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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 2
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    367

    र॒श्मिभि॒र्नभ॒ आभृ॑तं महे॒न्द्र ए॒त्यावृ॑तः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    र॒श्मिऽभि॑: । नभ॑: । आऽभृ॑तम् । म॒हा॒ऽइ॒न्द्र: । ए॒ति॒ । आऽवृ॑त:॥४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    रश्मिभिर्नभ आभृतं महेन्द्र एत्यावृतः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    रश्मिऽभि: । नभ: । आऽभृतम् । महाऽइन्द्र: । एति । आऽवृत:॥४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (महेन्द्रः) बड़ा ऐश्वर्यवान् (आवृतः) सब ओर से ढका हुआ [अन्तर्यामी परमेश्वर] (रश्मिभिः) किरणों द्वारा (आभृतम्) सब प्रकार पुष्ट किये हुए (नभः) मेघमण्डल में (एति) व्यापक है ॥२॥

    भावार्थ

    अन्तर्यामी परमात्मा के नियम से जल किरणों द्वारा खिंच कर मेघमण्डल में वृष्टि के लिये वर्तमान होता है ॥२॥मन्त्र ३, ४, ५, ६ और ७ के पीछे आवृत्ति का चिह्न गवर्नमेन्ट बुकडिपो बम्बई और वैदिक यन्त्रालय अजमेर के पुस्तकों में दिया है, अर्थात् मन्त्र २ की आवृत्ति मानी है। परन्तु यह चिह्न प० सेवकलालवाले पुस्तक में नहीं है और न कुछ लेख इसके विषय में ग्रिफ़्फिथ साहिब और ह्विटनी साहिब के अनुवाद में है ॥

    टिप्पणी

    २−(रश्मिभिः) किरणैः (नभः) मेघमण्डलम् (आभृतम्) समन्तात् पोषितम् (महेन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (एति) व्याप्नोति (आवृतः) आच्छादितोऽन्तर्यामिरूपेण परमात्मा ॥

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    विषय

    सविता महेन्द्रः

    पदार्थ

    १. (स:) = वह (सविता) = सर्वोत्पादक व सर्वप्रेरक (स्व:) = प्रकाशमय प्रभु (दिवः पृष्ठे) = [पृष्ठात् पृथिव्या अहमन्तरिक्षमारुहमन्तरिक्षाडिवमारुहम्। दिवो नकस्य पृष्ठात् स्वरज्योतिरगामहम्॥] द्युलोक के पृष्ठ पर-मोक्षधाम में (अवचाकशत्) = प्रकाश करता हुआ (एति) = प्राप्त होता है। मनुष्य जब पृथिवीपृष्ठ से ऊपर उठता है, अर्थात् भोग्य वस्तुओं की कामना से ऊपर उठता है और अन्तरिक्ष से भी ऊपर उठता है, अर्थात् हृदय में यशादि की कामना से भी रहित होता है तब धुलोक में पहुँचता है, अर्थात् ज्ञानरुचिवाला होता हुआ सदा ज्ञान में विचरण करता है। इसमें भी आसक्तियुक्त न होता हुआ यह स्वरज्योति प्रभु को प्राप्त करता है। यहाँ उसे प्रभु का प्रकाश प्रास होता है। २. उस समय (रश्मिभिः) = ज्ञान की किरणों से (नभः आभृतम्) = उसका मस्तिष्करूप युलोक व ददयाकाश (आ-भृत) = हो जाता है-वहाँ प्रकाश-ही-प्रकाश होता है-वहाँ अन्धकार का चिह भी नहीं होता। उस समय इसके हृदयदेश में (आवृत:)-प्रकाश से समन्तात् आच्छादित प्रकाशमय (महेन्द्र:) = महान् ऐश्वर्यशाली प्रभु (एति) = प्राप्त होते हैं।

    भावार्थ

    जब हम पृथिवी, अन्तरिक्ष व धुलोक से ऊपर उठकर मोक्षलोक में पहुँचते हैं तब वे प्रभु प्रकाश प्राप्त कराते हुए हमें प्राप्त होते हैं। यह मुक्तात्मा सम्पूर्ण आकाश भृको प्रभु के प्रकाश से व्याप्त देखता है। इस जीवन्मुक्त के हृदयदेश में प्रकाश से आवृत प्रभु प्राप्त होते हैं।

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    भाषार्थ

    (रश्मिभिः) रश्मियों द्वारा (नमः) हृदयाकाश (आभृतम्) भर गया है, क्योंकि (आवृतः) ढका हुआ (महेन्द्रः) महेश्वर (एति) हृदयाकाश में आया है।

    टिप्पणी

    [महेन्द्र अर्थात् महेश्वर (सविता) जब हृदयाकाश में प्रकट होता हैं तब महेश्वर के प्रकाश से हृदयाकाश भर जाता है (छान्द० उप० अध्याय ८ खण्ड १, सन्दर्भ १-३)। आभृतम् = भृञ् भरणे (भ्वादि)। सूर्य पक्ष में नभः = मेघ। महेन्द्र= विद्युत् आकाश में ढकी रहती है। वर्षा काल में मेघ में आ प्रकट होती है]।

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    विषय

    रोहित, परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    सूर्य की (रश्मिभिः) किरणों से (नभः) अन्तरिक्ष भाग जिस प्रकार (आभृतम्) पूर्ण हो जाता है उसी प्रकार परम आत्मा के प्रकाश ज्योतियों से (नभः) अप्रकाशमान समस्त जड़ जगत् (आभृतम्) पूर्णरूप जगमगाता है। और (महेन्द्रः) वह महान्, इन्द्र ऐश्वर्यवान् (आवृतः एति) प्रकाश से आवृत विभूतिमान् होकर समस्त लोकों से आवृत है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्मं रोहितादित्यो देवता। त्रिष्टुप छन्दः। षट्पर्यायाः। मन्त्रोक्ता देवताः। १-११ प्राजापत्यानुष्टुभः, १२ विराङ्गायत्री, १३ आसुरी उष्णिक्। त्रयोदशर्चं प्रथमं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    The sky is full, overflows with light; wrapped radiant with divine light, Mahendra, the great omnipotent, comes (towards the heart core).

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    Translation

    The great resplendent Lord comes to the dimmed sky surrounded with rays.

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    Translation

    This space is filled with rays of light and Almighty Divinity covered in His refulgence pervedas this.

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    Translation

    Just as the entire atmosphere is filled with the rays of the Sun, so the entire inanimate world shines with the Lustre of God. Great God pervades all the worlds with His refulgence.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २−(रश्मिभिः) किरणैः (नभः) मेघमण्डलम् (आभृतम्) समन्तात् पोषितम् (महेन्द्रः) परमैश्वर्यवान् (एति) व्याप्नोति (आवृतः) आच्छादितोऽन्तर्यामिरूपेण परमात्मा ॥

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