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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 107 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 107/ मन्त्र 2
    ऋषिः - दिव्यो दक्षिणा वा प्राजापत्या देवता - दक्षिणा तद्दातारों वा छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    उ॒च्चा दि॒वि दक्षि॑णावन्तो अस्थु॒र्ये अ॑श्व॒दाः स॒ह ते सूर्ये॑ण । हि॒र॒ण्य॒दा अ॑मृत॒त्वं भ॑जन्ते वासो॒दाः सो॑म॒ प्र ति॑रन्त॒ आयु॑: ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    उ॒च्चा । दि॒वि । दक्षि॑णाऽवन्तः । अ॒स्थुः॒ । ये । अ॒श्व॒ऽदाः । स॒ह । ते । सूर्ये॑ण । हि॒र॒ण्य॒ऽदाः । अ॒मृत॒ऽत्वम् । भ॒ज॒न्ते॒ । वा॒सः॒ऽदाः । सो॒म॒ । प्र । ति॒र॒न्ते॒ । आयुः॑ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    उच्चा दिवि दक्षिणावन्तो अस्थुर्ये अश्वदाः सह ते सूर्येण । हिरण्यदा अमृतत्वं भजन्ते वासोदाः सोम प्र तिरन्त आयु: ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    उच्चा । दिवि । दक्षिणाऽवन्तः । अस्थुः । ये । अश्वऽदाः । सह । ते । सूर्येण । हिरण्यऽदाः । अमृतऽत्वम् । भजन्ते । वासःऽदाः । सोम । प्र । तिरन्ते । आयुः ॥ १०.१०७.२

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 107; मन्त्र » 2
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (दक्षिणावन्तः) दक्षिणा देनेवाले (दिवि) निर्मल ज्ञान से अपनी आत्मा को (उच्चा-अस्थुः) ऊँचा उठाते हैं (ये अश्वदाः) उनमें जो मार्गव्यापी-यात्रा के साधनों को देनेवाले (ते सूर्येण सह) प्रेरक परमात्मा के साथ बैठतें हैं-उसकी प्रेरणा पाते हैं (हिरण्यदाः) ज्ञानामृत के प्रदान करनेवाले (अमृतं भजन्ते) मोक्ष पद को प्राप्त होते हैं (सोम वासोदाः) सोम्य पात्र-दानशीलजन आश्रय देनेवाले-शरण देनेवाले (आयुः-प्रतिरन्ते) अपना और अन्यों के जीवन को बढ़ाते हैं ॥२॥

    भावार्थ

    दक्षिणा देनेवालों का आत्मा ऊँचा हो जाता है, यात्रा के साधनों को देनेवाले परमात्मा की प्रेरणा पाते हैं, ज्ञानामृत के प्रदान करनेवाले मोक्षप्रद को प्राप्त होते हैं, वस्त्र मकान शरण देनेवाले अपना और अन्यों के जीवन को बढाते हैं ॥२॥

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    विषय

    'अश्व, हिरण्य व वस्त्र' का दान

    पदार्थ

    [१] (दक्षिणावन्तः) = दान देनेवाले (दिवि) = द्युलोक में (उच्चा अस्थुः) = उच्च स्थान में स्थित होते हैं। इन्हें उत्कृष्ट लोक में जन्म प्राप्त होता है अथवा उत्कृष्ट ज्ञान के प्रकाश में स्थित होते हैं । [२] ये (अश्वदाः) = जो घोड़ों का दान करते हैं (ते) = वे (सूर्येण सह) = सूर्य के साथ होते हैं, इनका सूर्यलोक में जन्म होता है । (हिरण्यदाः) = स्वर्ण का दान करनेवाले (अमृतत्वम्) = अमृतत्व का (भजन्ते) = सेवन करते हैं, रोगों से इनकी असमय में ही मृत्यु नहीं हो जाती। [३] हे (सोम) = सौम्य स्वभाववाले पुरुष ! तू यह स्मरण रख कि (वासोदा:) = उत्तम वस्त्रों के देनेवाले लोग (आयुः प्रतिरन्ते) = आयुष्य को बढ़ानेवाले होते हैं । वस्त्रादान मनुष्य को दीर्घजीवी बनाता है ।

    भावार्थ

    भावार्थ - अश्व, हिरण्य, वस्त्र आदि का दान मनुष्य को प्रकाशमय नीरोग व दीर्घजीवी बनाता है।

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    विषय

    दानशीलों की उन्नत स्थिति।

    भावार्थ

    (दक्षिणावन्तः दिवि उच्चा अस्थुः) अन्न के उत्पादक सूर्य के किरण जिस प्रकार उच्च आकाश में स्थिर होते हैं उसी प्रकार दानशील पुरुष सदा (दिवि) आकाश में तारों के तुल्य (उच्चा अस्थुः) ऊंची स्थिति को प्राप्त करते हैं। (ये) जो (अश्व-दाः) अनेक अश्वों का दान करते हैं, अपनी विद्या के बल से राष्ट्र या जन-समाज को वेग से जाने वाले अश्व, रथ और अन्य वेगवान् साधन प्रदान करते हैं (ते) वे (सूर्येण सह) सूर्य के साथ (अस्थुः) स्थिर होते हैं। (हिरण्य-दाः) सुवर्ण आदि का दान देने वाले, वा हित और रमणीय, सुन्दर उपदेश देने वाले (अमृतत्वं भजन्ते) मोक्षस्वरूप अमृत का सेवन करते हैं। हे (सोम) विद्वन् (वासः-दाः) वस्त्र को देने वाले वा सज्जनों को उत्तम गृह आदि आश्रय देने वाले (आयुः प्र तिरन्ते) अपनी दीर्घ आयु प्राप्त करते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्दिव्य आंगिरसो दक्षिणा वा प्राजापत्या॥ देवता—दक्षिणा, तद्दातारो वा॥ छन्द:– १, ५, ७ त्रिष्टुप्। २, ३, ६, ९, ११ निचृत् त्रिष्टुपु। ८, १० पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४ निचृञ्जगती॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (दक्षिणावन्तः) दक्षिणां दत्तवन्तः (दिवि) स्वज्ञानरूपे स्वात्मनि दिवि विमलेन ज्ञानेन स्वात्मनि [ऋ० १।२२।२० दयानन्दः] (उच्चा-अस्थुः) उत्कृष्टाः सन्तास्तिष्ठन्ति (ये-अश्वदाः) तेषु ये मार्गव्यापिनः पदार्थान् प्रयच्छन्ति (ते सूर्येण सह) प्रेरकेण परमात्मना सह तिष्ठन्ति तत्प्रेरणायां विराजन्ते (हिरण्यदाः) ज्ञानामृतस्य दातारः “अमृतं वै हिरण्यम्” [श० ५।२।७।२] ते (अमृतत्वं भजन्ते) मोक्षपदं सेवन्ते “सर्वेषामेव दानानां ब्रह्मदानं विशिष्यते” [मनु० ४।२३३] (सोम वासोदाः) सोम्यपात्राः दानशीलजना आश्रयदातारः (आयुः प्रतिरन्ते) स्वस्य परस्य जीवनं प्रवर्धयन्ति ॥२॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Generous givers of dakshina holy gift, abide on high in the regions of light and bliss. Those who give horse in charity ride with the sun. Givers of gold win immortality. O Soma, friend of peace and joy, givers of shelter and clothes cross the hurdles of life and live a long age.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    दक्षिणा देणाऱ्याचा आत्मा उच्च होतो. यात्रेची साधने देणारे परमात्म्याकडून प्रेरणा प्राप्त करतात. ज्ञानामृत प्रदान करणारे मोक्ष प्राप्त करतात. वस्त्र, घर, आश्रय देणारे आपले व इतरांचे जीवन समृद्ध करतात. ॥२॥

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