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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 39
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - आसुरी गायत्री सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    56

    स वै य॒ज्ञाद॑जायत॒ तस्मा॑द्य॒ज्ञोजा॑यत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । वै । य॒ज्ञात् । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । य॒ज्ञ: । अ॒जा॒य॒त॒ ॥७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वै यज्ञादजायत तस्माद्यज्ञोजायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । वै । यज्ञात् । अजायत । तस्मात् । यज्ञ: । अजायत ॥७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 39
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [परमात्मा] (वै) अवश्य (यज्ञात्) यज्ञ [संयोग-वियोग व्यवहार] से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [परमात्मा] से (यज्ञः) यज्ञ [संयोग-वियोग व्यवहार] (अजायत) उत्पन्न हुआ है ॥३९॥

    भावार्थ

    परमात्मा ने परमाणुओं के संयोग-वियोग से सृष्टि रचकर अपनी महिमा दिखायी है ॥३९॥

    टिप्पणी

    ३९−(यज्ञात्) यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु-नङ्। परमाणूनां संयोगवियोगव्यवहारात् (यज्ञः) संयोगवियोगव्यवहारः। अन्यद् गतम् ॥

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    पदार्थ

    १. (सः) = वह प्रभु (वै) = निश्चय से (भूमे:) = इस भूमि से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाला हो रहा है। यह भूमि अपने से उत्पन्न होनेवाले विविध वनस्पतियों के पत्र-पुष्पों में विविध पुण्यगन्धों को प्राप्त करा रही है। किन्हीं भी दो वनस्पतियों की गन्ध एक-सी नहीं, क्या ही अद्भुत चमत्कार-सा है! (भूमिः) = यह भूमि (तस्मात्) = उस प्रभु से ही तो (अजायत) = उत्पन्न हुई है। २. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अग्नेः) = अग्नि से (अजायत) = प्रादुर्भूत होता है। मिलाने व फाड़ने [संयुक्त व वियुक्त करने] की विरोधी शक्तियों को लिये हुए यह अग्नि भी विचित्र ही तत्त्व है। तस्मात् उस प्रभु से ही अग्निः (अजायत) = अग्नि उत्पन्न किया गया है। ३. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अद्भ्यः) = सब वनस्पतियों में विविध रसों का संचार करनेवाले जलों से (अजायत) = प्रादुर्भत महिमावाला होता है। तस्मात्-उस प्रभु से ही तो (आपः अजायन्त) = जल प्रादुर्भूत हुए हैं। ४. (सः वा) = यह प्रभु निश्चय से (ऋग्भ्यः) = ऋचाओं से (अजायत) = प्रादुर्भूत हो रहा है। किसप्रकार ये ऋचाएँ सम्पूर्ण प्रकृति-विज्ञान को प्रकट कर रही हैं? तस्मात् ऋचा: अजायन्त-उस प्रभु ने सृष्टि के आरम्भ में ही इन ऋचाओं का ज्ञान दिया है। ५. (सः वै) = वह प्रभु निश्चय से (यज्ञात्) = यज्ञ से (अजायत) = प्रकट हो रहा है, किसप्रकार 'यज्ञ' पर्जन्य को उत्पन्न कर वृष्टि द्वारा अन्नों का उत्पादन करके हमारे जीवन का आधार बनता है? तस्मात् यज्ञः (अजायत) = प्रभु से ही प्रजाओं के साथ ही इस यज्ञ का भी प्रादुर्भाव किया गया है। यज्ञ ही जीवन है।

    भावार्थ

    'भूमि, अग्नि, जल, ऋचाओं व यज्ञों' में इस प्रभु की महिमा का प्रादुर्भाव हो रहा  है|

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    भाषार्थ

    (सः वै) वह निश्चय से (यज्ञात्) यज्ञ से (अजायत) प्रकट हुआ है, क्योंकि (तस्मात्) उस से (यज्ञः) यज्ञ (अजायत) पैदा हुआ है।

    टिप्पणी

    [यज्ञः = एकवचन के कारण, सत्त्व-रजस्-तमस् के परस्पर संगम द्वारा उत्पन्न, संसार यज्ञ यहां अभिप्रेत प्रतीत होता है। अथर्व० ११।३ (३)। ५२, ५३ मन्त्र, इस सम्बन्ध में निम्नरूप हैं यथा:- एतस्माद्वा ओदनात्त्रयस्त्रिंशतं लोकान्निरमिमीत प्रजापतिः ॥५२|| तेषां प्रज्ञानाय यज्ञमसृजत ॥५३॥ मन्त्रों का अभिप्राय यह है कि प्रजापति ने ३३ लोकों का निर्माण किया। उन के प्रज्ञान के लिये उस ने यज्ञ सृजा। यहां यज्ञ से संसार यज्ञ अभिप्रेत प्रतीत होता है१। ३३ लोकों में समग्र-संसार की व्याप्ति है। इन के स्वरूपों के ज्ञान के लिये ही परमेश्वर ने इन्हें रचा है, ताकि इन का यथावत् प्रयोग और उपयोग किया जा सके। [१. अथर्व० (१९।७।५-१९) में नाना यज्ञों तथा यज्ञांगों का कथन हुआ है, जिन के स्वरूपों का वर्णन, अथर्व० में नहीं। ब्राह्मण ग्रन्थों में इन के स्वरूपों का वर्णन हुआ है। ब्राह्मण ग्रन्थों में वर्णित इनके स्वरूप अथर्ववेदाभिमत हैं, या नहीं-यह विचार योग्य है।]

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    विषय

    परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (सः वै यज्ञाद् अजायत्) वह यज्ञ से प्रकट होता है और उससे यज्ञ उत्पन्न होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    २९, ३३, ३९, ४०, ४५ आसुरीगायत्र्यः, ३०, ३२, ३५, ३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुभः, ३१ विराड़ गायत्री ३४, ३७, ३८ साम्न्युष्णिहः, ४२ साम्नीबृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्न्यनुष्टुप्। सप्तदशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    And he is born of yajna, since yajna is born of him since creation.

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    Translation

    He, indeed, is born of the sacrifice; the sacrifice is born of him.

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    Translation

    He (as creator) comes to expression from the Yajna.therefore, the Yajna emerges out from Him (as an efficient cause).

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    Translation

    The existence of God is perceived by performing sacrifice (Yajna,) which in reality is ordained by Him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३९−(यज्ञात्) यज देवपूजासंगतिकरणदानेषु-नङ्। परमाणूनां संयोगवियोगव्यवहारात् (यज्ञः) संयोगवियोगव्यवहारः। अन्यद् गतम् ॥

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