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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 57

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 57/ मन्त्र 3
    सूक्त - मधुच्छन्दाः देवता - इन्द्रः छन्दः - गायत्री सूक्तम् - सूक्त-५७

    अथा॑ ते॒ अन्त॑मानां वि॒द्याम॑ सुमती॒नाम्। मा नो॒ अति॑ ख्य॒ आ ग॑हि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अथ॑ । ते॒ । अन्त॑मानाम् । वि॒द्याम॑ । सु॒ऽम॒ती॒नाम् ॥ मा । न॒: । अति॑ । ख्य॒: । आ । ग॒हि॒ ॥५७.३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अथा ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम्। मा नो अति ख्य आ गहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अथ । ते । अन्तमानाम् । विद्याम । सुऽमतीनाम् ॥ मा । न: । अति । ख्य: । आ । गहि ॥५७.३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 57; मन्त्र » 3

    भावार्थ -
    (अथा) और (ते) तेरे (अन्तमानां) अति समीप प्राप्त तुझ तक पहुंचे हुए (सुमतीनाम्) उत्तम मननशील विद्वानों के संग से (ते विद्याम) हम तेरे स्वरूप का ज्ञान करें। तू (नः) हमें (आगहि) प्राप्त हो। तू (नः) हमें (मा अति ख्यः) कभी अति क्रमण मत कर, हमें मत भूल।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - मधुच्छन्दा ऋषिः। इन्द्रो देवता। १-३ गायत्र्यः। शेषाः पूर्वोक्ताः। षोडशचं सूक्तम्॥

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