Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 73 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 73/ मन्त्र 9
    ऋषिः - पराशरः शाक्तः देवता - अग्निः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    अर्व॑द्भिरग्ने॒ अर्व॑तो॒ नृभि॒र्नॄन् वी॒रैर्वी॒रान्व॑नुयामा॒ त्वोताः॑। ई॒शा॒नासः॑ पितृवि॒त्तस्य॑ रा॒यो वि सू॒रयः॑ श॒तहि॑मा नो अश्युः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अर्व॑त्ऽभिः । अ॒ग्ने॒ । अर्व॑तः । नृभिः॑ । नॄन् । वी॒रैः । वी॒रान् । व॒नु॒या॒म॒ । त्वाऽऊ॑ताः । ई॒शा॒नासः॑ । पि॒तृ॒ऽवि॒त्तस्य॑ । रा॒यः । वि । सू॒रयः॑ । श॒तऽहि॑माः । नः॒ । अ॒श्युः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अर्वद्भिरग्ने अर्वतो नृभिर्नॄन् वीरैर्वीरान्वनुयामा त्वोताः। ईशानासः पितृवित्तस्य रायो वि सूरयः शतहिमा नो अश्युः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अर्वत्ऽभिः। अग्ने। अर्वतः। नृभिः। नॄन्। वीरैः। वीरान्। वनुयाम। त्वाऽऊताः। ईशानासः। पितृऽवित्तस्य। रायः। वि। सूरयः। शतऽहिमाः। नः। अश्युः ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 73; मन्त्र » 9
    अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 20; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्ते कीदृशा भवेयुरित्युपदिश्यते ॥

    अन्वयः

    हे जगदीश्वर ! त्वोता वयमर्वद्भिरर्वतो नृभिर्नॄन् वीरैर्वीरान् वनुयाम। त्वत्कृपया पितृवित्तस्य राय ईशानासो भवेम सूरयो नोऽस्मान् शतहिमा व्यश्युः ॥ ९ ॥

    पदार्थः

    (अर्वद्भिः) प्रशस्तैरश्वैः (अग्ने) सर्वसुखप्रापक (अर्वतः) अश्वान् (नृभिः) विद्यादिप्रशस्तगुणयुक्तैर्मनुष्यैः (नॄन्) विद्यासुशिक्षाधर्मयुक्तान् मनुष्यान् (वीरैः) शौर्य्यादियुक्तैः (वीरान्) शौर्यादिगुणयुक्तान् (वनुयाम) इच्छेम याचेम (त्वोताः) त्वया कृतरक्षाः (ईशानासः) समर्थाः स्वामिनः (पितृवित्तस्य) जनकभुक्तस्य (रायः) धनस्य (वि) विशेषे (सूरयः) विद्वांसः (शतहिमाः) शतं हिमानि यासु समासु ताः (नः) अस्मान् (अश्युः) प्राप्नुयुः ॥ ९ ॥

    भावार्थः

    नहि मनुष्यैरीश्वरगुणकर्मस्वभावानुकूलाचरणेन विनोत्तमा विद्याः पदार्थाश्च प्राप्तुं शक्यास्तस्मादेतन्नित्यं प्रेम्णानुष्ठातव्यम् ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वे मनुष्य कैसे हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) सब सुखों के प्राप्त करानेवाले परमेश्वर ! आपसे (त्वोताः) रक्षित हम लोग (अर्वद्भिः) प्रशंसा योग्य घोड़ों से (अर्वतः) घोड़ों को (नृभिः) विद्यादि श्रेष्ठ गुणयुक्त मनुष्यों से (नॄन्) शिक्षा धर्म्मवाले मनुष्यों और (वीरैः) शौर्यादियुक्त शूरवीरों से (वीरान्) शूरता आदि गुणवाले शूरवीरों की प्राप्ति (वनुयाम) होने को चाहें और याचना करें। आपकी कृपा से (पितृवित्तस्य) पिता के भोगे हुए (रायः) धन के (ईशानासः) समर्थ स्वामी हम हों और (सूरयः) मेधावी विद्वान् (नः) हम लोगों को (शतहिमाः) सौ हेमन्त ऋतु पर्यन्त (व्यश्युः) प्राप्त होते रहें ॥ ९ ॥

    भावार्थ

    मनुष्य लोग ईश्वर के गुण, कर्म्म, स्वभाव के अनुकूल वर्त्तने और अपने पुरुषार्थ के विना उत्तम विद्या और पदार्थों के प्राप्त होने को समर्थ नहीं हो सकते, इससे इसका सदा अनुष्ठान करना उचित है ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    धनसम्पन्न व यज्ञशील

    पदार्थ

    १. हे (अग्ने) = आगे ले जानेवाले प्रभो ! (यान् मर्तान्) = जिन मनुष्यों को आप (राये) = ऐश्वर्यों के लिए (सुषूदः) = उत्तमता से प्रेरित करते हैं, (ते वयम्) = वे हम (स्याम) = हों, (च) = और (मघवानः) = [मघ = ऐश्वर्यं तथा मघ = यज्ञ] ऐश्वर्य का यज्ञों में विनियोग करनेवाले हों । हम उन मनुष्यों में से हों जो प्रभुकृपा से ऐश्वर्यों के स्वामी होते हैं और उन ऐश्वर्यों का यज्ञों में विनियोग करते हैं । २. हे प्रभो ! आप (रोदसी) = द्युलोक और पृथिवीलोक को तथा (अन्तरिक्षम्) = अन्तरिक्ष को (आपप्रिवान्) = पूर्ण किये हुए हैं, सब लोक - लोकान्तरों में व्याप्त हैं तथा (विश्वं भुवनम्) = सब प्राणियों को (छाया इव) = छाया की भाँति (सिसक्षि) = समवेत [संयुक्त] करते हैं । जैसे छाया पदार्थों को छोड़कर दूर नहीं होती, उसी प्रकार प्रभु सब प्राणियों के साथ समवेत हैं । प्रभु प्राणियों का साथ नहीं छोड़ते । हम प्रभु को भूल जाएँ तो भूल जाएँ, परन्तु प्रभु हमें कभी नहीं भूलते ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हम धनसम्पन्न व यज्ञशील बनें । हमें प्रभुकृपा सदा प्राप्त रहे ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    मनुष्यों को उत्तम उपदेश ।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) परमेश्वर ! अग्रणी सेनापते ! राजन् ! ( त्वा उताः ) तेरे से सुरक्षित रहकर हम ( अर्वद्भिः ) अश्वों, अश्वारोहियों से ( अर्वतः ) अश्वों, अश्वारोहियों को, (नृभिः नॄन्) नायकों से नायकों को और (वीरैः वीरान्) वीर पुरुषों से वीरों को (आ वनुयाम) प्राप्त हों और युद्ध में अश्वारोही, नायक और पैदल वीरों से शत्रुके अश्वारोहियों, नायकों और पैदल वीरों का ( वनुयाम ) विनाश करें। हम ( पितृवित्तस्य ) अपने पिता पितामह और गुरुओं द्वारा प्राप्त ( रायः ) ऐश्वर्य के ( ईशानासः ) स्वामी हों। और ( नः ) हमारे ( सूरयः ) विद्वान् जन ( शतहिमाः ) सौ वर्षों तक दीर्घजीवी होकर उस ऐश्वर्य का ( वि अश्युः ) विविध प्रकार से भोग करें ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    पराशर ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः—१, २, ४, ५, ७, ९, १० निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ६ त्रिष्टुप् । ८ विराट् त्रिष्टुप् ॥ दशर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विषय (भाषा)- फिर वे मनुष्य कैसे हों, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है ॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे जगदीश्वर ! त्वोताः वयम् अर्वद्भिः{अग्ने} अर्वतः नृभिः नॄन् वीरैः वीरान् वनुयाम। त्वत् कृपया पितृवित्तस्य रायः ईशानासः भवेम सूरयः नःअस्मान् शतहिमाः वि अश्युः ॥९॥

    पदार्थ

    पदार्थः- हे (जगदीश्वरः)=परमेश्वर ! (त्वोताः) त्वया कृतरक्षाः=तुम्हारे द्वारा की गई रक्षा से, (वयम्)=हम, (अर्वद्भिः) प्रशस्तैरश्वैः=श्रेष्ठ अश्वों से, {अग्ने} सर्वसुखप्रापक=समस्त सुखों को प्राप्त करानेवाले, (अर्वतः) अश्वान्= अश्वों का, (नृभिः) विद्यादिप्रशस्तगुणयुक्तैर्मनुष्यैः=विद्या आदि प्रशस्त गुणों से युक्त मनुष्यों के द्वारा, (नॄन्) विद्यासुशिक्षाधर्मयुक्तान् मनुष्यान्= विद्या, उत्तम शिक्षा और धर्म से युक्त मनुष्यों के द्वारा, (वीरैः) शौर्य्यादियुक्तैः= शौर्य आदि से युक्त मनुष्यों के द्वारा, (वीरान्) शौर्यादिगुणयुक्तान्= शौर्य आदि से युक्त मनुष्यों की, (वनुयाम) इच्छेम याचेम=याचना करते हैं, (त्वत्)=तुम्हारी, (कृपया)= कृपा से, (पितृवित्तस्य) जनकभुक्तस्य=पिता के द्वारा भोगे हुए, (रायः) धनस्य=धन के, (ईशानासः) समर्थाः स्वामिनः= समर्थ स्वामी, (भवेम)=होवें। (सूरयः) विद्वांसः= विद्वान् लोग, (नः) अस्मान्=हम, (शतहिमाः) शतं हिमानि यासु समासु ताः= सौ हेमन्त ऋतुओंवाले सौ वर्ष [की आयु], (वि) विशेषे = विशेष रूप से, (अश्युः) प्राप्नुयुः=प्राप्त करें ॥९॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- मनुष्यों के द्वारा ईश्वर के गुण, कर्म और स्वभाव के अनुकूल आचरण किये विना उत्तम विद्या और पदार्थों की प्राप्ति नहीं हो सकती है, इसलिये इनका नित्य प्रेम से अनुष्ठान करना चाहिए ॥९॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (जगदीश्वरः) परमेश्वर ! (त्वोताः) तुम्हारे द्वारा की गई रक्षा से (वयम्) हम (अर्वद्भिः) श्रेष्ठ अश्वों से {अग्ने} समस्त सुखों को प्राप्त करानेवाले (अर्वतः) अश्वों का (नृभिः) विद्या आदि प्रशस्त गुणों से युक्त (नॄन्) विद्या, उत्तम शिक्षा और धर्म से युक्त और (वीरैः) शौर्य आदि से युक्त मनुष्यों के द्वारा, (वीरान्) शौर्य आदि से युक्त मनुष्यों की (वनुयाम) याचना करते हैं। [हम] (त्वत्) तुम्हारी (कृपया) कृपा से (पितृवित्तस्य) पिता के द्वारा भोगे हुए (रायः) धन के (ईशानासः) समर्थ स्वामी (भवेम) होवें। (नः) हम (सूरयः) विद्वान् लोग (शतहिमाः) सौ हेमन्त ऋतुओंवाले, सौ वर्ष [की आयु], (वि) विशेष रूप से (अश्युः) प्राप्त करें ॥९॥

    संस्कृत भाग

    अर्व॑त्ऽभिः । अ॒ग्ने॒ । अर्व॑तः । नृभिः॑ । नॄन् । वी॒रैः । वी॒रान् । व॒नु॒या॒म॒ । त्वाऽऊ॑ताः । ई॒शा॒नासः॑ । पि॒तृ॒ऽवि॒त्तस्य॑ । रा॒यः । वि । सू॒रयः॑ । श॒तऽहि॑माः । नः॒ । अ॒श्युः॒ ॥ विषयः- पुनस्ते कीदृशा भवेयुरित्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- नहि मनुष्यैरीश्वरगुणकर्मस्वभावानुकूलाचरणेन विनोत्तमा विद्याः पदार्थाश्च प्राप्तुं शक्यास्तस्मादेतन्नित्यं प्रेम्णानुष्ठातव्यम् ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    माणसे ईश्वराच्या गुण, कर्म, स्वभावाच्या अनुकूल वागल्याशिवाय व पुरुषार्थाशिवाय उत्तम विद्या व पदार्थ प्राप्त करण्यास समर्थ होऊ शकत नाहीत, त्यामुळे त्याचे सदैव अनुष्ठान करावे. ॥ ९ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Agni, lord of light and wealth of life, we pray, under your shelter and protection, let us continuously have horses with horses, brave men with men, and heroic children with children. Inheritors of the wealth and knowledge of our ancestors, let us be good managers of our heritage and move ahead. And may men of heroic vision and wisdom give us protective guidance for hundreds of years.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How should they be is taught in the ninth Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O God, protected by Thee. may we desire and pray for good horses with our horses, good learned righteous persons with our men, brave heroes with our brave persons. May our sons and other learned persons be inheritors of the wealth got from forefathers and wise teachers, and live for a hundred winters (years).

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (वनुयाम) इच्छेम याचेम = Desire or pray for (वनु-याचने तना०) = Tr.

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men can not obtain knowledge and good articles without conducting themselves in accordance with the attributes, actions and nature of God. Therefore they should behave accordingly with love.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject of the mantra

    Then, how should those human beings be?This subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (jagadīśvaraḥ) =God, (tvotāḥ) =with the protection done by you, (vayam) =we, (arvadbhiḥ) =by best horses, {agne} =the one who makes all happy, (arvataḥ) =of horses, (nṛbhiḥ) =endowed with great qualities like knowledge etc., (nṝn) =full of knowledge, good education and righteousness, (vīraiḥ)= by men of bravery etc., (vīrān) =of men of bravery etc., (vanuyāma) =beg, [hama]=we, (tvat) =your, (kṛpayā) =by grace, (pitṛvittasya) =enjoyed by father, (rāyaḥ) =of wealth, (īśānāsaḥ) =capable owner, (bhavema) =be, (naḥ) =we, (sūrayaḥ) =scholars, (śatahimāḥ) =hundred, winter seasons, [kī āyu]=life,, (vi) =specially, (aśyuḥ) =attain.

    English Translation (K.K.V.)

    O God! With the protection done by you, we pray to the best horses who provide all the happiness, the knowledge of horses etc., people with excellent qualities like knowledge, good education and righteousness and people with bravery etc. We beg by your grace, we become capable owners of the wealth enjoyed by our father. May we learned people especially attain the age of hundred years, having hundred winter seasons (Agrahāyana and Pausha).

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    Without human beings behaving in accordance with the qualities, actions and nature of God, good knowledge and things cannot be attained, hence these should be performed daily with love.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top