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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 24/ मन्त्र 2
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४

    तमि॑न्द्र॒ मद॒मा ग॑हि बर्हि॒ष्ठां ग्राव॑भिः सु॒तम्। कु॒विन्न्वस्य तृ॒प्णवः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तम् । इ॒न्द्र॒ । मद॑म् । आ । ग॒हि॒ । ब॒र्हि॒:ऽस्थाम् । ग्राव॑ऽभि: । सु॒तम् ॥ कु॒वित् । नु । अ॒स्य । तृ॒प्णव॑: ॥२४.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तमिन्द्र मदमा गहि बर्हिष्ठां ग्रावभिः सुतम्। कुविन्न्वस्य तृप्णवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तम् । इन्द्र । मदम् । आ । गहि । बर्हि:ऽस्थाम् । ग्रावऽभि: । सुतम् ॥ कुवित् । नु । अस्य । तृप्णव: ॥२४.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (इन्द्र) इन्द्र ! राजन् ! तू (बर्हिष्ठाम्) बृहत् राष्ट्र में या प्रजाओं में स्थित (तम्) उस अपूर्व, (मदम्) तृप्तिकारक, सब इच्छाओं के पूर्ण करने वाले, (ग्रावभिः) ज्ञानोपदेशक विद्वानों अथवा वज्र या शस्त्रों के धारण करने वाले वीर सैनिकों या प्रजाओं द्वारा (सुतम्) उत्पादित, प्राप्त किये राष्ट्र को (आगहि) प्राप्त कर। (अस्य) इस द्वारा तू (कुवित् नु) बहुत अधिक (तृप्णवः) तृप्त होने में समर्थ है। अथवा (अस्य कुवित् नु तृप्णवः) इससे बहुत अधिक लोग तृप्त होते हैं।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। नवर्चं सूक्तम्॥

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