अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 3
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
264
स धा॒ता स वि॑ध॒र्ता स वा॒युर्नभ॒ उच्छ्रि॑तम् ॥
स्वर सहित पद पाठस: । धा॒ता । स: । वि॒ऽध॒र्ता । स: । वा॒यु: । नभ॑: । उत्ऽश्रि॑तम् । ॥४.३॥
स्वर रहित मन्त्र
स धाता स विधर्ता स वायुर्नभ उच्छ्रितम् ॥
स्वर रहित पद पाठस: । धाता । स: । विऽधर्ता । स: । वायु: । नभ: । उत्ऽश्रितम् । ॥४.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [परमेश्वर] (धाता) पोषण करनेवाला और (सः) वह (विधर्ता) विविध प्रकार धारण करनेवाला है, (सः) वह (वायुः) व्यापक [वा महाबली परमात्मा] और (उच्छ्रितम्) ऊँचा वर्तमान (नभः) प्रबन्धकर्ता [वा नायक ब्रह्म] है ॥३॥
भावार्थ
उस सर्वपोषक सर्वधारक परमात्मा की उपासना से मनुष्य आत्मा की उन्नति करें ॥३॥
टिप्पणी
३−(सः) परमेश्वरः (धाता) सर्वपोषकः (सः) (विधर्ता) विविधं धारकः (सः) (वायुः) वा गतिगन्धनयोः-उण् युक् च। व्यापकः। बलिष्ठः (नभः) नहेर्दिवि भश्च। उ० ४।२११। णह बन्धने-असुन्, हस्य भः, यद्वा, नयतेः-असुन्, गुणे “नयः” इति स्थिते बाहुलकाद् यकारस्य भकारः। नभ आदित्यो भवति, नेता रसानां, नेता भासां, ज्योतिषां प्रणयः, अपि वा भन एव स्याद् विपरीतः, न न भातीति वा-निरु० २।१४। प्रबन्धकं नायकं वा ब्रह्म (उच्छ्रितम्) ऊर्ध्वं श्रितं स्थितम् ॥
पदार्थ
शब्दार्थ = ( स ) = वह परमेश्वर ( धाता ) = पोषण करनेवाला और ( स विधर्ता ) = वही परमेश्वर विविध प्रकार से धारण करनेवाला है। ( स वायुः ) = वह परमात्मा महाबली है। ( उच्छ्रितम् ) = और ऊँचा वर्त्तमान ( नभ: ) = प्रबन्धकर्त्ता व नायक है ( स: ) = वह परमेश्वर ( अर्यमा ) = सब से श्रेष्ठ और श्रेष्ठों का मान करता है। ( स वरुण: ) = वह श्रेष्ठ ( स रुद्रः ) = वह भगवान् ज्ञानवान् है । ( स महादेव: ) = वह महादानी है। ( सः ) = वह परमात्मा ( अग्निः ) = व्यापक ( स उ सूर्यः ) = वही प्रेरक है । ( स उ ) = वही ( एव ) = निश्चय करके ( महायम:) = बड़ा न्यायकारी है ।
भावार्थ
भावार्थ = इस परमेश्वर के अनन्त नाम जैसे ऋग्वेदादि में कहे हैं, वैसे इस अथर्व में भी अनेक नाम कहे हैं। जैसे कि धाता, विधर्ता, नभः, अर्यमा, वरुण, महादेव, अग्नि, सूर्य, महायम इत्यादि ।
विषय
धाता, अर्यमा, अग्नि
पदार्थ
१. (स:) = वे प्रभु (धाता) = सबका निर्माण करनेवाले हैं [धाता]। (स: विधर्ता) = वे विशेषरूप से धारण करनेवाले हैं। (सः वायुः) = वे गति द्वारा सब बुराइयों का गन्धन [हिंसन] करनेवाले हैं। (नभः) = [णह बन्धने] वे सूत्ररूपेण सबको अपने में बाँधनेवाले हैं [मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव]। उच्छितम्-वे प्रभु सर्वोन्नत हैं-प्रत्येक उत्तमता की चरमसीमा ही तो प्रभु हैं। इसप्रकार प्रभु-चिन्तन करनेवाले का (नभः) = मस्तिष्करूप झुलोक (रश्मिभिः आभृतम्) = ज्ञानरश्मियों से आभूत होता है तथा (आवृतः) = ज्ञान से आवृत (महेन्द्रः एति) = प्रभु प्राप्त होते हैं। २. (सः) = वे प्रभु ही (अर्यमा) = [अरीन् यच्छति] हमारे काम-क्रोधादि शत्रुओं का नियमन करनेवाले हैं। (सः वरुण:) = वे वरणीय व श्रेष्ठ हैं। (सः) = वे (रुद्रा:) = [रुत्-र] ज्ञानोपदेश करनेवाले हैं। (सः महादेव:) = वे महान् देव हैं। ३. (स: अग्निः) = वे प्रभु ही अग्रणी हैं, हमें आगे ले-चलनेवाले हैं। (उ) = और (सः सूर्य:) = वे प्रभु ही सूर्य हैं, हमें कर्मों में प्रेरित करनेवाले हैं [सुवति कर्मणि] (उ) = और (सः एव) = वे ही महायमः सर्वमहान् नियन्ता हैं। इस प्रकार प्रभु का स्मरण करनेवाला पुरुष अपने हृदयाकाश को ज्ञानरश्मियों से परिपोषित करता है और इसे ज्ञान से आवृत प्रभु प्राप्त होते हैं।
भावार्थ
हम 'धाता, विधर्ता' आदि नामों से प्रभु का स्मरण करते हुए वैसा ही बनने का प्रयत्न करें। परिणामत: हमें प्रकाश प्राप्त होगा और हमारा हृदय प्रभु का अधिष्ठान बनेगा।
भाषार्थ
(सः) वह सविता अर्थात् प्रेरक परमेश्वर (धाता) सब का धारण-पोषण करता है, (सः) वह (विधर्ता) विधियों का विधान करता है, (सः) वह (वायुः) वायुवत् प्राणभूत है, (नमः) आकाशवत् व्यापक है, (उच्छ्रितम्) ऊपर के द्युलोक में भी आश्रित है। (रश्मिभिः) देखो मन्त्र (२)।
विषय
रोहित, परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(सः धाता) वह सब का पालक पोषक, (सः विधर्ता) वह सब को विशेषरूप से धारण करने वाला या विविध प्रकारों से धारण करने वाला है। (स वायुः) वह सर्वव्यापक, सबका प्रेरक, सूत्रात्मा, प्राणों का प्राण ‘वायु’ है। वही (नभः) सब को एक सूत्र में बांधने वाला ‘नभ’ है। वही (उच्छ्रितम्) सब से अधिक ऊंचा है। (महेन्द्रः एति आवृतः) वही सब लोकों से विराट् महैश्वर्यवान्, महाराज होकर प्रकट होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्मं रोहितादित्यो देवता। त्रिष्टुप छन्दः। षट्पर्यायाः। मन्त्रोक्ता देवताः। १-११ प्राजापत्यानुष्टुभः, १२ विराङ्गायत्री, १३ आसुरी उष्णिक्। त्रयोदशर्चं प्रथमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
He is the creator, sustainer, He is the ordainer, Vayu, breath of life, Nabha, omnipresent boundless as space, highest. The sky overflows with light, Mahendra comes wrapped in the halo of light.
Translation
He is the creator, He the ordainer, He the elemental wind, He the mighty rain-cloud (nabhas). The great resplendent Lord comes to the dimmed sky surrounded with rays.
Translation
He is supporter and ordainer, he is called Vayu, and He is called Nabha,the highest one….this.
Translation
God is the Creator and Sustainer. He is All-pervading and Powerful like air. He is the best Administrator and Most Exalted. Great God pervades all the worlds with His refulgence.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
३−(सः) परमेश्वरः (धाता) सर्वपोषकः (सः) (विधर्ता) विविधं धारकः (सः) (वायुः) वा गतिगन्धनयोः-उण् युक् च। व्यापकः। बलिष्ठः (नभः) नहेर्दिवि भश्च। उ० ४।२११। णह बन्धने-असुन्, हस्य भः, यद्वा, नयतेः-असुन्, गुणे “नयः” इति स्थिते बाहुलकाद् यकारस्य भकारः। नभ आदित्यो भवति, नेता रसानां, नेता भासां, ज्योतिषां प्रणयः, अपि वा भन एव स्याद् विपरीतः, न न भातीति वा-निरु० २।१४। प्रबन्धकं नायकं वा ब्रह्म (उच्छ्रितम्) ऊर्ध्वं श्रितं स्थितम् ॥
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