अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 19
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
174
स सर्व॑स्मै॒ वि प॑श्यति॒ यच्च॑ प्रा॒णति॒ यच्च॒ न ॥
स्वर सहित पद पाठस: । सर्व॑स्मै । वि । प॒श्य॒ति॒ । यत् । च॒ । प्रा॒णति॑ । यत् । च॒ । न ॥५.६॥
स्वर रहित मन्त्र
स सर्वस्मै वि पश्यति यच्च प्राणति यच्च न ॥
स्वर रहित पद पाठस: । सर्वस्मै । वि । पश्यति । यत् । च । प्राणति । यत् । च । न ॥५.६॥
भाष्य भाग
हिन्दी (5)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(सः) वह [परमेश्वर] (सर्वस्मै) सब [जगत्] के हित के लिये [उस सबको] (वि) विविध प्रकार (पश्यति) देखता है, (यत्) जो (प्राणति) श्वास लेता है, (च च) और (यत्) जो (न) नहीं [श्वास लेता है] ॥१९॥
भावार्थ
ऊपर मन्त्र ११ देखो, उसी के समान भावार्थ है ॥१९॥
टिप्पणी
१९−(सर्वस्मै) समस्ताय जगते। अन्यत् पूर्ववत्-म० ११ ॥
पदार्थ
शब्दार्थ = ( सः ) = वह परमेश्वर ( सर्वस्मै ) = सब संसार को ( विपश्यति ) = विविध प्रकार से देखता है । ( यत् प्राणति ) = जो श्वास लेता है ( यत् च न ) = और जो सांस नहीं लेता ( तम् इदम् ) = उस परमात्मा को यह सब ( सहः ) = सामर्थ्य ( निगतम् ) = निश्चय करके प्राप्त है। ( स एषः ) = वह आप ( एकः ) = एक ( एकवृत् ) = अकेला वर्त्तमान ( एक एव ) = एक ही है । ( अस्मिन् ) = इस परमेश्वर में ( सर्वे देवा: ) = पृथिवी आदि सब लोक ( एकवृतः भवन्ति ) = एक परमात्मा में वर्त्तमान रहते हैं ।
भावार्थ
भावार्थ = परमात्मा प्राणी-अप्राणी सबको देख रहे हैं। वह परमेश्वर अपनी सामर्थ्य से सब लोकों का आधार हो कर सदा एक रस, एक रूप वर्त्तमान है । वेद ने कैसे सुन्दर स्पष्ट शब्दों में बार-बार परमेश्वर की एकता का निरूपण किया है ।
विषय
सर्वाधार प्रभु
पदार्थ
१. (सः) = वे प्रभु (यत् च प्राणति यत् च न) = जो प्राणधारण करता है और प्राणधारण नहीं करता (सर्वस्मै) = उस सबके लिए, अर्थात् सब चराचर व जंगम-स्थावर का (विपश्यति) = विशेषरूप से ध्यान करते हैं। २. (तम्) = उस प्रभु को (इदं स:) = यह शत्रुमर्षक बल (निगतम्) = निश्चय से प्राप्त है। (सः एषः) = वे ये प्रभु (एकः) = एक है (एकवृत्) = एकत्वेन वर्तमान हैं, (एकः एव) = एक ही हैं (सर्वे देवा:) = सूर्यादि सब देव (अस्मिन्) = इस प्रभु में (एकवृतः भवन्ति) = एक आधार में वर्तमान होते हैं। इन सबका आधार वह अद्वितीय प्रभु ही है।
भावार्थ
प्रभु सब चराचर का ध्यान करते हैं, सम्पूर्ण शत्रुमर्षक बल को प्राप्त हैं। वे प्रभु एक हैं, एक ही हैं। वे ही सब देवों के एक आधार हैं।
भाषार्थ
(सः) वह परमेश्वर (सर्वस्मै) सब के भले के लिये (वि पश्यति) अलग-अलग रूप में सब को देखता रहता है (यच्च) अर्थात् जो (प्राणति) प्राणधारी है, (यच्च) और जो प्राणधारी नहीं, अर्थात् जड़ है। (य एतम्) देखो मन्त्र (२)।
टिप्पणी
[४ (२) ।११ में प्रजाओं अर्थात् उत्पन्न पदार्थों का वर्णन हुआ है, और मन्त्र ४(२)।६ में सब उत्पन्न और अनुत्पन्न, प्राणी और अप्राणी जगत् का वर्णन हुआ है]।
विषय
अद्वितीय परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
(यत् च प्राणति) जो वस्तु प्राण लेता है और (यत् च न) जो प्राण नहीं भी लेता (सर्वस्मै) उस सब चराचर पदार्थ को (सः विपश्यति) वह विशेषरूप से देखता है। (तम् इदं नि-गतम्) उसमें यह समस्त जगत् आश्रित है। (सः सहः) वह परमात्मा शक्तिस्वरूप सबका संचालक प्रवर्तक है। (एषः एकः) वह एक ही है। (एकवृद्) वह एकरस, अखण्ड चेतनस्वरूप है। और वह (एकः एव) एक ही अद्वितीय हैं। (सर्वे अस्मिन् देवाः एकवृतो भवन्ति) उस सर्व शक्तिमान् परमात्मा में समस्त वस्तु यदि लोक (एकवृतः) एकमात्र आश्रय में विद्यमान, उसी में लीन होकर रहता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
१४ भुरिक् साम्नी त्रिष्टुप्, १५ आसुरी पंक्तिः, १६, १९ प्राजापत्याऽनुष्टुप, १७, १८ आसुरी गायत्री। अष्टर्चं द्वितीयं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
He watches wholly and comprehensively for the sake of all, all that breathe and those that don’t. He that knows Savita as such, as One and only One, really knows.
Translation
He oversees all, that who breathes as well as that who breathes not (Av. XIII.4.11. vari.)
Translation
He sees all that breaths life and that does not, Who….one.
Translation
He watcheth over all objects that breathe and breathe not.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
१९−(सर्वस्मै) समस्ताय जगते। अन्यत् पूर्ववत्-म० ११ ॥
बंगाली (1)
পদার্থ
স সর্বস্মৈ বিপশ্যতি য়চ্চ প্রাণতি য়চ্চন।
তমিদং নিগতং সহঃ স এষ এক এক বৃদেক এব।
সর্বে অস্মিন্দেবা একবৃতো ভবন্তি ।।৫৫।।
(অথর্ব ১৩।৪।১৯, ২০, ২১)
পদার্থঃ (সঃ) সেই পরমেশ্বর (সর্বস্মৈ) সমস্ত সংসারে (য়ৎ চ প্রাণতি) যা শ্বাস গ্রহণ করছে এবং (য়ৎ চ ন) যা শ্বাস গ্রহণ করে না (বিপশ্যতি) সে সমস্তকেই বিবিধ প্রকারে দর্শন করছেন। (তম্ ইদম্) সেই পরমাত্মার এই (সহঃ) সামর্থ্য (নিগতম্) নিশ্চিত প্রকারেই রয়েছে। (স এষ) সেই তিনি (একঃ) এক, (এক বৃৎ) তিনি একাই বর্তমান, (এক এব) তিনি একই। (অস্মিন্) সেই পরমাত্মার মাঝে (সর্বে দেবাঃ) পৃথিবী আদি সকল লোক (এক বৃতঃ ভবন্তি) এক আধারেই বর্তমান।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ পরমাত্মা জীব-জড় সমস্ত কিছুই নিজ সামর্থ্যে সর্বদা দর্শন করছেন। সকল লোকের আধার হয়েও তিনি সদা একরস ও একই স্বরূপে বর্তমান। বেদ সুস্পষ্টভাবে বারবার সেই এক পরমেশ্বরের কথাই নিরূপণ করছে।।৫৫।।
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