Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 56
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - निचृत्साम्नी बृहती सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    125

    अ॒न्नाद्ये॑न॒ यश॑सा॒ तेज॑सा ब्राह्मणवर्च॒सेन॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒न्न॒ऽअद्ये॑न । यश॑सा । तेज॑सा । ब्रा॒ह्म॒ण॒ऽव॒र्च॒सेन॑ ॥९.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अन्नाद्येन यशसा तेजसा ब्राह्मणवर्चसेन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अन्नऽअद्येन । यशसा । तेजसा । ब्राह्मणऽवर्चसेन ॥९.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 56
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (पश्यत) हे देखनेवाले [जगदीश्वर !] (ते) तेरे लिये (नमः) नमस्कार (अस्तु) होवे, (पश्यत) हे देखनेवाले ! (मा) मुझको (अन्नाद्येन) भोजनयोग्य अन्न आदि के साथ, (यशसा) यश [शूरता आदि से पाये हुए नाम] के साथ, (तेजसा) तेज [निर्भयता, प्रताप] के साथ और (ब्राह्मणवर्चसा) वेदज्ञान के साथ (पश्य) देख ॥५५, ५६॥

    भावार्थ

    मनुष्य सर्वद्रष्टा परमात्मा की उपासना से पुरुषार्थ और विवेकपूर्वक सब आवश्यक पदार्थ पाकर आनन्द भोगें ॥५५, ५६॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः ॥इत्यष्टाविंशः प्रपाठकः ॥ इति त्रयोदशं काण्डम् ॥ इति श्रीमद्राजाधिराजप्रथितमहागुणमहिमश्रीसयाजीरावगायकवाड़ाधिष्ठितबड़ोदेपुरीगतश्रावणमासपरीक्षायाम् ऋक्सामाथर्ववेदभाष्येषु लब्धदक्षिणेन श्रीपण्डितक्षेमकरणदासत्रिवेदिना कृते अथर्ववेदभाष्ये त्रयोदशं काण्डं समाप्तम् ॥

    टिप्पणी

    ५५, ५६−सर्वं पूर्ववत्-म० ४८, ४९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    उरुः पृथुः भवद्धसु:

    पदार्थ

    १.हे प्रभो! (वयम्) = हम (त्वा) = आपको (उरु:) = सर्वोत्तम [Excellent] (प्रथ:) = सर्वमहान् [Important] (सुभूः) = उत्तम शक्तिरूप में सब पदार्थों में वर्तमान (भुव:) = सबका उत्पत्ति-स्थान (इति) = इस रूप में (उपास्महे) = उपासित करते हैं। २. हे प्रभो! (वयम्) = हम (त्वा) = आपको प्रथ:-सर्वज्ञ विस्तृत वर:-सर्वश्रेष्ठ, वरणीय व्यच: सर्वव्यापक, (लोक:) = सर्वद्रष्टा (इति) = इस रूप में (उपास्महे) = उपासित करते हैं। ३. हे प्रभो! (वयम्) = हम (त्वा) = आपको भवद्वसुः-[भवन्ति वसूनि यस्मात्] सब वसुओं का उद्भव, (इदवसः) = [इन्दन्ति वसवः श्रेष्ठाः यस्मात्] श्रेष्ठों को ऐश्वर्यशाली बनानेवाला, (संयवसः) = पृथिवी आदि सब वसुओं का नियमन करनेवाला, (आयद्वसुः) = सब निवास-साधनों का विस्तार करनेवाला [आयच्छति विस्तारयति इति] (इति) = इस रूप में (उपास्महे) = उपासित करते है। ४. हे (पश्यत) = सर्वद्रष्टः प्रभो! (ते नमः अस्तु) = आपके लिए नमस्कार हो। (पश्यत) = हे सर्वद्रष्टः! (मा पश्य) = आप मेरा पालन कीजिए [Look-after] मुझे 'अन्नाद्य, यश, तेज व ब्रह्मवर्चस्' प्रास कराइए।

    भावार्थ

    प्रभु उरु हैं, पृथु हैं, भवद्वसु हैं। ये सर्वद्रष्टा प्रभु मुझे अन्नाद्य, यश, तेज व ब्रह्मवर्चस् प्राप्त कराएं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (अन्नाद्येन) खाद्य अन्न से, (यशसा) यश से, (तेजसा) तेज से, (ब्राह्मणवर्चसेन) ब्रह्मज्ञों की दीप्ति से [युक्त हमें करके, कृपादृष्टि से देख]।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    व्याख्या देखो पञ्चम पर्याय सूक्त के ४८, ४९ मन्त्र॥

    टिप्पणी

    ॥ इति चतुर्थोऽनुवाकः॥ [ तत्र षट्पर्यायैर्युक्तम् एकं सूक्तम् ऋचश्च षट्पंचाशत् ] इति त्रयोदशं काण्डं समाप्तम्। चतुर्भिरनुवाकैश्च सूक्तैश्चापि चतुर्मितैः। अष्टाशीतिशतेनर्ग्भिः पूर्यतेऽसौ त्रयोदशः॥ वाणवस्वंङ्कचन्द्राब्दाषाढकृष्णाष्टमीतिथौ॥ शशाङ्केऽथर्वणः काण्डं त्रयोदशमपूर्यत॥ इति प्रतिष्ठित विद्यालंकार-मीमांसातीर्थविरुदोपशोभित-श्रीमज्जयदेवशर्मणा विरचितेऽथर्वणो ब्रह्मवेदस्यालोकभाष्ये त्रयोदशं काण्डं समाप्तम्।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ५२, ५३ प्राजापत्यानुष्टुभौ, ५४ आर्षी गायत्री, शेषास्त्रिष्टुभः। पञ्चर्चं षष्ठं पर्यायसूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    Bless me with food, nourishment and good health, honour and fame, lustre and splendour, and the vision and brilliance worthy of a Brahmana dedicated to Brahma.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    With edible food, with fame, with radiance and with intellectual brilliance. (See also Av. XIII.4.49)

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    With nourishment,prominence,splendor and the knowledge That Brahmana possesses.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    Equip me, O God, with food and fame, with vigour, and with the splendour of a Vedic scholar!

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ५५, ५६−सर्वं पूर्ववत्-म० ४८, ४९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top