Loading...
मन्त्र चुनें
  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड {"suktas":143,"mantras":958,"kand_no":20}/ सूक्त 4/ मन्त्र 11
    ऋषिः - ब्रह्मा देवता - अध्यात्मम् छन्दः - प्राजापत्यानुष्टुप् सूक्तम् - अध्यात्म सूक्त
    93

    स प्र॒जाभ्यो॒ वि प॑श्यति॒ यच्च॑ प्रा॒णति॒ यच्च॒ न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स: । प्र॒ऽजाभ्य॑: । वि । प॒श्य॒ति॒ । यत् । च॒ । प्रा॒णति॑ । यत् । च॒ । न ॥४.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स प्रजाभ्यो वि पश्यति यच्च प्राणति यच्च न ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स: । प्रऽजाभ्य: । वि । पश्यति । यत् । च । प्राणति । यत् । च । न ॥४.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 13; सूक्त » 4; मन्त्र » 11
    Acknowledgment

    हिन्दी (4)

    विषय

    परमात्मा और जीवात्मा के विषय का उपदेश।

    पदार्थ

    (सः) वह [परमेश्वर] (प्रजाभ्यः) उत्पन्न जीवों के हित के लिये [उस सबको] (वि) विविध प्रकार (पश्यति) देखता है, (यत्) जो (प्राणति) श्वास लेता है (च च) और (यत्) जो (न) नहीं [श्वास लेता है] ॥११॥

    भावार्थ

    जो परमात्मा जङ्गम और स्थावर जगत् की यथावत् सुधि लेकर सबका पालन करता है, उसकी उपासना सब मनुष्य करें ॥११॥इसका मिलान आगे मन्त्र १९ से करो ॥

    टिप्पणी

    ११−(सः) परमेश्वरः (प्रजाभ्यः) उत्पन्नजीवानां हिताय (वि) विविधम् (पश्यति) विलोकयति (यत्) सृष्टिजातम् (च) (प्राणति) प्रश्वसिति (यत्) (च) (न) निषेधे ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    एक: एकवृत, एकः एव

    पदार्थ

    १. (तस्य) = उस प्रभु के (इमे) = ये (नव) = नौ (कोशा:) = निधिरूप इन्द्रियाँ-दो कान, दो नासिका छिद्र, दो आँखें, मुख, गुदा व उपस्थ (विष्टम्भा:) = शरीर के विशिष्ट स्तम्भ हैं ये (नवधा हिता:) = नौ प्रकार से नौ स्थानों में पृथक्-पृथक् स्थापित हुए हैं। इनकी रचना में उस प्रभु की अद्भुत् महिमा दृष्टिगोचर होती है। इनके द्वारा (स:) = वे प्रभु (प्रजाभ्यः विपश्यति) = प्रजाओं का विशेषरूप से ध्यान करते हैं। (यत् च प्राणयति यत् च न) = जो भी प्रजाएँ प्राणधारण कर रही हैं और जो प्राणधारण नहीं कर रही हैं, उन सबको प्रभु धारण कर रहे हैं। २. तम्-उस प्रभु को (इदं सः) = वह शत्रुमर्षक बल (निगतम्) = निश्चय से प्राप्त है। (सः एषः एकः) = वे ये प्रभु एक हैं, (एकवृत्) = एक ही है [एक: वर्तते]। (एकः एव) = निश्चय से एक ही हैं। (अस्मिन्) = इस प्रभु में (एते देवा:) = ये सब देव (एकवृतः) = [एकस्मिन् वर्तन्ते]-एक स्थान में होनेवाले (भवन्ति) = होते हैं। वे प्रभु सब देवों के आधार हैं, प्रभु से ही तो उन्हें देवत्व प्राप्त हो रहा है।

    भावार्थ

    प्रभु ने शरीर में नौ इन्द्रियों को नौ कोशों के रूप में स्थापित किया है। वे प्रभु चराचर जगत् का ध्यान करते हैं। प्रभु को शत्रुमर्षक बल प्राप्त है। प्रभु एक हैं। सब देव इस प्रभु के आधारवाले हैं।

    इस भाष्य को एडिट करें

    भाषार्थ

    (सः) वह सविता (प्रजाभ्यः) प्रजाओं के भले के लिये (वि पश्यति) अलग-अलग रूप में सब को देखता रहता है, अर्थात् (यच्च) जो कि (प्राणति) प्राणधारी है, (यच्च) और जो (न) प्राणधारी नहीं, अर्थात् जड़ है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    रोहित, परमेश्वर का वर्णन।

    भावार्थ

    (सः) वह (यत् च प्राणति) जो प्राण लेता है (यत् च न) और जो प्राण नहीं लेता उन (प्रजाभ्यः) समस्त प्रजाओं को (विपश्यति) विशेषरूप से देखता है। या समस्त प्रजाओं के हित के लिये उन पर निरीक्षण करता है। ‘साक्षी चेता केवलो निर्गुणश्च’। उप०।

    टिप्पणी

    ‘प्रजाभ्यः’ द्वितीयार्थे चतुर्थी। हितार्थे इति ह्विनिः।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ब्रह्मा ऋषिः। अध्यात्मं रोहितादित्यो देवता। त्रिष्टुप छन्दः। षट्पर्यायाः। मन्त्रोक्ता देवताः। १-११ प्राजापत्यानुष्टुभः, १२ विराङ्गायत्री, १३ आसुरी उष्णिक्। त्रयोदशर्चं प्रथमं पर्यायसूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (4)

    Subject

    Savita, Aditya, Rohita, the Spirit

    Meaning

    He, Savita, watches everything for the children of divine creation, all that breathe and those that don’t.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    He oversees the creatures, that who breaths as well as that who breathes not.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    He keeps His watch over the subjects that breath and that do not breath.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Translation

    God keepeth watch over all created objects, that breathe and breathe not.

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    सूचना

    कृपया अस्य मन्त्रस्यार्थम् आर्य(हिन्दी)भाष्ये पश्यत।

    टिप्पणीः

    ११−(सः) परमेश्वरः (प्रजाभ्यः) उत्पन्नजीवानां हिताय (वि) विविधम् (पश्यति) विलोकयति (यत्) सृष्टिजातम् (च) (प्राणति) प्रश्वसिति (यत्) (च) (न) निषेधे ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top