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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 24/ मन्त्र 4
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४

    इन्द्रं॒ सोम॑स्य पी॒तये॒ स्तोमै॑रि॒ह ह॑वामहे। उ॒क्थेभिः॑ कु॒विदा॒गम॑त् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इन्द्र॑म् । सोम॑स्य । पी॒तये॑ । स्तोमै॑: । इ॒ह॒ । ह॒वा॒म॒है॒ ॥ उ॒क्थेभि॑: । कु॒वित् । आ॒ऽगम॑त् ॥२४.४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इन्द्रं सोमस्य पीतये स्तोमैरिह हवामहे। उक्थेभिः कुविदागमत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इन्द्रम् । सोमस्य । पीतये । स्तोमै: । इह । हवामहै ॥ उक्थेभि: । कुवित् । आऽगमत् ॥२४.४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 4

    भावार्थ -
    (सोमस्य पीतयें) सोम-राष्ट्र या अन्न आदि ऐश्वर्य के पान या पालन और उपभोग के लिये (स्तोमेभिः) स्तुति योग्य आदरवचनों से हम (इह) यहां अपने घरों पर (हवामहे) बुलाते हैं, (उक्थेभिः) उत्तम उपदेशों से ही वह हमें (कुवित्) बहुत बार (आगमत्) प्राप्त हो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। नवर्चं सूक्तम्॥

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