अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 5
सूक्त - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
सो अ॒ग्निः स उ॒ सूर्यः॒ स उ॑ ए॒व म॑हाय॒मः ॥
स्वर सहित पद पाठस: । अ॒ग्नि: । स: । ऊं॒ इति॑ । सूर्य॑: । स: । ऊं॒ इति॑ । ए॒व । म॒हा॒ऽय॒म: ॥४.५॥
स्वर रहित मन्त्र
सो अग्निः स उ सूर्यः स उ एव महायमः ॥
स्वर रहित पद पाठस: । अग्नि: । स: । ऊं इति । सूर्य: । स: । ऊं इति । एव । महाऽयम: ॥४.५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 5
पदार्थ -
शब्दार्थ = ( स ) = वह परमेश्वर ( धाता ) = पोषण करनेवाला और ( स विधर्ता ) = वही परमेश्वर विविध प्रकार से धारण करनेवाला है। ( स वायुः ) = वह परमात्मा महाबली है। ( उच्छ्रितम् ) = और ऊँचा वर्त्तमान ( नभ: ) = प्रबन्धकर्त्ता व नायक है ( स: ) = वह परमेश्वर ( अर्यमा ) = सब से श्रेष्ठ और श्रेष्ठों का मान करता है। ( स वरुण: ) = वह श्रेष्ठ ( स रुद्रः ) = वह भगवान् ज्ञानवान् है । ( स महादेव: ) = वह महादानी है। ( सः ) = वह परमात्मा ( अग्निः ) = व्यापक ( स उ सूर्यः ) = वही प्रेरक है । ( स उ ) = वही ( एव ) = निश्चय करके ( महायम:) = बड़ा न्यायकारी है ।
भावार्थ -
भावार्थ = इस परमेश्वर के अनन्त नाम जैसे ऋग्वेदादि में कहे हैं, वैसे इस अथर्व में भी अनेक नाम कहे हैं। जैसे कि धाता, विधर्ता, नभः, अर्यमा, वरुण, महादेव, अग्नि, सूर्य, महायम इत्यादि ।
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