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  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 28
    सूक्त - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    31

    तस्या॒मू सर्वा॒ नक्ष॑त्रा॒ वशे॑ च॒न्द्रम॑सा स॒ह ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तस्य॑ । अ॒म् । सर्वा॑ । नक्ष॑त्रा । वशे॑ । च॒न्द्रम॑सा । स॒ह ॥६.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तस्यामू सर्वा नक्षत्रा वशे चन्द्रमसा सह ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तस्य । अम् । सर्वा । नक्षत्रा । वशे । चन्द्रमसा । सह ॥६.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 28
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    हिन्दी (1)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (तस्य) उस [परमात्मा] के (वशे) वश में (अमू) वे (सर्वा) सब (नक्षत्रा) नक्षत्र [चलनेवाले तारा गण] (चन्द्रमसा सह) चन्द्रमा के साथ [वर्तमान हैं] ॥२८॥

    भावार्थ

    उस परमात्मा के आकर्षण धारण नियम में यह सब तारागण आदि ठहरे रहकर घूमते हैं ॥२८॥

    टिप्पणी

    २८−(तस्य) परमेश्वरस्य (अमू) अमूनि (सर्वा) सर्वाणि (नक्षत्रा) गतिशीला तारागणाः (वशे) शासने (चन्द्रमसा) चन्द्रेण (सह) साकम् ॥

    इंग्लिश (1)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    All those stars and constellations including the moon abide under his law and control.

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    २८−(तस्य) परमेश्वरस्य (अमू) अमूनि (सर्वा) सर्वाणि (नक्षत्रा) गतिशीला तारागणाः (वशे) शासने (चन्द्रमसा) चन्द्रेण (सह) साकम् ॥

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