अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 23
ऋषिः - ब्रह्मा
देवता - अध्यात्मम्
छन्दः - आर्ची गायत्री
सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
107
भू॒तं च॒ भव्यं॑ च श्र॒द्धा च॒ रुचि॑श्च स्व॒र्गश्च॑ स्व॒धा च॑ ॥
स्वर सहित पद पाठभू॒तम् । च॒ । भव्य॑म् । च॒ । श्र॒ध्दा । च॒ । रुचि॑: । च॒ । स्व॒ऽग: । च॒ । स्व॒धा । च॒ ॥६.२॥
स्वर रहित मन्त्र
भूतं च भव्यं च श्रद्धा च रुचिश्च स्वर्गश्च स्वधा च ॥
स्वर रहित पद पाठभूतम् । च । भव्यम् । च । श्रध्दा । च । रुचि: । च । स्वऽग: । च । स्वधा । च ॥६.२॥
भाष्य भाग
हिन्दी (4)
विषय
परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।
पदार्थ
(भूतम्) अतीत वस्तु (च) और (भव्यम्) होनहार वस्तु (च) और (श्रद्धा) श्रद्धा [विश्वास] (च) और (रुचिः) रुचि [प्रीति] (च) और (स्वर्गः) स्वर्ग [आनन्द] (च च) और (स्वधा) आत्मधारण शक्ति [उस पुरुष के लिये होते हैं] ॥२३॥
भावार्थ
जो मनुष्य परमात्मा के गुणों को साक्षात् करते हैं, वे ही संसार में अनेक प्रकार आत्मोन्नति करके अनेक आनन्द पाते हैं ॥२२-२४॥
टिप्पणी
२३−(भूतम्) अतीतं वस्तु (च) (भव्यम्) भविष्यद् वस्तु (च) (श्रद्धा) विश्वासः (रुचिः) प्रीतिः (च) (स्वर्गः) सुखप्रापकः। आनन्दः (च) (स्वधा) आत्मधारणशक्तिः (च) ॥
विषय
ब्रह्म च तपः च
पदार्थ
१. (य:) = जो भी (एतं देवम्) = इस प्रकाशमय प्रभु को (एकवृतं वेद) = एकत्वेन वर्तमान जानता है, वह (ब्रह्म च तप: च) = वेदज्ञान व तपस्वी जीवन को (कीर्तिं च यश: च) = प्रभु कीर्तन से प्राप्त होनेवाले (यशः) = को तथा लोकहित में प्रवृत्तिजन्य यश को, (अम्भः च नभः च) = ज्ञानजल को व प्रबन्ध-सामर्थ्य को (ब्रह्मवर्चसं च) = ब्रह्मतेज को, (अन्नं च अन्नाद्यं च) = अन्न को व अन्न-भक्षण सामर्थ्य को, (भूतं च भव्यं च) = यशस्वी भूत व यशस्वी भविष्य को (श्रद्धा च रुचि: च) = उत्तम कर्मों में श्रद्धा व प्रीति को और परिणामत: (स्वर्ग:च स्वधा च) = सुखमय स्थिति व आत्मधारण शक्ति को प्राप्त करता है।
भावार्थ
प्रभु की अद्वितीय सत्ता में विश्वास रखनेवाला व्यक्ति भौतिक व आध्यात्मिक जीवन को उत्कृष्ट बनाता हुआ यशस्वी जीवनवाला बनता है। इसके भूत व भविष्यत् दोनों ही सुन्दर होते हैं। वर्तमान में वह उत्तम कर्मों में श्रद्धा व प्रीतिवाला होकर सुखमय स्थिति व आत्मधारणशक्ति को प्राप्त करता है।
भाषार्थ
(भूतं च, भव्यं च) भूत और भविष्य का ज्ञान, (श्रद्धा च, रुचिः च) श्रद्धा और श्रद्धेय में रुचि, (स्वर्गः च, स्वधा च) स्वर्ग और स्वधारणशक्ति अर्थात् स्वावलम्बिता ॥२॥ होते हैं,
टिप्पणी
[कीर्तिः = कृत संशब्दे= संकीर्तन। भूतं च भव्यं च= यथा परिणाम त्रयसंयमादतीतानागतज्ञानम् (योग ३।१६), अर्थात् धर्मपरिणाम, लक्षण परिणाम और अवस्थापरिणाम में संयम द्वारा वस्तु सम्बन्धी अतीत (भूत) और अनागत (भविष्य) का परिज्ञान होता है (देखो सूत्र पर व्यासभाष्य)। अम्भः = अम् गत्यादिषु। अत्र गतिः = ज्ञानम्। गतेस्त्रयोऽर्थाः ज्ञानं गतिः प्राप्तिश्च। अम्+भः (भा दीप्तौ)। नमः = णम् हिंसायाम्]। [१. वेद साक्षात्कार।]
विषय
परमेश्वर का वर्णन
भावार्थ
(यः एतं देवम्) जो इस देव को (एकवृतं वेद) एकमात्र, अखण्ड, एकरस, चेतनरूप से वर्तमान जान लेता है उसको (ब्रह्म च) साक्षात् ब्रह्म-वेद, (तपः च) तप, (कीर्तिः च) कीर्ति, (यशः च) यश, (अम्भः चः) व्यापकशक्ति, (नभः च) बल, प्रबन्धकशक्ति, (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मणों का ब्रह्मतेज (अन्नं च) अन्न और (अन्नाद्यं च) अन्न आदि का भोग सामर्थ्य, इसी प्रकार (भूतं च) भूतकाल (भव्यं च) भव्य, भविष्यत् (श्रद्धा च) सत्य धारणा (रुचिः) रुचि, कान्ति, यथेष्ट अभिलाषा, (स्वर्गः च) सुखमय लोक (स्वधा च) और ‘अमृत’ मोक्षपद भी प्राप्त होता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
२२ भुरिक् प्राजापत्या त्रिष्टुप्, २३ आर्ची गायत्री, २५ एकपदा आसुरी गायत्री, २६ आर्ची अनुष्टुप् २७, २८ प्राजापत्याऽनुष्टुप्। सप्तर्चं तृतीयं पर्यायसूक्तम्॥
इंग्लिश (4)
Subject
Savita, Aditya, Rohita, the Spirit
Meaning
Past achievement, present and future possibilities, faith, lustre and pleasure, happiness and bliss, and identity.
Translation
Past and present and future, and faith, and beauty and heaven and sustainance (he gets).
Translation
The past, future, faith, luster, happiness and self stamina acquire him. (See 24th verse).
Translation
And past and future, and faith and lustre, and joy and spiritual power are acquired by him.
संस्कृत (1)
सूचना
कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।
टिप्पणीः
२३−(भूतम्) अतीतं वस्तु (च) (भव्यम्) भविष्यद् वस्तु (च) (श्रद्धा) विश्वासः (रुचिः) प्रीतिः (च) (स्वर्गः) सुखप्रापकः। आनन्दः (च) (स्वधा) आत्मधारणशक्तिः (च) ॥
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