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ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 139 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 139/ मन्त्र 5
    ऋषिः - परुच्छेपो दैवोदासिः देवता - अश्विनौ छन्दः - निचृद्बृहती स्वरः - मध्यमः

    शची॑भिर्नः शचीवसू॒ दिवा॒ नक्तं॑ दशस्यतम्। मा वां॑ रा॒तिरुप॑ दस॒त्कदा॑ च॒नास्मद्रा॒तिः कदा॑ च॒न ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    शची॑भिः । नः॒ । श॒ची॒व॒सू॒ इति॑ शचीऽवसू । दिवा॑ । नक्त॑म् । द॒श॒स्य॒त॒म् । मा । वा॒म् । रा॒तिः । उप॑ । द॒स॒त् । कदा॑ । च॒न । अ॒स्मत् । रा॒तिः । कदा॑ । च॒न ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    शचीभिर्नः शचीवसू दिवा नक्तं दशस्यतम्। मा वां रातिरुप दसत्कदा चनास्मद्रातिः कदा चन ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    शचीभिः। नः। शचीवसू इति शचीऽवसू। दिवा। नक्तम्। दशस्यतम्। मा। वाम्। रातिः। उप। दसत्। कदा। चन। अस्मत्। रातिः। कदा। चन ॥ १.१३९.५

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 139; मन्त्र » 5
    अष्टक » 2; अध्याय » 2; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह ।

    अन्वयः

    हे शचीवसू युवां दिवा नक्तं शचीभिर्नो विद्यां दशस्यतं वां रातिः कदा चन मोपदसत्। अस्मद्रातिः कदा चन मोपदसत् ॥ ५ ॥

    पदार्थः

    (शचीभिः) (नः) अस्मभ्यम् (शचीवसू) शचीं प्रज्ञां वासयितारौ (दिवा) दिवसे (नक्तम्) रात्रौ (दशस्यतम्) दद्यातम्। अयं दशस् शब्दः कण्ड्वादिषु द्रष्टव्यः। (मा) निषेधे (वाम्) युवयोः (रातिः) दानम् (उप) (दसत्) नश्येत् (कदा) (चन) (अस्मत्) (रातिः) दानम् (कदा) (चन) ॥ ५ ॥

    भावार्थः

    इहाध्यापकोपदेशकौ सुशिक्षितया वाचाऽहर्निश विद्या उपदिशेताम्। यतः कस्याऽप्यौदार्यं न नश्येत् ॥ ५ ॥

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    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे (शचीवसू) उत्तम बुद्धि का वास करानेहारे विद्वानो ! तुम (दिवा) दिन वा (नक्तम्) रात्रि में (शचीभिः) कर्मों से (नः) हम लोगों को विद्या (दशस्यतम्) देओ, (वाम्) तुम्हारा (रातिः) देना (कदा, चन) कभी (मा) मत (उप, दसत्) नष्ट हो, (अस्मत्) हम लोगों से (रातिः) देना (कदा, चन) कभी मत नष्ट हो ॥ ५ ॥

    भावार्थ

    इस संसार में अध्यापक और उपदेशक अच्छी शिक्षायुक्त वाणी से दिन रात विद्या का उपदेश करें, जिससे किसी की उदारता न नष्ट हो ॥ ५ ॥

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    विषय

    कर्म व प्रज्ञा देनेवाले प्राणापान

    पदार्थ

    १.'शची' शब्द नि० २।१ में कर्म का नाम है और नि० ३।९ में प्रज्ञा का वाचक है। प्राणापान शक्तिवर्धन के द्वारा हमें कर्म करने का सामर्थ्य देते हैं और ज्ञान को दीस करके उन कर्मों को पवित्र रखते हैं। (शचीवसू) = हे कर्मशक्ति व ज्ञानरूप धनोंवाले प्राणापानो! आप (शचीभिः) = कर्मों व ज्ञानों के द्वारा (नः) = हमें (दिवा नक्तम्) = दिन-रात [सदा] (दशस्यतम्) = धनों को देनेवाले होओ। हम प्राण-साधना करें, उससे हमारी शक्ति व ज्ञान में वृद्धि हो। २. (वाम्) = हे प्राणापानो! आपकी यह (रातिः) = देन (मा कदाचन उपदसत्) = कभी क्षीण न हो। आप हमें सदा धन देनेवाले होओ। (अस्मत् रातिः) = हमारे विषय में आपका दान कदाचन कभी भी (मा उपदसत्) = क्षीण न हो।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम प्राणसाधना करते हुए सदा कर्म सामर्थ्य व ज्ञान को प्राप्त करनेवाले हों।

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    Bhajan

    आज का वैदिक भजन 🙏 1002
    ओ३म् शची॑भिर्नः शचीवसू॒ दिवा॒ नक्तं॑ दशस्यतम् ।
    मा वां॑ रा॒तिरुप॑ दस॒त्कदा॑ च॒नास्मद्रा॒तिः कदा॑ च॒न ॥
    ऋग्वेद १/१३९/५
    सामवेद २८७

    प्रशस्त मार्ग पर चलते जाना,
    ऐ मानव ! बन बुद्धिमान्,
    सत्य-विद्याएँ  कर ले अर्जित,
    तदनुसार ही विद्यादान,
    प्रशस्त मार्ग पर चलते जाना

    बढ़े आर्य जाति का  गौरव,
    भद्र बने चहुं दिशी समाज,
    लेने को ओ३म् नाम श्रेष्ठ है,
    देने को सत्य-विद्या दान

    है कर्तव्याचार वर्णों का,
    कर्म दान का फल सुखद है,
    दूर ना होना परोपकार से,
    शुद्ध हृदय हो दाश्वान
    प्रशस्त मार्ग पर चलते जाना

    अविद्या से बचके  
    हो जाएं स्वयं वेदानुरूप 
    सत्य विद्या से बने हम,
    वेद अनु आर्य समान 
    प्रशस्त मार्ग पर चलते जाना

    हे प्रज्ञा और कर्म वालों 
    निज प्रज्ञान से कर्म कमालो 
    दान वृत्ति ना नष्ट होवे 
    सुर्य है जिसका प्रमाण 

    प्रशस्त मार्ग पर चलते जाना,
    ऐ मानव ! बन बुद्धिमान्,
    सत्य-विद्याएँ  कर ले अर्जित,
    तदनुसार ही विद्यादान,
    प्रशस्त मार्ग पर चलते जाना


    प्रशस्त = प्रशंसा योग्य,
    अर्जित = कमाया हुआ
    कर्तव्याचार = कर्तव्य का अचार
    गौरव = बड़प्पन, महत्व
    भद्र = कल्याण करने वाला
    वर्ण = वैदिक मतानुसार  चार कोटियां है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र 
    सुखद = सुख देने वाला
    विदुर = मनीषि, विद्वान
    दाश्वान = दानी
     

    https://youtu.be/HS7zYvZ_jEs?si=sYBBQaf24WWlysN2 

    Vyakhya

    प्रस्तुत भजन से सम्बन्धित पूज्य श्री ललित साहनी जी का सन्देश :-- 👇👇

    (क) 
    ज्ञान ज्योति देने वाली प्रज्ञा और आनन्द रस देने वाले कर्म से हमें बसाने वाले हे परमात्मन्! आप अपने प्रज्ञानों और कर्मों से हमारे दिन को ज्ञान-ज्योति से और रात्रि को आनन्द रस से सींच दो। हमारे लिए आपकी ज्ञान ज्योति और आनन्द-रस का दान कभी क्षीण ना हो और हमारा उपासना-रस दान,आपके लिए कभी क्षण ना हो। आप हमें आनंद और ज्योति प्रदान करें और हम अपने हृदय का भक्ति-रस आपको समर्पित सदैव करते रहें ।

    (ख)
    हे प्रज्ञा और कर्म के धनी स्त्री पुरुषो! आप अपने प्रज्ञानों और कर्मों से दिन-रात हमें समृद्धि और संपन्न करो।
     तुम दोनों की दान देने की क्रिया कभी क्षीण या नष्ट ना हो,अर्थात् तुम सदा दान देते रहो।

    प्रभु कहते हैं कि मेरे द्वारा दिया हुआ दान तुम्हारे द्वारा चलता रहे कभी बन्द ना हो।

    परमात्मा के द्वारा दिए हुए दान का प्रतिदान सर्वश्रेष्ठ है।

    रचनाकार व स्वर :- पूज्य श्री ललित मोहन साहनी जी – मुम्बई
    रचना दिनाँक :-  
    राग :- कलावती
    राग -गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर, ताल रूपक ७ मात्रा


    🕉️👏🏽🧎🏽‍♂️ईश भक्तिभजन
     भगवान ग्रुप द्वारा🎧

     

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    विषय

    ज्ञानी, कर्मिष्ठ पुरुषों के कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    हे ( शचीवसू ) उत्तम बुद्धि और उत्तम कर्म को अपने भीतर और अपने शिष्यों के भीतर बसा देने हारे एवं ज्ञान और कर्म के धनी स्त्री पुरुषो ! आप दोनों वर्ग ( दिवा नक्तं ) दिन और रात ( नः ) हमें ( शचीभिः ) उत्तम कर्मों और बुद्धियों से युक्त होकर ( दशस्यतम् ) उत्तम विद्या और ऐश्वर्य का दान करो । ( वां रातिः ) आप दोनों का दिया हुआ उत्तम दान ( कदाचन मा उपदसत् ) कभी नाश को प्राप्त न हो । और ( कदाचन ) कभी ( अस्मद् ) हमारी तरफ से भी ( रातिः ) देने योग्य दातव्य पदार्थ भी ( मा उपदसत् ) नाश को प्राप्त न हो । अथवा वह दान दिया हुआ पदार्थ ( मा वां उपदसत् मा अस्मत् उपदसत् ) न तुमको नाश करे, न हमें नाश करे । इति तृतीयो वर्गः ॥

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    परुच्छेप ऋषिः । देवता—१ विश्वे देवाः । २ मित्रावरुणौ । ३—५ अश्विनौ । ६ इन्द्रः । ७ अग्निः । ८ मरुतः । ६ इन्द्राग्नी । १० बृहस्पतिः । ११ विश्वे देवाः॥ छन्दः–१, १० निचृदष्टिः । २, ३ विराडष्टिः । ६ अष्टिः । = स्वराडत्यष्टिः । ४, ६ भुरिगत्यष्टिः । ७ अत्यष्टिः । ५ निचृद् बृहती । ११ भुरिक् पङ्क्तिः ॥ एकादशर्चं सूक्तम् ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    या जगात अध्यापक व उपदेशक यांनी सुशिक्षित वाणीने अहर्निश विद्येचा उपदेश करावा ज्यामुळे कुणाचेही औदार्य नष्ट होता कामा नये. ॥ ५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Ashvins, lords of noble action and givers of wealth by noble action, for the noble actions of ours, bless us with the gifts of wealth day and night. We pray, may your generosity never wear away from us. May our charity too never forsake us.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    Glories to Shachi-Vasus.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O teachers and preachers ! you enable us to develop intellect and impart knowledge day and night. Your gift of knowledge be unending and likewise our donations should never dry up.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    The teachers and preachers imparting knowledge day and night in chosen words, make the human beings liberal.

    Foot Notes

    (दशस्यतम् ) ददातम् ( अयम् दशम् शब्द: कण्ड्वादिषु द्रष्टव्यः) - Give. (रातिः) दानम्- Donations. (उपवसत्) नश्येत् - Diminish or stop.

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