Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 74 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 74/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गोतमो राहूगणः देवता - अग्निः छन्दः - स्वराडार्चीगायत्री स्वरः - षड्जः

    त्वोतो॑ वा॒ज्यह्र॑यो॒ऽभि पूर्व॑स्मा॒दप॑रः। प्र दा॒श्वाँ अ॑ग्ने अस्थात् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाऽऊ॑तः । वा॒जी । अह्र॑यः । अ॒भि । पूर्व॑स्मात् । अप॑रः । प्र । दा॒श्वान् । अ॒ग्ने॒ । अ॒स्था॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वोतो वाज्यह्रयोऽभि पूर्वस्मादपरः। प्र दाश्वाँ अग्ने अस्थात् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाऽऊतः। वाजी। अह्रयः। अभि। पूर्वस्मात्। अपरः। प्र। दाश्वान्। अग्ने। अस्थात् ॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 74; मन्त्र » 8
    अष्टक » 1; अध्याय » 5; वर्ग » 22; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥

    अन्वयः

    हे अग्ने यथाऽह्रयोऽपरस्त्वोतो वाजी दाश्वान्वा पूर्वस्मादभिसंप्रयुक्तः सन् प्रतिष्ठते प्रस्थितो भवति तथाऽन्ये पदार्थाः सन्तीति विजानीहि ॥ ८ ॥

    पदार्थः

    (त्वोतः) युष्माभिरूतः सङ्गमितः (वाजी) प्रशस्तो वेगोऽस्यास्तीति (अह्रयः) यैः सद्योऽह्नुवन्ति व्याप्नुवन्ति यानानि मार्गांस्ते (अभि) आभिमुख्ये (पूर्वस्मात्) पूर्वाधिकरणस्थात् (अपरः) अन्यो देशोऽन्यः शिल्पी वा (प्र) (दाश्वान्) दाता (अग्ने) विद्वन् (अस्थात्) तिष्ठति ॥ ८ ॥

    भावार्थः

    अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्नहि शिल्पविद्यासिद्धयन्त्रप्रयोगेण विनाग्नियानानां गमयिता भवतीति वेद्यम् ॥ ८ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (4)

    विषय

    फिर वह कैसा है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

    पदार्थ

    हे (अग्ने) विद्यायुक्त ! जैसे (अह्रयः) शीघ्रयान मार्गों को प्राप्त करानेवाले अग्नि आदि (अपरः) और भिन्न देश वा भिन्न कारीगर (त्वोतः) आपसे संगम को प्राप्त हुआ (वाजी) प्रशंसा के योग्य वेगवाला (दाश्वान्) दाता (पूर्वस्मात्) पहले स्थान से (अभि) सन्मुख (प्रास्थात्) देशान्तर को चलानेवाला होता है, वैसे अन्य मन आदि पदार्थ भी हैं, ऐसा तू जान ॥ ८ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को यह जानना चाहिये कि शिल्पविद्यासिद्ध यन्त्रों के विना अग्नि यानों का चलानेवाला नहीं होता ॥ ८ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    आगे और आगे

    पदार्थ

    १. हे प्रभो ! (त्वा ऊतः) = आपसे रक्षित किया हुआ व्यक्ति (वाजी) = शक्तिशाली होता है । वस्तुतः इस व्यक्ति में प्रभु की शक्ति का प्रवाह बहता है । २. (अह्रयः) = यह व्यर्थ के संकोच व झिझकवाला नहीं होता । यह उत्साहपूर्वक अपने क्रियाक्षेत्र में आगे और आगे बढ़ता है । “स्वं महिमानमायजताम्” इस आपके उपदेश के अनुसार अपनी महिमा को समझता हुआ यह कार्यक्षेत्र में घबराता नहीं । ३. (पूर्वस्मात् अपरः अभि) = [अपरम् अभि] , पहले आश्रम में यह आगे बढ़ता है । ४. हे (अग्ने) = अग्रणी प्रभो ! (दाश्वान्) = आपके प्रति अपना अर्पण करनेवाला व्यक्ति (प्र - अस्थात्) = आगे और आगे पग रखता है । यह प्रभु के प्रति अपना अर्पण करता है, प्रभु इसका रक्षण करते हैं और शक्ति प्राप्त कराते हैं । इस शक्ति को प्राप्त करके यह उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - हम शक्तिशाली व उत्साहसम्पत्र होकर निरन्तर आगे बढ़ें ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    राजा और विद्वान् के कर्तव्योपदेश ।

    भावार्थ

    हे ( अग्ने ) अग्रणी नायक ! ( त्वा-उतः ) तेरे से संगत और सुरक्षित होकर (वाजी ) वेग से जाने हारा ( अह्रयः ) भय, लज्जा और संकोच से रहित ( दावान् ) दानशील, शस्त्रादि फेंकने में कुशल होकर ( पूर्वस्मात् ) पूर्व अर्थात मुख्य पद से ( अपरः ) दूसरा होकर भी ( अभि प्र अस्थात् ) आगे बढ़े । हे परमेश्वर ! ज्ञानी पुरुष भी निःसंकोच होकर ( पूर्वस्मात् ) अपने पूर्व के अनुभवी ज्ञाननिष्ट गुरु से ( अपरः ) शिष्यवत् ज्ञान प्राप्त करके वह आगे बढ़े ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गोतमो राहूगण ऋषिः ॥ अग्निर्देवता ॥ छन्दः—१ निचृत्पंक्तिः । २ निचृत् त्रिष्टुप् । ३, ५ विराट् त्रिष्टुप् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    विषय (भाषा)- फिर वह विद्वान् कैसा है, इस विषय का उपदेश इस मन्त्र में किया है ॥

    सन्धिविच्छेदसहितोऽन्वयः

    सन्धिच्छेदसहितोऽन्वयः- हे अग्ने यथा अह्रयः अपरः त्वोतः वाजी दाश्वान् वा पूर्वस्मात् अभि संप्रयुक्तः सन् प्र तिष्ठते{अस्थात्} प्र स्थितः भवति तथा अन्ये पदार्थाः सन्ति इति विजानीहि ॥८॥

    पदार्थ

    पदार्थः- हे (अग्ने) विद्वन्= विद्वान्! (यथा)=जैसे, (अह्रयः) यैः सद्योऽह्नुवन्ति व्याप्नुवन्ति यानानि मार्गांस्ते=शीघ्र ही यानों के मार्गों को भरनेवाले, (अपरः) अन्यो देशोऽन्यः शिल्पी वा=अन्य स्थानोंऔर अन्य शिल्पियों के द्वारा, (त्वोतः) युष्माभिरूतः सङ्गमितः= तुम्हारे द्वारा जोड़े हुए, (वाजी) प्रशस्तो वेगोऽस्यास्तीति =श्रेष्ठ वेगों वाले,(दाश्वान्) दाता= दाता, (वा)=और, (पूर्वस्मात्) पूर्वाधिकरणस्थात्=पहले के स्थान में स्थित, (अभि) आभिमुख्ये=सामने से, (संप्रयुक्तः)=अच्छे प्रकार से प्रयोग करते, (सन्)=हुए, (प्र)=प्रमुख रूप से, {अस्थात्} तिष्ठति= स्थित, (भवति)= होता है, (तथा)=वैसे ही, (अन्ये) = अन्य, (पदार्थाः)= पदार्थ, (सन्ति)=हैं, (इति)=ऐसा, (विजानीहि)=जानिये ॥८॥

    महर्षिकृत भावार्थ का भाषानुवाद

    महर्षिकृत भावार्थ का अनुवादक-कृत भाषानुवाद- इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों के द्वारा शिल्प विद्या से सिद्ध किये गये यन्त्रों के विना अग्नि यानों का चलाना सम्भव नहीं होता है, ऐसा जानना चाहिए ॥८॥

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)

    पदार्थान्वयः(म.द.स.)- हे (अग्ने) विद्वान्! (यथा) जैसे (अह्रयः) शीघ्र ही यानों के मार्गों को भरनेवाले, (अपरः) अन्य स्थानों और अन्य शिल्पियों के द्वारा (त्वोतः) तुम्हारे द्वारा जोड़े हुए (वाजी) श्रेष्ठ वेगों वाला (दाश्वान्) दाता (वा) और (पूर्वस्मात्) पहले के स्थान में स्थित, (अभि) सामने से (संप्रयुक्तः+सन्) अच्छे प्रकार से प्रयोग करते हुए, (प्र) प्रमुख रूप से {अस्थात्} स्थित (भवति) होता है, (तथा) वैसे ही (अन्ये) अन्य (पदार्थाः) पदार्थ (सन्ति) हैं, (इति) ऐसा (विजानीहि) जानिये ॥८॥

    संस्कृत भाग

    त्वाऽऊ॑तः । वा॒जी । अह्र॑यः । अ॒भि । पूर्व॑स्मात् । अप॑रः । प्र । दा॒श्वान् । अ॒ग्ने॒ । अ॒स्था॒त् ॥ विषयः- पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ॥ भावार्थः(महर्षिकृतः)- अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैर्नहि शिल्पविद्यासिद्धयन्त्रप्रयोगेण विनाग्नियानानां गमयिता भवतीति वेद्यम् ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी हे जाणावे की शिल्पविद्यासिद्ध यंत्राशिवाय अग्नी यानांना चालवीत नसतो. ॥ ८ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (3)

    Meaning

    Lord of light and power, Agni, protected by you and blest with your speed, the generous and creative yajamana of scientific adventure, superfast, free and bold, shoots from one place and reaches the other.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is Agni is taught further in the eighth mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    (1) O learned person ! A men of charitable disposition protected by thee thought formerly inferior, becomes mighty going rapidly to his destination without hesitation and is honoured everywhere. (2) An artist aided by an expert learned scientist manufactures good quick-moving machines.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (दाश्वान्) दाता (दाशृ -दाने दाश्वान् साह्वान् इति क्वसु प्रत्ययान्तो निपातितः ॥ Donor. (१) अय: ये सद्य: अन्हुवन्ति व्याप्नुवन्ति यानानि मागीस्ते ।

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Men should know that without the machines manufactured with the aid of technology, none can move vehicles where fire is used.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject of the mantra

    Then, how is that scholar? This subject has been preached in this mantra.

    Etymology and English translation based on Anvaya (logical connection of words) of Maharshi Dayanad Saraswati (M.D.S)-

    He=O! (agne) =scholar, (yathā) =like, (ahrayaḥ)= who quickly fills the paths of vehicles, (aparaḥ)= In other places and by other craftsmen, (tvotaḥ)= added by you, (vājī) =having best speed, (dāśvān) =the giver, (vā) =and, (pūrvasmāt)= located in the earlier place, (abhi) =from front, (saṃprayuktaḥ+san) using well, (pra)= prominently, {asthāt} =placed, (bhavati)= is, (tathā) =in the same way, (anye) =other, (padārthāḥ) =substances, (santi) =are, (iti) =such, (vijānīhi) =know.

    English Translation (K.K.V.)

    O scholar! Just as the one, who quickly fills the paths of vehicles, the giver of superior speeds added by you through other places and other craftsmen and is situated in the earlier place, using it well from the front, is prominently placed, similarly others know that there are substances.

    TranslaTranslation of gist of the mantra by Maharshi Dayanandtion of gist of the mantra by Maharshi Dayanand

    There is silent vocal simile as a figurative in this mantra. It should be known that it is not possible to run fire vehicles without the machines perfected by humans through craftsmanship.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top