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अथर्ववेद > काण्ड 13 > सूक्त 4

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  • अथर्ववेद - काण्ड 13/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त

    स धा॒ता स वि॑ध॒र्ता स वा॒युर्नभ॒ उच्छ्रि॑तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । धा॒ता । स: । वि॒ऽध॒र्ता । स: । वा॒यु: । नभ॑: । उत्ऽश्रि॑तम् । ॥४.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स धाता स विधर्ता स वायुर्नभ उच्छ्रितम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । धाता । स: । विऽधर्ता । स: । वायु: । नभ: । उत्ऽश्रितम् । ॥४.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 3

    पदार्थ -

    शब्दार्थ = ( स ) = वह परमेश्वर  ( धाता ) = पोषण करनेवाला और  ( स विधर्ता ) = वही परमेश्वर विविध प्रकार से धारण करनेवाला है।  ( स वायुः ) = वह परमात्मा महाबली है।  ( उच्छ्रितम् ) = और ऊँचा वर्त्तमान   ( नभ: ) = प्रबन्धकर्त्ता व नायक है  ( स: ) = वह परमेश्वर  ( अर्यमा ) = सब से श्रेष्ठ और श्रेष्ठों का मान करता है।  ( स वरुण: ) = वह श्रेष्ठ  ( स रुद्रः ) = वह भगवान् ज्ञानवान् है ।  ( स महादेव: ) = वह महादानी है।  ( सः ) = वह परमात्मा  ( अग्निः ) = व्यापक  ( स उ सूर्यः ) = वही प्रेरक है ।  ( स उ )  = वही  ( एव ) = निश्चय करके  ( महायम:) = बड़ा न्यायकारी है ।

    भावार्थ -

    भावार्थ = इस परमेश्वर के अनन्त नाम जैसे ऋग्वेदादि में कहे हैं, वैसे इस अथर्व में भी अनेक नाम कहे हैं। जैसे कि धाता, विधर्ता, नभः, अर्यमा, वरुण, महादेव, अग्नि, सूर्य, महायम इत्यादि ।

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