ऋग्वेद - मण्डल 1/ सूक्त 97/ मन्त्र 6
ऋषिः - कुत्सः आङ्गिरसः
देवता - अग्निः
छन्दः - निचृद्गायत्री
स्वरः - षड्जः
त्वं हि वि॑श्वतोमुख वि॒श्वत॑: परि॒भूरसि॑। अप॑ न॒: शोशु॑चद॒घम् ॥
स्वर सहित पद पाठत्वम् । हि । वि॒श्व॒तः॒ऽमु॒ख॒ । वि॒श्वतः॑ । प॒रि॒ऽभूः । असि॑ । अप॑ । नः॒ । शोशु॑चत् । अ॒घम् ॥
स्वर रहित मन्त्र
त्वं हि विश्वतोमुख विश्वत: परिभूरसि। अप न: शोशुचदघम् ॥
स्वर रहित पद पाठत्वम्। हि। विश्वतःऽमुख। विश्वतः। परिऽभूः। असि। अप। नः। शोशुचत्। अघम् ॥ १.९७.६
ऋग्वेद - मण्डल » 1; सूक्त » 97; मन्त्र » 6
अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 6
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अष्टक » 1; अध्याय » 7; वर्ग » 5; मन्त्र » 6
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भाष्य भाग
संस्कृत (1)
विषयः
अथेश्वरः कीदृशोऽस्तीत्युपदिश्यते ।
अन्वयः
हे विश्वतोमुख जगदीश्वर यतस्त्वं हि खलु विश्वतः परिभूरसि तस्माद्भवान्नोऽस्माकमघमपशोशुचद् ॥ ६ ॥
पदार्थः
(त्वम्) जगदीश्वरः (हि) खलु (विश्वतोमुख) सर्वत्र व्यापकत्वादन्तर्यामितया सर्वोपदेष्टः (विश्वतः) सर्वतः (परिभूः) सर्वोपरि विराजमानः (असि) (अप०) इति पूर्ववत् ॥ ६ ॥
भावार्थः
मनुष्यैः सत्यप्रेमभावेन प्रार्थितोऽन्तर्यामीश्वर आत्मनि सत्योपदेशेन पापादेतान्पृथक्कृत्य शुभगुणकर्मस्वभावेषु प्रवर्त्तयति तस्मादयं नित्यमुपासनीयः ॥ ६ ॥
हिन्दी (5)
विषय
अब ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ।
पदार्थ
हे (विश्वतोमुख) सबमें व्याप्त होने और अन्तर्यामीपन से सबको शिक्षा देनेवाला जगदीश्वर ! जिस कारण (त्वं, हि) आप ही (विश्वतः) सब ओर से (परिभूः) सबके ऊपर विराजमान (असि) हैं, इससे (नः) हम लोगों के (अघम्) दुष्ट स्वभाव सङ्गरूप पाप को (अप, शोशुचत्) दूर कराइये ॥ ६ ॥
भावार्थ
सत्य-सत्य प्रेमभाव से प्रार्थना को प्राप्त हुआ अन्तर्यामी जगदीश्वर मनुष्यों के आत्मा में जो सत्य-सत्य उपदेश से उन मनुष्यों को पाप से अलगकर शुभ गुण, कर्म और स्वभाव में प्रवृत्त करता है, इससे यह नित्य उपासना करने योग्य है ॥ ६ ॥
पदार्थ
पदार्थ = हे ( विश्वतोमुख ) = सर्वद्रष्टा परमात्मन्! आपका मुख सब दिशाओं में है आप सब ओर देख रहे हैं। आप ( विश्वतः ) = सर्वत्र ( परिभूः असि ) = व्याप्त हैं, ( न: ) = हमारे ( अघम् ) = पाप (अप शोशुचत् ) = सर्वथा विनष्ट हों ।
भावार्थ
भावार्थ = हे विश्वतोमुख सर्वद्रष्टा परमात्मन्! आप सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त हैं, अतएव आपका नाम विश्वतोमुख है। आप अपनी सर्वज्ञता से, सब जीवों के हृदय के भावों को और उनके कर्मों को जानते हैं, कोई बात आपसे छिपी नहीं । इसलिए हमारी ऐसी प्रार्थना है कि, हमारे सब पाप और पापों के कारण दुष्ट संकल्पों को नष्ट करें। जिससे हम आपके सच्चे ज्ञानी और भक्त बन सकें ।
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे अग्ने परमात्मन्! (त्वं, हि) आप ही निश्चित (विश्वतः परिभूरसि) सब जगत् और सब ठिकानों में व्याप्त हो, अतएव आप विश्वतोमुख हो । हे (विश्वतोमुख) सर्वतोमुख अग्ने ! आप स्वमुख नाम स्वशक्ति से सब जीवों के हृदय में सत्योपदेश नित्य ही कर रहे हो, वही आपका मुख है। हे कृपालो ! (अप नः शोशुचदघम्) आपकी इच्छा से हमारा पाप सब नष्ट हो जाए, जिससे हम लोग निष्पाप होके आपकी भक्ति और आज्ञा-पालन में नित्य तत्पर " रहें ॥ ३९ ॥
विषय
विश्वतः परिभूः [सर्वतो रक्षक]
पदार्थ
१. हे (विश्वतोमुख) = सब ओर मुखवाले परमात्मन् ! (त्वम्) = आप (हि) = निश्चय से (विश्वतः) = सब और से (परिभूः) = हमारे रक्षक (असि) = हैं [परिभूः परिग्रहीता] । सामान्यतः सामने से आते हुए शत्रु को देखकर हम सावधान होकर उससे युद्ध कर सकते हैं , परन्तु जब चारों ओर से इन शत्रुओं का आक्रमण होने लगे तब तो वे विश्वतोमुख प्रभु ही हमें इनके आक्रमण से बचा सकते हैं ।
२. हे प्रभो ! आपके रक्षण में (अघम्) = यह पाप (नः) = हमसे (अप) = दूर होकर (शोशुचत्) = शोक - सन्तप्त होकर नष्ट हो जाए । प्रभु का उपासन हमें पापों से बचाता है । वे विश्वतोमुख प्रभु किसी ओर से भी इस पाप को हमपर आक्रमण नहीं करने देते । यदि वह शत्रु [काम - मनसिज] बाहर से न आकर अन्दर ही उत्पन्न होने का आयोजन करता है तो वहाँ भी वह अन्तः स्थित प्रभु के तेज से दग्ध हो जाता है ।
भावार्थ
भावार्थ - विश्वतोमुख प्रभु का उपासन हमें पाप से बचाएगा ।
विषय
और उसके साथ प्रजा की उन्नति के नाना उपाय ।
भावार्थ
हे (विश्वतोमुख ) सब तरफ, सब बातो में मुखस्थानीय सब में मुख्य ! तू ( हि ) क्योंकि ( विश्वतः ) सब प्रकार से और सबके ( परिभूः ) ऊपर विराजमान (असि) है, तेरे शासन से ( नः अधम् अप शोशुचत् ) हमारे समस्त पापाचरण दूर हो । परमेश्वर सर्वव्यापक होने से ‘विश्वतोमुख’ है । सर्वोपरि शक्तिशाली होने से ‘परिभू’ है ।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
कुत्स आंङ्गिरस ऋषिः॥ अग्निर्देवता॥ छन्दः—१,७, ८ पिपिलिकामध्यनिचृद् गायत्री । २, ४, ५ गायत्री । ३, ६ निचृद्गायत्री ॥ अष्टर्चं सूक्तम् ॥
मराठी (2)
भावार्थ
खऱ्या प्रेमभावाने प्रार्थित अंतर्यामी ईश्वर माणसांच्या आत्म्यात सत्य उपदेशाने त्यांना पापापासून परावृत्त करतो व शुभ गुण, कर्म, स्वभावात प्रवृत्त करतो. त्यासाठी तो नित्य उपासना करण्यायोग्य आहे. ॥ ६ ॥
विषय
प्रार्थना
व्याखान
हे अग्ने ! [परमेश्वरा] (त्वं हि) तूच (विश्वतः परिभूरसि) सर्व जगात सर्व ठिकाणी व्याप्त आहेस. म्हणून तू विश्वतोमुख आहेस. हे सर्वतोमुखी अग्ने [परमेश्वरा] । तू सर्व जीवांच्या हृदयात स्वतःच्या सामर्थ्याने नित्य सत्योपदेशच करीत आहेस, तेच तुझे मुख आहे. हे कृपाळू [देवा] ! (अप नः शोशुचदघम्) तुझ्या कृपेने आमची सर्व पापे नष्ट होवोत आम्ही निष्पाप बनन तुझी भक्ती करावी, तसेच तुझे आज्ञापालन करण्यास सदैव तयार असावे. ॥३९॥
इंग्लिश (3)
Meaning
Agni, lord omnipresent of universal face and all-seeing eye, you are the lord supreme over all the worlds. Lord of light and fire, burn off our sins and let us shine pure and powerful.
Purport
O Self-effulgent Supreme Lord! Undoubtedly you pervade the whole universe at each and every place. You are immanent in every particle, therefore, you are viśvatomukha ì.e. Your face is everywhere you have spread your powers in all the directions. O Effulgent God! With your inherent might you are always imparting your true advice in the hearts of all human beings-the same is your face-mouth. O the merciful God! By Your kind grace all our sins should vanish so that by becoming sinless, we should always be engaged in worshipping you and adhere to your commandments.
Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]
How is God is taught in the sixth Mantra.
Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]
O God, Thou hast Thy face every where in as much as Thou from Thy abode in the soul within the human heart, teachest the truth to every man and woman. Thou alone art immanent in every thing, pervadest the whole universe and art above all by Thy knowledge and power. Burn away all our sinful tendencies and sins.
Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]
(विश्वतोमुख) सर्वत्र व्यापकत्वात् अन्तर्यामितया सर्वोपदेष्टः = Teacher of all as All pervading Supreme Being
Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]
Men should ever adore God and contemplate on Him, as when prayed to sincerely with truth and love, He the Omnipresent Universal Spirit keeps, them away from all sinful acts by giving them true knowledge and prompts them to have good merits and do noble deeds with good temperament.
बंगाली (1)
পদার্থ
ত্বং হি বিশ্বতো মুখ বিশ্বতঃ পরিভূরসি অপ নঃ শোশুচদঘম্।।৮১।।
(ঋগ্বেদ ১।৯৭।৬)
পদার্থঃ হে পরমাত্মা! (ত্বম্ হি) তুমি (বিশ্বতোমুখ) সর্বদ্রষ্টা অর্থাৎ তুমি সকল কিছুই দর্শন করছ। তুমি (বিশ্বতঃ) সর্বত্র (পরিভূঃ অসি) ব্যাপ্ত। (নঃ) আমাদের (অঘম্) পাপ (অপ শোশুচৎ) সর্বদা বিনষ্ট হোক ।
ভাবার্থ
ভাবার্থঃ হে বিশ্বতোমুখ সর্বদ্রষ্টা পরমাত্মা! তুমি সমগ্র জগতে পরিব্যাপ্ত আছ, এজন্যই তোমার নাম বিশ্বতোমুখ। তুমি তোমার সর্বজ্ঞতা দ্বারা সকল জীবের হৃদয়ের ভাবকে ও বিবিধ কর্মকে জানো, কোন বার্তাই তোমার নিকট গোপন নয়। এজন্য আমাদের এই প্রার্থনা যে, আমাদের সকল পাপ ও পাপের নিমিত্ত দুষ্ট সংকল্পকে বিনষ্ট করো যাতে আমরা তোমার প্রকৃত জ্ঞানী ও ভক্ত হিসেবে উত্তীর্ণ হতে পারি।।৮১।।
नेपाली (1)
विषय
प्रार्थनाविषयः
व्याखान
हे अग्ने परमात्मन् | त्वं हि = तपाईं नै निश्चित विश्वतः परिभूरसि= सम्पूर्ण जगत् र सम्पूर्ण स्थान हरु मा व्याप्त हुनुहुन्छ, अत एव तपाईं विश्वतोमुख हुनुहुन्छ । हे विश्वतोमुख = हे सर्वतोमुख अग्ने! तपाईं ‘स्वमुख’ नाम स्वशक्ति द्वारा सबै जीवहरुका हृदयमा सधैं भरि सत्योपदेश गरी रहनु भएको छ, तेही तपाईंको मुख हो । हे कृपालो ! अप, नः शोशुचदघम् = तपाईंको इच्छा ले हाम्रा पाप सबै नष्ट भएर जाऊन् जसले हामी निष्पाप भएर तपाईंको भक्ति र आज्ञा पालन मा सदा तत्पर रहौं ॥ ३९ ॥
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