Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 106 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 106/ मन्त्र 4
    ऋषिः - कुत्स आङ्गिरसः देवता - विश्वेदेवा: छन्दः - जगती स्वरः - निषादः

    नरा॒शंसं॑ वा॒जिनं॑ वा॒जय॑न्नि॒ह क्ष॒यद्वी॑रं पू॒षणं॑ सु॒म्नैरी॑महे। रथं॒ न दु॒र्गाद्व॑सवः सुदानवो॒ विश्व॑स्मान्नो॒ अंह॑सो॒ निष्पि॑पर्तन ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नरा॒शंस॑म् । वा॒जिन॑म् । वा॒जय॑न् । इ॒ह । क्ष॒यत्ऽवी॑रम् । पू॒षण॑म् । सु॒म्नैः । ई॒म॒हे॒ । रथ॑म् । न । दुः॒ऽगात् । व॒स॒वः॒ । सु॒ऽदा॒नवः॒ । विश्व॑स्मात् । नः॒ । अंह॑सः । निः । पि॒प॒र्त॒न॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नराशंसं वाजिनं वाजयन्निह क्षयद्वीरं पूषणं सुम्नैरीमहे। रथं न दुर्गाद्वसवः सुदानवो विश्वस्मान्नो अंहसो निष्पिपर्तन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नराशंसम्। वाजिनम्। वाजयन्। इह। क्षयत्ऽवीरम्। पूषणम्। सुम्नैः। ईमहे। रथम्। न। दुःऽगात्। वसवः। सुऽदानवः। विश्वस्मात्। नः। अंहसः। निः। पिपर्तन ॥ १.१०६.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 106; मन्त्र » 4
    अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तान् कथं भूतानुपयुञ्जीरन्नित्युपदिश्यते ।

    अन्वयः

    हे विद्वन् यथा वाजयन् वयमिह सुम्नैर्युक्तं नराशंसं वाजिनं क्षयद्वीरं पूषणं चेमहे तथा त्वं याचस्व। अन्यत् पूर्ववत् ॥ ४ ॥

    पदार्थः

    (नराशंसम्) नृभिराशंसितुं योग्यं विद्वांसम् (वाजिनम्) विज्ञानयुद्धविद्याकुशलम् (वाजयन्) विज्ञापयन्तो योधयन्तो वा। अत्र सुपां सुलुगिति जसः स्थाने सुः। (इह) अस्यां सृष्टौ (क्षयद्वीरम्) क्षयन्तः शत्रूणां नाशकर्त्तारो वीरा यस्य सेनाध्यक्षस्य तम् (पूषणम्) शरीरात्मनोः पोषयितारम् (सुम्नैः) सुखैर्युक्तम् (ईमहे) प्राप्नुयाम। अत्र बहुलं छन्दसीति श्यनो लुक्। (रथं, न०) इति पूर्ववत् ॥ ४ ॥

    भावार्थः

    वयं शुभगुणयुक्तान् सुखिनो मनुष्यान् मित्रतया प्राप्य श्रेष्ठयानयुक्ताः शिल्पिन इव दुःखात्पारं गच्छेम ॥ ४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उन कैसों को उपयोग में लावें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे विद्वान् ! जैसे (वाजयन्) उत्तमोत्तम पदार्थों के विशेष ज्ञान कराने वा युद्ध करानेहारे हम लोग (इह) इस सृष्टि में (सुम्नैः) सुखों से युक्त (नराशंसम्) मनुष्यों के प्रार्थना कराने योग्य विद्वान् को तथा (वाजिनम्) विशेष ज्ञान और युद्धविद्या में कुशल (क्षयद्वीरम्) जिसके शत्रुओं को काट करनेहारे वीर और जो (पूषणम्) शरीर वा आत्मा की पुष्टि करानेहारा है, उस सभाध्यक्ष को (ईमहे) प्राप्त होवें वैसे तू शुभगुणों की याचना कर। शेष मन्त्रार्थ प्रथम मन्त्र के तुल्य जानना चाहिये ॥ ४ ॥

    भावार्थ

    हम लोग शुभ गुणों से युक्त सुखी मनुष्यों को मित्रता को प्राप्त होकर श्रेष्ठ यानयुक्त हुए शिल्पियों के समान दुःख से पार हों ॥ ४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'प्रशस्त'' व धन का पोषक जीवन

    पदार्थ

    १. (नराशंसम्) = मनुष्यों से शंसन के योग्य , (वाजिनम्) = शक्तिशाली , (क्षयद वीरम्) = [क्षियति वीरेषु] वीरों में निवास करनेवाले (पूषणम्) = पोषक प्रभु को (वाजयन्) = अपनी ओर प्राप्त कराते हुए हम (इह) = इस मानव - जीवन में (सुम्नैः) = स्तोत्रों के द्वारा (ईमहे) = आराधित करते हैं । प्रभु की आराधना से हमारा जीवन भी मनुष्यों से प्रशंसनीय होगा [नराशंस] , शक्तिशाली होगा [वाजिनम्] , हममें वीरता का वास होगा [क्षयद् वीरम्] और हम सब आवश्यक धनों का पोषण करनेवाले होंगे [पूषणम्] । प्रभु का स्तवन हमें प्रभु - जैसा ही बनाता है । 

    २. इस प्रकार ''प्रभुस्तवन की वृत्तिवाले हम बन सकें'' इसके लिए (सुदानवः) = बुराइयों का खण्डन करनेवाले (वसवः) = उत्तम निवासवाले लोग (नः) = हमें (विश्वस्मात् अंहसः) = सब पापों से (निष्पिपर्तन) = पार करें , उसी प्रकार (न) = जैसे कि उत्तम सारथि (रथम्) = रथ को (दुर्गात्) = दुर्गम मार्ग से पार करता है । 
     

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभुस्तवन से हमारा जीवन ''प्रशस्त , शक्तिशाली , वीरता से युक्त तथा आवश्यक धन का पोषण करनेवाला'' बने । धार्मिक लोग हमें पापों से दूर करें । 
     

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    सर्व हितकारी ज्ञानवान्, ऐश्वर्यवान् पुरुष का कर्तव्य ।

    भावार्थ

    ( इह ) इस राष्ट्र में हम लोग ( नराशंसं ) नायक वीर पुरुषों से स्तुति करने योग्य तथा मनुष्यों के शासक ( वाजिनं ) ज्ञान और ऐश्वर्य से सम्पन्न बलवान् ( क्षयद्-वीरम् ) शत्रुनाशकारी वीरों के स्वामी और उनका आश्रय ( पूषणम् ) सबके पोषक, सूर्य समान तेजस्वी पुरुष को ( वाजयन् ) विशेष ज्ञान, बल और ऐश्वर्य से सम्पन्न करते हुए हम ( सुम्नैः ) सुखजनक साधनों से युक्त उसकी ( ईमहे ) याचना करते हैं और उसकी शरण आते हैं । ( रथं न० इत्यादि ) पूर्ववत् ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    १–७ कुत्स ऋषिः ॥ विश्वेदेवा देवता ॥ छन्दः-१-६ जगती। ७ निचृत्त्रिष्टुप् ॥ स्वरः-१-६ निषादः । ७ धैवतः ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    आम्ही शुभ गुणांनी युक्त सुखी माणसांशी मैत्री करून श्रेष्ठ यानयुक्त कारागिराप्रमाणे दुःखातून पार पडावे. ॥ ४ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    With sincere mind and soul, we invoke the universally praised hero of knowledge and power, ideal of the brave, lord of protection and progress, heroic Pushan, fighting here for development of food, energy and social advancement. And we pray, may the generous Vasus save us from all sin and evil and take us forward as a chariot across the difficult paths of earth, sea and sky.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The same subject is continued.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person, we fighting with the wicked and teaching others, supplicate an enlightened commander of the army who is highly educated and also expert in military science, who has under him heroes destroyers of the foes, who is praised by all men on account of his bravery, courage and other virtues and who is the nourisher of the body and the soul, so you should also do.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (वाजिनम्) विज्ञानयुद्धविद्याकुशलम् = highly educated person well versed in Military Science.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Let us go beyond misery having the association of virtuous and happy men, like the artists possessing good and comfortable vehicles.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top