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अथर्ववेद > काण्ड 20 > सूक्त 89

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  • अथर्ववेद - काण्ड 20/ सूक्त 89/ मन्त्र 2
    सूक्त - कृष्णः देवता - इन्द्रः छन्दः - त्रिष्टुप् सूक्तम् - सूक्त-८९

    दोहे॑न॒ गामुप॑ शिक्षा॒ सखा॑यं॒ प्र बो॑धय जरितर्जा॒रमिन्द्र॑म्। कोशं॒ न पू॒र्णं वसु॑ना॒ न्यृ॑ष्ट॒मा च्या॑वय मघ॒देया॑य॒ शूर॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    दोहे॑न । गाम् । उप॑ । श‍ि॒क्ष॒ । सखा॑यम् । प्र । बो॒ध॒य॒ । ज॒रि॒त॒: । जा॒रम् । इन्द्र॑म् ॥ कोश॑म् । न । पू॒र्णम् । वसु॑ना । निऽऋ॑ष्टम् । आ । च्य॒व॒य॒ । म॒घ॒ऽदेया॑य । शूर॑म् ॥८९.२॥


    स्वर रहित मन्त्र

    दोहेन गामुप शिक्षा सखायं प्र बोधय जरितर्जारमिन्द्रम्। कोशं न पूर्णं वसुना न्यृष्टमा च्यावय मघदेयाय शूरम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    दोहेन । गाम् । उप । श‍िक्ष । सखायम् । प्र । बोधय । जरित: । जारम् । इन्द्रम् ॥ कोशम् । न । पूर्णम् । वसुना । निऽऋष्टम् । आ । च्यवय । मघऽदेयाय । शूरम् ॥८९.२॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 20; सूक्त » 89; मन्त्र » 2

    भावार्थ -
    हे (जरितः) स्तुतिशील विद्वन् ! (दोहेन) दुग्धदोहन के निमित्त जिस प्रकार (गाम्) गौ को प्राप्त किया जाता है उसी प्रकार आन्तरिक रस प्राप्त करने के लिये भी (गाम्) व्यापक, या सूर्यस्वरूप आत्मा को (उपशिक्ष) प्राप्त कर। और (जारम्) अपने चिर निवास से देहों और इन्द्रियों को कालवश जीर्ण कर देने वाले (इन्द्रम्) भीतरी साक्षात् प्रत्यक्ष होने वाले, स्वयंद्रष्टा भोक्ता (सखायम्) अपने समान नाम वाले मित्र स्वरूप सखा, आत्मा को (प्र बोधय) ज्ञानवान् कर। और (वसुना पूर्णं) धन से भरे पूरे (कोशम्) खजाने को जिस प्रकार ऐश्वर्य को सुरक्षित करने के लिये सेवन किया जाता है उसी प्रकार (मघ देयाय) ऐश्वर्य की रक्षा के लिये (न्यृष्टम्) सबके आश्रयभूत, (शूरम्) शूरवीर इन्द्र को (आ च्यावय) नियुक्त कर राजा के पक्ष में—दोहन के लिये गौ के समान उपगन्तव्य राजा का आश्रय लो. (जारम्) शत्रुओं के नाशक (इन्द्रम्) सेनापति को जागृत करो, सदा सावधान करो। खजाने के समान धन से पूर्ण राजा को ही ऐश्वर्य के संग्रह के लिये नियुक्त करो।

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर - कृष्णा ऋषिः। इन्दो देवता। त्रिष्टुभः। एकादशर्चं सूक्तम्॥

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