अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 48
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - साम्न्युष्णिक्
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
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नम॑स्ते अस्तु पश्यत॒ पश्य॑ मा पश्यत ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । ते॒ । अ॒स्तु॒ । प॒श्य॒त॒ । पश्य॑ । मा॒ । प॒श्य॒त॒ ॥८.३॥
स्वर रहित मन्त्र
नमस्ते अस्तु पश्यत पश्य मा पश्यत ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । ते । अस्तु । पश्यत । पश्य । मा । पश्यत ॥८.३॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(पश्यत) हे देखनेवाले [जगदीश्वर !] (ते) तेरे लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, (पश्यत) हे देखनेवाले ! (मा) मुझको (अन्नाद्येन) भोजन योग्य अन्न आदि के साथ, (यशसा) यश [शूरता आदि से पाये हुए नाम] के साथ, (तेजसा) तेज [निर्भयता, प्रताप] के साथ और (ब्राह्मणवर्चसा) वेदज्ञान के बल के साथ [पश्य] देख ॥४८, ४९॥
भावार्थ
मनुष्य सर्वद्रष्टा परमात्मा की उपासना से पुरुषार्थ और विवेकपूर्वक सब आवश्यक पदार्थ पाकर आनन्द भोगें ॥४८, ४९॥
टिप्पणी
४८, ४९−(नमः) प्रणामः (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (पश्यत) भृमृदृशियजि०। उ० ३।११०। दृशिर् दर्शने-अतच्, छन्दसि अशिति प्रत्ययेऽपि पश्यादेशः। हे दर्शत। सर्वदर्शक (पश्य) अवलोकय (मा) माम् (पश्यत) सर्वदर्शक (अन्नाद्येन) भक्षणीयेनान्नादिना (यशसा) शौर्यादिप्राप्तेन नाम्ना (तेजसा) निर्भयत्वेन प्रतापेन (ब्राह्मणवर्चसेन) वेदज्ञानबलेन ॥
विषय
प्रभु की कृपादृष्टि
पदार्थ
१. हे (पश्यत) = सर्वद्रष्टः प्रभो! (नमस्ते अस्तु) = आपके लिए नमस्कार हो। हे (पश्यत) = सबका ध्यान करनेवाले प्रभु (मा पश्य) = आप मुझे देखिए, मुझपर अपनी कृपादृष्टि सदा बनाये रखिए। आप मुझे (अन्नाद्येन) = अन्न के खाने के सामर्थ्य से, (यशसा) = यश से, (तेजसा) = तेज से तथा (ब्राह्मणवर्चसेन) = ब्रह्मवर्चस् से युक्त कीजिए।
भावार्थ
हे प्रभो! आपकी कृपादृष्टि हमें प्राप्त हो। आप हमें 'अन्नाद्य, यश, तेज व ब्रह्मवर्चस्' प्राप्त कराइए।
भाषार्थ
(पश्यत१) हे सर्वद्रष्टा परमेश्वर! (ते नमः अस्तु) तुम्हें नमस्कार हो, (पश्यत) हे सर्वद्रष्टः! (मा) मुझे (पश्य) कृपा दृष्टि से देख।
टिप्पणी
[१. "पश् या स्पश" वैदिक धातु है- जिस का अर्थ है,- देखना। "स्पशः" (गुप्तचर), (अथर्व० ४।१६।४); यतो व्रतानि "पस्पशे" (अथर्व० ७।२६।६); यदा "पश्यः" पश्यते रुक्मवर्णम् (मुण्डक उप० ३।१।३); "पस्पश" (पस्पशाह्निक, महाभाष्य पतन्जलि)। स्पशः आदि पदों में "पश्" धातु प्रयुक्त हुई है। Spy तथा spectrum में भी "पश्" धातु-प्रतीत होती है। Spy तथा स्पश में अधिक वर्णसाम्य और अर्थ साम्य है।]
विषय
परमेश्वर का वर्णन।
भावार्थ
हे (पश्यत) दर्शनीय, अथवा सर्वद्रष्टः ! पश्यत ! परमात्मन् ! (ते नमः अस्तु) तुझे हमारा नमस्कार हो। हे (पश्यत) सर्वद्रष्टः ! (मा पश्य) मुझे अपने उपासक को दया कर देखिये।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
४६ आसुरी गायत्री, ४७ यवमध्या गायत्री, ४८ साम्नी उष्णिक्, ४९ निचृत् साम्नी बृहती, ५० प्राजापत्यानुष्टुप, ५१ विराड गायत्री। षडृचात्मक पञ्चमं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
Salutations to you, Lord all-watching. Pray watch me with a favourable eye, O watchful Lord.
Translation
Homage be to you. O beholder; behold me, O beholder;
Translation
Obeisance to Thee whom all desire to behold. O Beholder of all,please see us.
Translation
Worship to Thee, 0 Beautiful God. Have pity on me, Thy devotee, O‘All-seeing God!
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
४८, ४९−(नमः) प्रणामः (ते) तुभ्यम् (अस्तु) (पश्यत) भृमृदृशियजि०। उ० ३।११०। दृशिर् दर्शने-अतच्, छन्दसि अशिति प्रत्ययेऽपि पश्यादेशः। हे दर्शत। सर्वदर्शक (पश्य) अवलोकय (मा) माम् (पश्यत) सर्वदर्शक (अन्नाद्येन) भक्षणीयेनान्नादिना (यशसा) शौर्यादिप्राप्तेन नाम्ना (तेजसा) निर्भयत्वेन प्रतापेन (ब्राह्मणवर्चसेन) वेदज्ञानबलेन ॥
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