Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 1 के सूक्त 97 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 97/ मन्त्र 3
    ऋषिः - कुत्सः आङ्गिरसः देवता - अग्निः छन्दः - निचृद्गायत्री स्वरः - षड्जः

    प्र यद्भन्दि॑ष्ठ एषां॒ प्रास्माका॑सश्च सू॒रय॑:। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    प्र । यत् । भन्दि॑ष्ठः । ए॒षा॒म् । प्र । अ॒स्माका॑सः । च॒ । सू॒रयः॑ । अप॑ । नः॒ । शोशु॑चत् । अ॒घम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    प्र यद्भन्दिष्ठ एषां प्रास्माकासश्च सूरय:। अप न: शोशुचदघम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    प्र। यत्। भन्दिष्ठः। एषाम्। प्र। अस्माकासः। च। सूरयः। अप। नः। शोशुचत्। अघम् ॥ १.९७.३

    ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 97; मन्त्र » 3
    अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः स कीदृश इत्युपदिश्यते ।

    अन्वयः

    हे अग्ने यद्यस्य तव सभायामेषां मध्येऽस्माकासः प्रसूरयो वीराश्च सन्ति ते सभासदः सन्तु। स भन्दिष्ठो भवान् नोऽस्माकमघं प्रापशोशुचत् ॥ ३ ॥

    पदार्थः

    (प्र) प्रकृष्टार्थे (यत्) यस्य (भन्दिष्ठः) अतिशयेन कल्याणकारकः (एषाम्) मनुष्यादिप्रजास्थप्राणिनाम् (प्र) (अस्माकासः) येऽस्माकं मध्ये वर्त्तमानाः। अत्राणि वाच्छन्दसि सर्वे विधयो भवन्तीति वृद्ध्यभावः। (च) वीराणां समुच्चये (सूरयः) मेधाविनो विद्वांसः (अप, नः०) इति पूर्ववत् ॥ ३ ॥

    भावार्थः

    अत्राप्यग्ने इति पदमनुवर्त्तते। विद्वांसः यदा सभाद्यध्यक्षा आप्ताः सभासदः पूर्णशरीरबला भृत्याश्च भवेयुस्तदा राज्यपालनं विजयश्च सम्यग्भवेताम्। अतो विपर्य्यये विपर्य्ययः ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर वह सभाध्यक्ष कैसा हो, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।

    पदार्थ

    हे अग्ने सभापते ! (यत्) जिन आपकी सभा में (एषाम्) इन मनुष्य आदि प्रजाजनों के बीच (अस्माकासः) हम लोगों में से (प्र, सूरयः) अत्यन्त बुद्धिमान् विद्वान् (च) और वीरपुरुष हैं वे सभासद् हों, (भन्दिष्ठः) अतिकल्याण करनेहारे आप (नः) हम लोगों के (अघम्) शत्रुजन्य दुःखरूप पाप को (प्र, अप, शोशुचत्) दूर कीजिये ॥ ३ ॥

    भावार्थ

    इस मन्त्र में भी (अग्ने) इस पद की अनुवृत्ति आती है। जब विद्वान् सभा आदि के अधीश आप्त अर्थात् प्रामाणिक सत्य वचन को कहनेवाले सभासद् और आत्मिक, शारीरिक बल से परिपूर्ण सेवक हों, तब राज्यपालन और विजय अच्छे प्रकार होते हैं, इससे उलटेपन में उलटा ही ढङ्ग होता है ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    लोकहित व सज्जन - सङ्ग

    पदार्थ

    १. (यत्) = चूँकि मैं (एषाम्) = इन मनुष्यों का (प्रभन्दिष्ठः) = [भदि कल्याणे सुखे च] अधिक से - अधिक कल्याण व सुख करनेवाला हुआ हूँ (च) = तथा (अस्माकासः) = हमारे साथ मेल करनेवाले (प्रसूरयः) = प्रकृष्ट ज्ञानी हैं , अर्थात् हम ज्ञानियों के सम्पर्क में ही उठते - बैठते हैं , इसलिए (नः) = हमारा (अघम्) = पाप (अप) = हमसे दूर होकर (शोशुचत्) = शोक - सन्तप्त होकर नष्ट हो जाए । 

    २. पाप को दूर करने के लिए आवश्यक है कि [क] हम लोकहित के कामों में लगे रहें । आराम की वृत्ति आयी तो पाप भी आये । भोगप्रवणता अवश्य पाप की और ले - जाती है । [ख] हम सदा ज्ञानियों के सम्पर्क में रहें । उन्हीं के साथ हमारा उठना - बैठना हो । सत्सङ्ग हमें पाप से बचाता है , दुर्जनसंग पाप में ले - जाता है । 
     

    भावार्थ

    भावार्थ - पाप से बचने के लिए हम लोकहित के कामों में संलग्न रहें और सदा ज्ञानियों का संग करें । 
     

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    और उसके साथ प्रजा की उन्नति के नाना उपाय ।

    भावार्थ

    ( यत् ) जो ( अस्माकासः ) हमारे ( सूरयः च ) विद्वान्, बुद्धिमान् पुरुष हैं, हे ( अग्ने ) अग्रणी नायक ! विद्वन् ! प्रभो ! ( एषाम् ) उनमें से भी आप ही ( भंदिष्ठः ) सबसे अधिक प्रजा को सुखकारी और कल्याणकारी हैं। और वे सब ( प्र प्र जायेरन् ) उत्तम रूपसे सभापति और सभासद् रूप से मान आदर प्राप्त करें । ( नः अघम् अपशोशुचत् ) हमारा पाप, रोग, आलस्य तथा दुराचार, असत्य भाषण चौर्य हिंसा आदि कार्य दण्ड, प्रायश्चित्त और उपदेश आदि से भस्म कर दूर कर दिया जाय ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    कुत्स आंङ्गिरस ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१,७, ८ पिपिलिकामध्यनिचृद् गायत्री । २, ४, ५ गायत्री । ३, ६ निचृद्गायत्री ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    या मंत्रातही (अग्ने) या पदाची अनुवृत्ती झालेली आहे. जेव्हा सभेचा राजा विद्वान, सत्यवचनी सभासद व शारीरिक बलाने परिपूर्ण सेवक असतील तर राज्यपालन उत्तम होते व विजय चांगल्या प्रकारे प्राप्त होतो. याविरुद्ध असल्यास सर्व उलट होते. ॥ ३ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Lord most shining and excellent, whosoever among these people be the best of our people, let them be the leaders of the assembly and administrators. Agni, lord of light and power, cleanse us of our sins and let us shine.

    इस भाष्य को एडिट करें

    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    How is Agni (President) is taught further in the third Mantra.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O Agni (President of the assembly) who ever are brave, highly learned and intelligent people among us in your assembly, let them be members there. You who are the best among the bringers about of welfare of all, remove all sins (Physical, mental and vocal) from us.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    (भन्दिष्ठ:) अतिशयेन कल्यारणकारक: = The best among those who bring about the welfare of the people. (भदि-कल्याणे सुखे च)

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    When absolutely truthful and learned persons are the Presidents and members of the assemblies, and persons full of perfect power are attendants or workers, then there is the protection of the State and victory. When it is contrary to this, the result is also opposite.

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top