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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 24

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 24/ मन्त्र 8
    सूक्त - विश्वामित्रः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-२४

    तुभ्येदि॑न्द्र॒ स्व ओ॒क्ये॒ सोमं॑ चोदामि पी॒तये॑। ए॒ष रा॑रन्तु ते हृ॒दि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    तुभ्य॑ । इत् । इ॒न्द्र॒ । स्वे । ओ॒क्ये॑ । सोम॑म् । चो॒दा॒मि॒ । पी॒तये॑ ॥ ए॒ष: । र॒र॒न्तु॒ । ते॒ । हृ॒दि ॥२४.८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    तुभ्येदिन्द्र स्व ओक्ये सोमं चोदामि पीतये। एष रारन्तु ते हृदि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    तुभ्य । इत् । इन्द्र । स्वे । ओक्ये । सोमम् । चोदामि । पीतये ॥ एष: । ररन्तु । ते । हृदि ॥२४.८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 24; मन्त्र » 8

    भावार्थ -
    हे (इन्द्र) इन्द ! (स्वे ओक्ये) तेरे अपने ही निवास स्थान में (तुभ्य इत्) तेरे ही लिये हम (पीतये) पान करने, या उपभोग करने या स्वीकार करने के लिये (सोमं चोदामि) समस्त राष्ट्र को तुझे अर्पण करता हूं। (एषः) वह (ते) तेरे (हृदि) हृदय में पिये शीतल जल के समान (रारन्तु) तुझे तृप्त करे।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - विश्वामित्र ऋषिः। इन्द्रो देवता। गायत्र्यः। नवर्चं सूक्तम्॥

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