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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 14
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - भुरिक् साम्नी त्रिष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    206

    की॒र्तिश्च॒ यश॒श्चाम्भ॑श्च॒ नभ॑श्च ब्राह्मणवर्च॒सं चान्नं॑ चा॒न्नाद्यं॑ च ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    की॒र्ति: । च॒ । यश॑: । च॒ । अम्भ॑: । च॒ । नभ॑: । च॒ । ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सम् । च॒ । अन्न॑म् । च॒ । अ॒न्न॒ऽअद्य॑म् । च॒ ॥५.१॥


    स्वर रहित मन्त्र

    कीर्तिश्च यशश्चाम्भश्च नभश्च ब्राह्मणवर्चसं चान्नं चान्नाद्यं च ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    कीर्ति: । च । यश: । च । अम्भ: । च । नभ: । च । ब्राह्मणऽवर्चसम् । च । अन्नम् । च । अन्नऽअद्यम् । च ॥५.१॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 14
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (कीर्तिः) कीर्ति [ईश्वरगुणों के कीर्तन और विद्या आदि गुणों से बड़ाई] (च) और (यशः) यश [शूरता आदि से नाम] (च) और (अम्भः) पराक्रम (च) और (नभः) प्रबन्धसामर्थ्य (च) और (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्रह्मज्ञान का तेज (च) और (अन्नम्) अन्न (च च) और (अन्नाद्यम्) अन्न के समान खाने योग्य द्रव्य [उस पुरुष के लिये होते हैं] ॥१४॥

    भावार्थ

    जो पुरुष सर्वशक्तिमान् अद्वितीय परमात्मा के प्रकाशमय स्वरूप को साक्षात् करता है, वह संसार में उन्नति करके सब प्रकार का आनन्द पाता है ॥१४, १५॥

    टिप्पणी

    १४−(कीर्त्तिः) हृपिषिरुहि०। उ० ४।११९। कॄत संशब्दने-इन्। ईश्वरगुणकीर्तनविद्यादानादिप्रभवं नाम (च) (यशः) शौरादिप्रभवं नाम (च) (अम्भः) उदके नुम्भौ च। उ० ४।२१०। आप्लृ व्याप्तौ-असुन् ह्रस्वत्वं च नुमागमो भश्चान्तादेशः, यद्वा, अभि शब्दे-असुन्। पराक्रमः (च) (नभः) म० ३। प्रबन्धसामर्थ्यम् (च) (ब्रह्मवर्चसम्) अ० १०।५।३७। ब्राह्मणस्य ब्रह्मज्ञानस्य तेजः (च) (अन्नम्) अन जीवने-न प्रत्ययः। जीवनसाधनं भोजनम् (च) (अन्नाद्यम्) अन्नसमानभक्ष्यद्रव्यम् (च) ॥

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    विषय

    कीर्तिः च यशः च

    पदार्थ

    (यः) = जो भी (एतं देवम्) = इस प्रकाशमय प्रभु को (एकवृतं वेद) = एकत्वेन वर्तमान जानता है, अर्थात् जो प्रभु की अद्वितीय सत्ता का अनुभव करता है, उसे (कीर्तिः च) = प्रभु-कीर्तन से प्राप्त होनेवाला यश, (यश: च) = लोकहित के कर्मों से प्राप्त होनेवाला यश, (अम्भ: च) = [अभि शब्दे] ज्ञानजल, (नभः च) = प्रबन्धसामर्थ्य, (ब्राह्मणवर्चसं च) = ब्रह्मतेज, (अन्नं च) = अन्न (अनाद्यं च) = और अन्न  के खाने का सामर्थ्य-ये सब वस्तुएँ प्राप्त होती हैं, अर्थात् प्रभु की अद्वितीय सत्ता का साक्षात् करनेवाला व्यक्ति भौतिक व आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोणों से उत्कृष्ट जीवनवाला बनता है।

    भावार्थ

    प्रभु का उपासक 'यशस्वी, ज्ञान व शक्तिसम्पन्न, ऐश्वर्यशाली व स्वस्थ' जीवनवाला बनता है।

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    भाषार्थ

    (कीर्तिः च) उस के सम्बन्ध में संकीर्तन, (यशः च) उस का यश (अम्भः च) ज्ञान की दीप्ति (नभः च) उस के पापकर्मों का हिंसन, (ब्राह्मणवर्चसम् च) ब्राह्मणों अर्थात् ब्रह्मवेत्ताओं का तेज (अन्नं च) दुग्धादि अन्न (अन्नद्यम्, च) और खाने योग्य अन्न होते हैं।

    टिप्पणी

    [मन्त्र १४ से आगे पर्यायसूक्त के मन्त्रों की क्रम संख्या १-२ आदि के पश्चात् जो ।।१३।। ।।१४।। आदि संख्या दी गई है वह पूरे चौथे सुक्त की मन्त्र संख्या है। ऐसा जानना चाहिये।

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    विषय

    अद्वितीय परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    वही परमेश्वर (कीर्तिः च) कीर्ति और (यशः च) यश, वीर्य और (अम्भः च) ‘अम्भ’ व्यापक सृष्टि का आदि मूलकारण जल और (नभः च) नभस् = महान् आकाश या बल (ब्राह्मणवर्चसम् च) ब्रह्मतेज, ब्रह्मवर्चस् (अन्नं च) अन्न और (अन्नाद्यं च) अन्नादि पदार्थों का भोग सामर्थ्य ये सब उस पुरुष को प्राप्त होते हैं। (यः एतं देवं) जो विद्वान् बस उपास्यदेव परमेश्वर को (एकवृतम् वेद) एक रूप से सदा वर्तमान, अखण्ड, एक रसरूप में जानता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १४ भुरिक् साम्नी त्रिष्टुप्, १५ आसुरी पंक्तिः, १६, १९ प्राजापत्याऽनुष्टुप, १७, १८ आसुरी गायत्री। अष्टर्चं द्वितीयं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    Fame, honour and glory, valour and brilliance, inviolable identity, sagely splendour, food and prosperity, and the capacity for good health and preservation of one’s health and well being, all are his.

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    Subject

    PARYAYA-II

    Translation

    Glory and fame, and water and rain; and intellectual brilliance, and food and the edibles (he gets).

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    Translation

    Name, fame, highest attainment, effulgence of knowledge,splendor of Brahmana,food and nourishment. He (see 15th verse)

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    Translation

    Renown and glory, force, and administrative capacity, the splendor of the knowledge of God and food, and nourishment are acquired by him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    १४−(कीर्त्तिः) हृपिषिरुहि०। उ० ४।११९। कॄत संशब्दने-इन्। ईश्वरगुणकीर्तनविद्यादानादिप्रभवं नाम (च) (यशः) शौरादिप्रभवं नाम (च) (अम्भः) उदके नुम्भौ च। उ० ४।२१०। आप्लृ व्याप्तौ-असुन् ह्रस्वत्वं च नुमागमो भश्चान्तादेशः, यद्वा, अभि शब्दे-असुन्। पराक्रमः (च) (नभः) म० ३। प्रबन्धसामर्थ्यम् (च) (ब्रह्मवर्चसम्) अ० १०।५।३७। ब्राह्मणस्य ब्रह्मज्ञानस्य तेजः (च) (अन्नम्) अन जीवने-न प्रत्ययः। जीवनसाधनं भोजनम् (च) (अन्नाद्यम्) अन्नसमानभक्ष्यद्रव्यम् (च) ॥

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