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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 34
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - साम्न्युष्णिक् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    46

    स वै दि॒ग्भ्योजा॑यत॒ तस्मा॒द्दिशोजायन्त ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । वै । दि॒क्ऽभ्य: । अ॒जा॒य॒त॒ । तस्मा॑त् । दिश॑: । अ॒जा॒य॒न्त॒ ॥७.६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स वै दिग्भ्योजायत तस्माद्दिशोजायन्त ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । वै । दिक्ऽभ्य: । अजायत । तस्मात् । दिश: । अजायन्त ॥७.६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 34
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [कारणरूप ईश्वर] (वै) अवश्य (दिग्भ्यः) [कार्यरूप] दिशाओं से (अजायत) प्रकट हुआ है, (तस्मात्) उस [कारणरूप] से (दिशः) दिशाएँ (अजायत) उत्पन्न हुई हैं ॥३४॥

    भावार्थ

    मन्त्र २९ के समान ॥३४॥

    टिप्पणी

    ३४−(दिग्भ्यः) कार्यरूपाभ्यो दिशाभ्यः (दिशः) दिशाः (अजायन्त) उदपद्यन्त। अन्यद् गतम् ॥

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    विषय

    'दिन व रात्रि में, अन्तरिक्ष व वायु में', धुलोक व दिशाओं में प्रभु का प्रकाश

    पदार्थ

    १. (स: वा) = वे प्रभु निश्चय से (अह्नः अजायत) = दिन से प्रादुर्भूत हो रहे हैं-दिन की रचना में प्रभु की महिमा का प्रकाश हो रहा है। (तस्मात्) = उस प्रभु से ही तो (अहः अजायत) = यह दिन प्रकट किया गया है। प्रभु ने दिन [अ-हन्] का निर्माण करके मनुष्यों को एक भी क्षण नष्ट न करते हुए आगे बढ़ने का अवसर दिया है। २. इसीप्रकार (सः वै) = वे प्रभु निश्चय से (रात्र्या अजायत) = रात्रि से प्रादुर्भूत हो रहे हैं। किस प्रकार रात्रि रमयित्री-हमारी सारी थकावट को दूर करके हमें प्रफुल्लित कर देती है। (तस्मात् रात्रिः अजायत) = उस प्रभु से ही यह रात्रि प्रादुर्भूत की गई है। ३. (सः वा) = वे प्रभु निश्चय से (अन्तरिक्षात् अजायत) = इस 'वायु चन्द्र, मेष व विद्युत् के आधारभूत अन्तरिक्ष से प्रकट हो रहे हैं। तस्मात्-उस प्रभु से ही अन्तरिक्ष अजायत्-यह अन्तरिक्ष प्रादुर्भूत किया गया है। ४. (सः वै) = वे प्रभु निश्चय से (वायो: अजायत) = वायु से प्रादुर्भूत हो रहे हैं। प्राणिमात्र के जीवन की कारणभूत ये वायु भी उस प्रभु की अद्भुत ही सृष्टि है। (तस्मात्) = उस प्रभु से ही (वायुः अजायत) = उस जीवनप्रद वायु का प्रादुर्भाव किया गया है। ५. (स: वै) = वे प्रभु निश्चय से (दिवः) = सूर्य के आधारभूत इस द्युलोक से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाले हो रहे हैं। सम्पूर्ण प्रकाशमय व प्राणशक्ति का स्रोत कितना अद्भुत है यह सूर्य! (तस्मात्) = उस प्रभु से ही (द्यौः) = सूर्य-प्रकाश से देदीप्यमान यह द्युलोक अध्यजायत उत्पन्न किया गया है। ६. (स: वै) = वे प्रभु निश्चय से (दिग्भ्यः) = इन प्राची आदि दिशाओं से (अजायत) = प्रादुर्भूत महिमावाले हो रहे हैं। उत्तर-दक्षिण में किस प्रकार चुम्बकीय शक्ति कार्य करती है और किस प्रकार सूर्यादि सब पिण्ड पूर्व से पश्चिम की ओर गति कर रहे हैं? यह सब-कुछ अद्भुत ही है। (तस्मात्) = इस प्रभु से (दिश: अजायन्त) = इन दिशाओं का प्रादुर्भाव किया गया है।

    भावार्थ

    दिन व रात्रि में, अन्तरिक्ष व वायु में, धुलोक व दिशाओं में सर्वत्र प्रभु की महिमा का प्रकाश हो रहा है।

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    भाषार्थ

    (सः वै) वह निश्चय से (दिग्भ्य) दिशाओं से (अजायत) प्रकट हुआ है, क्योंकि (तस्मात्) उस से (दिशः) दिशाएँ (अजायन्त) पैदा हुई हैं।

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    इंग्लिश (4)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    He is manifest from the quarters of space, since the quarters of space are born of him through his manifestation.

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    Translation

    He, indeed, is born of the quarters; the quarters are born of him.

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    Translation

    He (as creator) comes to expression from the regions of the sky therefore, the regions of sky emerges out from Him (as an efficient cause).

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    Translation

    The existence of God is perceived by beholding the regions, which in reality are created by Him

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    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ३४−(दिग्भ्यः) कार्यरूपाभ्यो दिशाभ्यः (दिशः) दिशाः (अजायन्त) उदपद्यन्त। अन्यद् गतम् ॥

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