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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 35
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    54

    स वै भूमे॑रजायत॒ तस्मा॒द्भूमि॑रजायत ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । वै । भूमे॑: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । भूमि॑: । अ॒जा॒य॒त॒ ॥७.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वै भूमेरजायत तस्माद्भूमिरजायत ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । वै । भूमे: । अजायत । तस्मात् । भूमि: । अजायत ॥७.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 35
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (भूमेः) [कार्यरूप] भूमि से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (भूमिः) भूमि (अजायत) उत्पन्न हुई है ॥३५॥

    भावार्थ

    मन्त्र २९ के समान ॥३५॥

    टिप्पणी

    ३५−(भूमेः) कार्यरूपायाः पृथिव्याः (भूमिः) पृथिवी। अन्यद् गतम् ॥

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    पदार्थ

    १. (सः) = वह प्रभु (वै) = निश्चय से (भूमे:) = इस भूमि से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाला हो रहा है। यह भूमि अपने से उत्पन्न होनेवाले विविध वनस्पतियों के पत्र-पुष्पों में विविध पुण्यगन्धों को प्राप्त करा रही है। किन्हीं भी दो वनस्पतियों की गन्ध एक-सी नहीं, क्या ही अद्भुत चमत्कार-सा है! (भूमिः) = यह भूमि (तस्मात्) = उस प्रभु से ही तो (अजायत) = उत्पन्न हुई है। २. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अग्नेः) = अग्नि से (अजायत) = प्रादुर्भूत होता है। मिलाने व फाड़ने [संयुक्त व वियुक्त करने] की विरोधी शक्तियों को लिये हुए यह अग्नि भी विचित्र ही तत्त्व है। तस्मात् उस प्रभु से ही अग्निः (अजायत) = अग्नि उत्पन्न किया गया है। ३. (सः वा) = वह प्रभु निश्चय से (अद्भ्यः) = सब वनस्पतियों में विविध रसों का संचार करनेवाले जलों से (अजायत) = प्रादुर्भत महिमावाला होता है। तस्मात्-उस प्रभु से ही तो (आपः अजायन्त) = जल प्रादुर्भूत हुए हैं। ४. (सः वा) = यह प्रभु निश्चय से (ऋग्भ्यः) = ऋचाओं से (अजायत) = प्रादुर्भूत हो रहा है। किसप्रकार ये ऋचाएँ सम्पूर्ण प्रकृति-विज्ञान को प्रकट कर रही हैं? तस्मात् ऋचा: अजायन्त-उस प्रभु ने सृष्टि के आरम्भ में ही इन ऋचाओं का ज्ञान दिया है। ५. (सः वै) = वह प्रभु निश्चय से (यज्ञात्) = यज्ञ से (अजायत) = प्रकट हो रहा है, किसप्रकार 'यज्ञ' पर्जन्य को उत्पन्न कर वृष्टि द्वारा अन्नों का उत्पादन करके हमारे जीवन का आधार बनता है? तस्मात् यज्ञः (अजायत) = प्रभु से ही प्रजाओं के साथ ही इस यज्ञ का भी प्रादुर्भाव किया गया है। यज्ञ ही जीवन है।

    विशेष

    'भूमि, अग्नि, जल, ऋचाओं व यज्ञों' में इस प्रभु की महिमा का प्रादुर्भाव हो रहा  है|

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    भाषार्थ

    (सः वै) वह निश्चय से (भुमेः) भूमि से (अजायत) प्रकट हुआ है, क्योंकि (तस्मात्) उस से (भूमिः) भूमि (अजायत) पैदा हुई है।

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    विषय

    परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    उसी प्रकार (सः वै भूमेः अजायत) वह भूमि से प्रकट होता (तस्माद् भूमिः अजायत) और उससे यह भूमि उत्पन्न होती है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    २९, ३३, ३९, ४०, ४५ आसुरीगायत्र्यः, ३०, ३२, ३५, ३६, ४२ प्राजापत्याऽनुष्टुभः, ३१ विराड़ गायत्री ३४, ३७, ३८ साम्न्युष्णिहः, ४२ साम्नीबृहती, ४३ आर्षी गायत्री, ४४ साम्न्यनुष्टुप्। सप्तदशर्चं चतुर्थं पर्यायसूक्तम्॥

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    He is manifest from the earth, since the earth is born of him through his manifestation.

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    Translation

    He, indeed, is born of the earth; the earth is born of him.

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    Translation

    He (as creator) comes to expression from the earth, therefore, the earth emerges out from Him (as an efficient cause).

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    Translation

    The existence of God is perceived by beholding the Earth, which in reality is created by Him.

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३५−(भूमेः) कार्यरूपायाः पृथिव्याः (भूमिः) पृथिवी। अन्यद् गतम् ॥

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