अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 52
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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उ॒रुः पृ॒थुः सु॒भूर्भुव॒ इति॒ त्वोपा॑स्महे व॒यम् ॥
स्वर सहित पद पाठउ॒रु: । पृ॒थु: । सु॒ऽभू: । भुव॑: । इति॑ । त्वा॒ । उप॑ । आ॒स्म॒हे॒ । व॒यम् ॥९.१॥
स्वर रहित मन्त्र
उरुः पृथुः सुभूर्भुव इति त्वोपास्महे वयम् ॥
स्वर रहित पद पाठउरु: । पृथु: । सुऽभू: । भुव: । इति । त्वा । उप । आस्महे । वयम् ॥९.१॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
[हे परमेश्वर] तू (उरुः) विशाल (पृथुः) विस्तृत, (सूभूः) अच्छे प्रकार वर्तमान [ईश्वर] और (भुवः) व्यापक वा शुद्ध ब्रह्म है, (इति) इस प्रकार से (वयम्) हम (त्वा उप आस्महे) तेरी उपासना करते हैं ॥५२॥
भावार्थ
परमात्मा सब में विशाल सर्वशक्तिमान् आदि गुण युक्त है, ऐसा जान कर मनुष्य उसकी उपासना करें और संसार में कीर्ति बढ़ावें ॥५२॥मन्त्र ५२ और ५३ महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका उपासनाविषय पृष्ठ १६१, १६२ में व्याख्यात हैं ॥
टिप्पणी
५२−(उरुः) विशालः (पृथुः) विस्तृतः (सुभूः) सुष्ठु वर्तमानः (भुवः) भूरञ्जिभ्यां कित्। उ० ४।२१७। भू सत्तायां शुद्धौ च-असुन्, कित्, महाव्याहृतिरियम्। व्यापकं शुद्धं वा ब्रह्म। अन्यत् पूर्ववत् ॥
विषय
उरुः पृथुः भवद्धसु:
पदार्थ
१.हे प्रभो! (वयम्) = हम (त्वा) = आपको (उरु:) = सर्वोत्तम [Excellent] (प्रथ:) = सर्वमहान् [Important] (सुभूः) = उत्तम शक्तिरूप में सब पदार्थों में वर्तमान (भुव:) = सबका उत्पत्ति-स्थान (इति) = इस रूप में (उपास्महे) = उपासित करते हैं। २. हे प्रभो! (वयम्) = हम (त्वा) = आपको प्रथ:-सर्वज्ञ विस्तृत वर:-सर्वश्रेष्ठ, वरणीय व्यच: सर्वव्यापक, (लोक:) = सर्वद्रष्टा (इति) = इस रूप में (उपास्महे) = उपासित करते हैं। ३. हे प्रभो! (वयम्) = हम (त्वा) = आपको भवद्वसुः-[भवन्ति वसूनि यस्मात्] सब वसुओं का उद्भव, (इदवसः) = [इन्दन्ति वसवः श्रेष्ठाः यस्मात्] श्रेष्ठों को ऐश्वर्यशाली बनानेवाला, (संयवसः) = पृथिवी आदि सब वसुओं का नियमन करनेवाला, (आयद्वसुः) = सब निवास-साधनों का विस्तार करनेवाला [आयच्छति विस्तारयति इति] (इति) = इस रूप में (उपास्महे) = उपासित करते है। ४. हे (पश्यत) = सर्वद्रष्टः प्रभो! (ते नमः अस्तु) = आपके लिए नमस्कार हो। (पश्यत) = हे सर्वद्रष्टः! (मा पश्य) = आप मेरा पालन कीजिए [Look-after] मुझे 'अन्नाद्य, यश, तेज व ब्रह्मवर्चस्' प्रास कराइए।
भावार्थ
प्रभु उरु हैं, पृथु हैं, भवद्वसु हैं। ये सर्वद्रष्टा प्रभु मुझे अन्नाद्य, यश, तेज व ब्रह्मवर्चस् प्राप्त कराएं।
भाषार्थ
(उरुः) सर्वाच्छादक, (पृथुः) विस्तृत अर्थात् व्यापक, (सुभूः) सब पदार्थों में अच्छी प्रकार विद्यमान, (भुवः) आकाशवत् सब के लिए निवास स्थान तू है (इति) इस प्रकार जानकर (वयम्) हम (त्वा) तेरी (उपास्महे) उपासना करते हैं।
टिप्पणी
[उरुः = ऊर्णुञ् आच्छादने। सुभूः= सुष्ठुतया सर्वेषु पदार्थेषु भवतीति (ऋ० भा० भूमिका, महर्षि दयानन्द)। सुभूर्भुवः= सम्भवतः सु (स्वः) + भूः + भुवः (महाव्याहृतियां)। स्वः = सम्प्रसारण द्वारा, सुः =सु।
विषय
परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
हे परमात्मन् ! (वयम्) हम लोग (उरुः) ‘उरु’ सर्वशक्तिमान्, महान् (पृथुः) अति विस्तृत, सर्वव्यापक ‘पृथुः’ (सुभूः) उत्तम शक्तिरूप में समस्त पदार्थों में वर्तमान ‘सुभू’ (भुवः) अन्तरिक्ष के समान व्यापक या सर्वत्र का उत्पादक ‘भुवः’ इत्यादि गुणों और रूपों से (त्वा उपास्महे) हम तेरी उपासना करते हैं।
टिप्पणी
(। ०। ०॥) उभयोर्विद्वोः स्थाने ‘नमस्ते अस्तु’ इति अन्नाद्येने’तच मन्त्रद्वयं वैदिकैः परिपठ्यते।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
५२, ५३ प्राजापत्यानुष्टुभौ, ५४ आर्षी गायत्री, शेषास्त्रिष्टुभः। पञ्चर्चं षष्ठं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
Cosmic umbrella, unbounded Presence, gracious Divinity, shelter home and happiness for all, thus do we worship and adore you.
Subject
PARYAYA- VI
Translation
We worship you-as excellent, huge, happy, and becoming Homage be to you, O beholder; behold me, O beholder, with edible food, with fame, with radiance and with intellectual brilliance
Translation
Considering Thee great,generous,self-existent,life of all,we pay our reverence to Thee.Obeisance to Thee whom all desire to behold.O Beholder of all please see us.With nourishment,prominence, splendout and the knowledge of the master of vedic speech.
Translation
O God, we pay Thee reverence calling Thee Omnipotent, Omnipresent, the Good, and the Creator!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
५२−(उरुः) विशालः (पृथुः) विस्तृतः (सुभूः) सुष्ठु वर्तमानः (भुवः) भूरञ्जिभ्यां कित्। उ० ४।२१७। भू सत्तायां शुद्धौ च-असुन्, कित्, महाव्याहृतिरियम्। व्यापकं शुद्धं वा ब्रह्म। अन्यत् पूर्ववत् ॥
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