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अथर्ववेद > काण्ड 4 > सूक्त 37

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  • अथर्ववेद - काण्ड 4/ सूक्त 37/ मन्त्र 11
    सूक्त - बादरायणिः देवता - अजशृङ्ग्योषधिः छन्दः - षट्पदा जगती सूक्तम् - कृमिनाशक सूक्त

    श्वेवैकः॑ क॒पिरि॒वैकः॑ कुमा॒रः स॑र्वकेश॒कः। प्रि॒यो दृ॒श इ॑व भू॒त्वा ग॑न्ध॒र्वः स॑चते॒ स्त्रिय॑स्तमि॒तो ना॑शयामसि॒ ब्रह्म॑णा वी॒र्या॑वता ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    श्वाऽइ॑व । एक॑: । क॒पि:ऽइ॑व । एक॑: । कु॒मा॒र: । स॒र्व॒ऽके॒श॒क: । प्रि॒य: । दृ॒शेऽइ॑व । भू॒त्वा ।ग॒न्ध॒र्व: । स॒च॒ते॒ । स्त्रिय॑: । तम् । इ॒त: । ना॒श॒या॒म॒सि॒ । ब्रह्म॑णा । वी॒र्य᳡वता ॥३७.११॥


    स्वर रहित मन्त्र

    श्वेवैकः कपिरिवैकः कुमारः सर्वकेशकः। प्रियो दृश इव भूत्वा गन्धर्वः सचते स्त्रियस्तमितो नाशयामसि ब्रह्मणा वीर्यावता ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    श्वाऽइव । एक: । कपि:ऽइव । एक: । कुमार: । सर्वऽकेशक: । प्रिय: । दृशेऽइव । भूत्वा ।गन्धर्व: । सचते । स्त्रिय: । तम् । इत: । नाशयामसि । ब्रह्मणा । वीर्यवता ॥३७.११॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 4; सूक्त » 37; मन्त्र » 11

    भावार्थ -
    रोगकीटों के रूपों का वर्णन करते हैं। (एकः श्वा इव) एक गन्धर्व नामक रोगकीट कुत्ते के समान, उसके स्वभाव वाला या उसके आकार वाला है और (एकः) एक (कपिः, इव) बन्दर के समान है वह (कुमारः) बड़ी कठिनता से प्राण त्याग करता एवं बुरी तरह से अपने शिकार रोगी को मारता है। (सर्वकेशकः) उसके समस्त शरीर पर रोम होते हैं। जिस प्रकार सर्वाङ्गसुन्दर केश बनाये कुमार = नवयुवक, आंखों के आगे दर्शनीय सुन्दर वेश बनाकर अपनी कुत्ते की सी कामप्रियता और बन्दर की सी कुरूपता को छिपाकर स्त्रियों में विचरता और उनके मन हरता है उसी प्रकार ये रोगकीट भी (दृशः) चक्षु के (प्रियः इव) प्रिय होकर (स्त्रियः) अपनी मादा जन्तुओं पर (सचते) जाता है उसको (वीर्यावता) वीर्यवाली (ब्रह्मणा) ‘ब्रह्म’ नामक ओषधि या वेद ज्ञान से (इतः) यहां से इस नगर, ग्राम, गृह, शरीर से (नाशयामसि) हम विनाश करें, भगादें।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - बादरायणिर्ऋषिः। अजशृङ्गी अप्सरो देवता। १, २, ४, ६, ८-१० अनुष्टुभौ। त्र्यवसाना षट्पदी त्रिष्टुप्। ५ प्रस्तारपंक्तिः। ७ परोष्णिक्। ११ षट्पदा जगती। १२ निचत्। द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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