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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 24/ मन्त्र 7
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४

    इ॒ममि॑न्द्र॒ गवा॑शिरं॒ यवा॑शिरं च नः पिब। आ॒गत्या॒ वृष॑भिः सु॒तम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒मम् । इ॒न्द्र॒ । गोऽआ॑शिरम् । यव॑ऽआशिरम् । च॒ । न॒: । पि॒ब॒ ॥ आ॒ऽगत्य॑ । वृष॑ऽभि: । सु॒तम् ॥२४.७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इममिन्द्र गवाशिरं यवाशिरं च नः पिब। आगत्या वृषभिः सुतम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इमम् । इन्द्र । गोऽआशिरम् । यवऽआशिरम् । च । न: । पिब ॥ आऽगत्य । वृषऽभि: । सुतम् ॥२४.७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 7

    भावार्थ -
    हे (इन्द्र) ऐश्वर्यवन् राजन् ! तू (नः) हमारे (गवाशिरम्) गो, पृथ्वी और गौ आदि पशुओं के आश्रय पर प्राप्त होने वाले और (यवाशिरम्) यवादि अन्न और शत्रुओं के नाशक सेना बलों के आश्रय पर विद्यमान (सुतम्) ऐश्वर्यमय राष्ट्र को (वृषभिः) बलवान् पुरुषों सहित (आगत्य) आकर (पिब) उपभोग कर।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। नवर्चं सूक्तम्॥

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