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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 24
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - आसुरी पङ्क्तिः सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    86

    य ए॒तं दे॒वमे॑क॒वृतं॒ वेद॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    य: । ए॒तम् । दे॒वम् । ए॒क॒ऽवृत॑म् । वेद॑ ॥६.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    य एतं देवमेकवृतं वेद ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    य: । एतम् । देवम् । एकऽवृतम् । वेद ॥६.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 24
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (यः) जो (एतम्) इस (देवम्) प्रकाशमय (एकवृतम्) अकेले वर्तमान [परमात्मा] को (वेद) जानता है ॥२४॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य परमात्मा के गुणों को साक्षात् करते हैं, वे ही संसार में अनेक प्रकार आत्मोन्नति करके अनेक आनन्द पाते हैं ॥२२-२४॥

    टिप्पणी

    २४−अयं व्याख्यातः-म० १५ ॥

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    विषय

    ब्रह्म च तपः च

    पदार्थ

    १. (य:) = जो भी (एतं देवम्) = इस प्रकाशमय प्रभु को (एकवृतं वेद) = एकत्वेन वर्तमान जानता है, वह (ब्रह्म च तप: च) = वेदज्ञान व तपस्वी जीवन को (कीर्तिं च यश: च) = प्रभु कीर्तन से प्राप्त होनेवाले (यशः) = को तथा लोकहित में प्रवृत्तिजन्य यश को, (अम्भः च नभः च) = ज्ञानजल को व प्रबन्ध-सामर्थ्य को (ब्रह्मवर्चसं च) = ब्रह्मतेज को, (अन्नं च अन्नाद्यं च) = अन्न को व अन्न-भक्षण सामर्थ्य को, (भूतं च भव्यं च) = यशस्वी भूत व यशस्वी भविष्य को (श्रद्धा च रुचि: च) = उत्तम कर्मों में श्रद्धा व प्रीति को और परिणामत: (स्वर्ग:च स्वधा च) = सुखमय स्थिति व आत्मधारण शक्ति को प्राप्त करता है।

    भावार्थ

    प्रभु की अद्वितीय सत्ता में विश्वास रखनेवाला व्यक्ति भौतिक व आध्यात्मिक जीवन को उत्कृष्ट बनाता हुआ यशस्वी जीवनवाला बनता है। इसके भूत व भविष्यत् दोनों ही सुन्दर होते हैं। वर्तमान में वह उत्तम कर्मों में श्रद्धा व प्रीतिवाला होकर सुखमय स्थिति व आत्मधारणशक्ति को प्राप्त करता है।

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    भाषार्थ

    (यः) जो व्यक्ति (एतम्) इस सविता परमेश्वर को (एकवृतम् देवम्) एकमात्र देव (वेद)१ जानता है।

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    विषय

    परमेश्वर का वर्णन

    भावार्थ

    (यः एतं देवम्) जो इस देव को (एकवृतं वेद) एकमात्र, अखण्ड, एकरस, चेतनरूप से वर्तमान जान लेता है उसको (ब्रह्म च) साक्षात् ब्रह्म-वेद, (तपः च) तप, (कीर्तिः च) कीर्ति, (यशः च) यश, (अम्भः चः) व्यापकशक्ति, (नभः च) बल, प्रबन्धकशक्ति, (ब्राह्मणवर्चसम्) ब्राह्मणों का ब्रह्मतेज (अन्नं च) अन्न और (अन्नाद्यं च) अन्न आदि का भोग सामर्थ्य, इसी प्रकार (भूतं च) भूतकाल (भव्यं च) भव्य, भविष्यत् (श्रद्धा च) सत्य धारणा (रुचिः) रुचि, कान्ति, यथेष्ट अभिलाषा, (स्वर्गः च) सुखमय लोक (स्वधा च) और ‘अमृत’ मोक्षपद भी प्राप्त होता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    २२ भुरिक् प्राजापत्या त्रिष्टुप्, २३ आर्ची गायत्री, २५ एकपदा आसुरी गायत्री, २६ आर्ची अनुष्टुप् २७, २८ प्राजापत्याऽनुष्टुप्। सप्तर्चं तृतीयं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    Belong to him who knows this refulgent Savita as the One and only One all concentrated Being.

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    Translation

    Who realizes this Lord as the only acceptable one. (See also Av. XIII.4.15)

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    Translation

    Who knows this omnipotent God as one,only one and second to none.

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    Translation

    Who knoweth this God as One.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २४−अयं व्याख्यातः-म० १५ ॥

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