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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 11

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 11/ मन्त्र 5
    सूक्त - भृग्वङ्गिराः देवता - इन्द्रः, अनड्वान् छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - अनड्वान सूक्त

    यस्य॑ नेशे य॒ज्ञप॑ति॒र्न य॒ज्ञो नास्य॑ दातेशे॒ न प्र॑तिग्रही॒ता। यो वि॑श्व॒जिद्वि॑श्व॒भृद्वि॒श्वक॑र्मा घ॒र्मं नो॑ ब्रूत यत॒मश्चतु॑ष्पात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्य॑ । न । ईशे॑ । य॒ज्ञऽप॑ति: । न । य॒ज्ञ: । न । अ॒स्य॒ । दा॒ता । ईशे॑ । न । प्र॒ति॒ऽग्र॒ही॒ता । य: । वि॒श्व॒ऽजित् । वि॒श्व॒ऽभृत् । वि॒श्वऽक॑र्मा । घ॒र्मम् । न॒: । ब्रू॒त॒ । य॒त॒म: । चतु॑:ऽपात् ॥११.५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्य नेशे यज्ञपतिर्न यज्ञो नास्य दातेशे न प्रतिग्रहीता। यो विश्वजिद्विश्वभृद्विश्वकर्मा घर्मं नो ब्रूत यतमश्चतुष्पात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्य । न । ईशे । यज्ञऽपति: । न । यज्ञ: । न । अस्य । दाता । ईशे । न । प्रतिऽग्रहीता । य: । विश्वऽजित् । विश्वऽभृत् । विश्वऽकर्मा । घर्मम् । न: । ब्रूत । यतम: । चतु:ऽपात् ॥११.५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 11; मन्त्र » 5

    भावार्थ -
    (यस्य) जिस परमेश्वर को (यज्ञ-पतिः) यज्ञों का पालक यजमान भी अपने वश नहीं करता और जिस को (यज्ञः न ईशे) यज्ञ भी अपने वश नहीं कर सकता, (अस्य) इस पर (दाता न ईशे) कोई दानी महापुरुष भी प्रभुता नहीं करता, (न प्रति-ग्रहीता) और दान लेने वाला कोई योग्य ब्राह्मण भी इसे वश नहीं कर सकता। (यः) जो प्रभु स्वयं (विश्व-जित्) सब विश्व को विजय करने वाला, (विश्व-भृद्) समस्त विश्व का पालक पोषक, (विश्वकर्मा) सब विश्वः का रचयिता है, हे विद्वान् पुरुषो ! उस सब रसों के बरसाने वाले और तेजःस्वरूप प्रभु का (नः ब्रूत) हमें उपदेश करो। (यतमः) जो (चतुष्पाद्) चार पाद वाला है।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - भृग्यंगिरा ऋषिः। अनड्वान् देवता। १, ४ जगत्यौ, २ भुरिग्, ७ व्यवसाना षट्पदानुष्टु व्गर्भोपरिष्टाज्जागता निचृच्छक्वरी, ८-१२ अनुष्टुभः। द्वादशर्चं सूक्तम्।

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