अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 17
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - आसुरी गायत्री
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
न प॑ञ्च॒मो न ष॒ष्ठः स॑प्त॒मो नाप्यु॑च्यते ॥
स्वर सहित पद पाठन । प॒ञ्च॒म: । न । ष॒ष्ठ: । स॒प्त॒म: । न ॥५.४॥
स्वर रहित मन्त्र
न पञ्चमो न षष्ठः सप्तमो नाप्युच्यते ॥
स्वर रहित पद पाठन । पञ्चम: । न । षष्ठ: । सप्तम: । न ॥५.४॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 17
पदार्थ -
शब्दार्थ = ( न द्वितीयः ) = न दूसरा ( न तृतीयः ) = न तीसरा ( न चतुर्थ: ) = न चौथा ( अपि ) = ही ( उच्यते ) = कहा जाता है । ( न पञ्चमः ) = न पाँचवां ( न षष्ठः ) = न छठा ( न सप्तमः ) = न सातवां ( अपि ) = ही ( उच्यते ) = कहा जाता है । ( न अष्टम: ) = न आठवॉ ( न नवमः ) = न नवां ( न दशम: ) = न दसवाँ ( अपि उच्यते ) = ही कहा जाता है ।
भावार्थ -
भावार्थ = परमात्मा एक है । उस से भिन्न कोई भी दूसरा, तीसरा, चौथा, आदि नहीं है। उस एक की ही उपासना करनी चाहिए। वही परमात्मा सच्चिदानन्द, सर्वव्यापक, एक रस है। उसकी उपासना करने से ही मुक्तिधाम को पुरुष प्राप्त हो सकता है ।
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