्रतिहार करता है-'प्रतिहर्ता' का कार्य करता है, (उच्छिष्टम् निधनम्) = उसके भोजन कर चुकने पर जो शेष भोजन बचता है, वह निधन है-यज्ञ का अन्तिम प्रसाद है। २. (एवम्) = इसप्रकार आतिथ्य के महत्त्व को (यः वेद) = जो जानता है, वह (भूत्याः प्रजायाः पशूनाम्) = सम्पत्ति, प्रजा व पशुओं का (निधनम्) = आश्रय (भवति) = होता है।
भावार्थ -
अतिथियज्ञ करनेवाला सामगान करता हुआ प्रभु का उपासक बनता है, अत: सम्पत्ति, प्रजा व पशुओं का आश्रय होता है।
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