अथर्ववेद - काण्ड 9/ सूक्त 8/ मन्त्र 10
सूक्त - भृग्वङ्गिराः
देवता - सर्वशीर्षामयापाकरणम्
छन्दः - अनुष्टुप्
सूक्तम् - यक्ष्मनिवारण सूक्त
आसो॑ ब॒लासो॒ भव॑तु॒ मूत्रं॑ भवत्वा॒मय॑त्। यक्ष्मा॑णां॒ सर्वे॑षां वि॒षं निर॑वोचम॒हं त्वत् ॥
स्वर सहित पद पाठआस॑: । ब॒लास॑: । भव॑तु । मूत्र॑म् । भ॒व॒तु॒ । आ॒मय॑त् । यक्ष्मा॑णाम् । सर्वे॑षाम् । वि॒षम् । नि: । अ॒वो॒च॒म् । अ॒हम् । त्वत् ॥१३.१०॥
स्वर रहित मन्त्र
आसो बलासो भवतु मूत्रं भवत्वामयत्। यक्ष्माणां सर्वेषां विषं निरवोचमहं त्वत् ॥
स्वर रहित पद पाठआस: । बलास: । भवतु । मूत्रम् । भवतु । आमयत् । यक्ष्माणाम् । सर्वेषाम् । विषम् । नि: । अवोचम् । अहम् । त्वत् ॥१३.१०॥
अथर्ववेद - काण्ड » 9; सूक्त » 8; मन्त्र » 10
विषय - सर्वाङ्ग नीरोगता
पदार्थ -
१. (बलास:) = शरीर के बल का नाशक कफ़-रोग (आस:) = बाहर फेंका हुआ (भवतु) = हो थूक के रूप में बाहर फेंक दिया जाए। (आमयत्) = रोगकारी पदार्थ (मूत्रं भवतु) = मूत्ररूप होकर बाहर आ जाए। (सर्वेषाम्) = सब (यक्ष्माणाम्) = रोगों के (विषम्) = विष को (अहम्) = मैं (त्वत्) = तेरे शरीर से (निर् अवोचम्) = बाहर निकालकर बताऊँ, अर्थात् तुझे नीरोग कर दूँ। २. (तव उदरात्) = तेरे उदर से (काहाबाहम्) = खाँसी आदि को लानेवाला (बिलम्) = फूटन रोग [कास आव] अङ्गों को कड़ कड़ानेवाला रोग (बहिः निर्द्रवतु) = बाहर निकल जाए। (ते उदरात्) = तेरे उदर से (क्लोन:) = कलेजे से, (नाभ्या:) = नाभि से और (हृदयात् अधि) = हदय से भी सब रोगों के विष को मैं तेरे शरीर से बाहर कर दूँ।
भावार्थ -
कफ़-रोग थूक के रूप में, अन्य रोगकारी पदार्थ मूत्र के रूप में शरीर से पृथक् हो जाएँ। खाँसी करनेवाला फूटन रोग भी शरीर से पृथक् हो जाए। हमारा उदर, क्लोम, नाभि व हृदय सब स्वस्थ हों।
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