Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 19/ सूक्त 22/ मन्त्र 17
    सूक्त - अङ्गिराः देवता - मन्त्रोक्ताः छन्दः - दैवी जगती सूक्तम् - ब्रह्मा सूक्त

    म॑हाग॒णेभ्यः॒ स्वाहा॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    म॒हा॒ऽग॒णेभ्यः॑। स्वाहा॑ ॥२२.१७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    महागणेभ्यः स्वाहा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    महाऽगणेभ्यः। स्वाहा ॥२२.१७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 19; सूक्त » 22; मन्त्र » 17

    भावार्थ -
    (गणेभ्यः स्वाहा) गणों में पढ़े गये सलिल, शान्ति सूक्त (महागणेभ्यः स्वाहा) महागण, बड़े गणों में पढ़े गये पृथ्वीसूक्त आदि का भी उत्तम रीति से ज्ञान करो। (सर्वेभ्यः अंगिरोभ्यः विदगणेभ्यः स्वाहा) समस्त आंगिरसवेद के जानने हारे विद्वान् पुरुषों द्वारा देखे गये ज्ञानसूक्तों को भी उत्तम रीति से मनन करो। ‘पृथक् सूक्त’ अर्थात् १८वां काण्ड और ‘सहस्र सूक्त’ अर्थात् पुरुष सूक्त इनका भी ज्ञान उत्तम रीति से प्राप्त करो। (ब्रह्मणे स्वाहा) समस्त ब्रह्मविषयक सूक्तों का स्वाध्याय करो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - अंगिरा ऋषिः। मन्त्रोक्ता देवताः। १ साम्न्युष्णिक् ३, १९ प्राजापत्या गायत्री। ४, ७, ११, १७, दैव्यो जगत्यः। ५, १२, १३ दैव्यस्त्रिष्टुभः, २, ६, १४, १६, दैव्यः पंक्तयः। ८-१० आसुर्यो जगत्यः। १८ आसुर्यो अनुष्टुभः, (१०-२० एकावसानाः) २ चतुष्पदा त्रिष्टुभः। एकविंशत्यृचं समाससूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top