ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 107/ मन्त्र 5
ऋषिः - दिव्यो दक्षिणा वा प्राजापत्या
देवता - दक्षिणा तद्दातारों वा
छन्दः - त्रिष्टुप्
स्वरः - धैवतः
दक्षि॑णावान्प्रथ॒मो हू॒त ए॑ति॒ दक्षि॑णावान्ग्राम॒णीरग्र॑मेति । तमे॒व म॑न्ये नृ॒पतिं॒ जना॑नां॒ यः प्र॑थ॒मो दक्षि॑णामावि॒वाय॑ ॥
स्वर सहित पद पाठदक्षि॑णाऽवान् । प्र॒थ॒मः । हू॒तः । ए॒ति॒ । दक्षि॑णाऽवान् । ग्रा॒म॒ऽनीः । अग्र॑म् । ए॒ति॒ । तम् । ए॒व । म॒न्ये॒ । नृ॒ऽपति॑म् । जना॑नाम् । यः । प्र॒थ॒मः । दक्षि॑णाम् । आ॒ऽवि॒वाय॑ ॥
स्वर रहित मन्त्र
दक्षिणावान्प्रथमो हूत एति दक्षिणावान्ग्रामणीरग्रमेति । तमेव मन्ये नृपतिं जनानां यः प्रथमो दक्षिणामाविवाय ॥
स्वर रहित पद पाठदक्षिणाऽवान् । प्रथमः । हूतः । एति । दक्षिणाऽवान् । ग्रामऽनीः । अग्रम् । एति । तम् । एव । मन्ये । नृऽपतिम् । जनानाम् । यः । प्रथमः । दक्षिणाम् । आऽविवाय ॥ १०.१०७.५
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 107; मन्त्र » 5
अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 3; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(दक्षिणावान्) दक्षिणादाता (हूतः) मनुष्यों द्वारा आमन्त्रित सम्मानित किया जाता हुआ (प्रथमः) प्रमुख हो (एति) जनसमाज में प्राप्त होता है (दक्षिणावान्) दक्षिणादाता (ग्रामणीः) ग्राम नगर का नेता हुआ (अग्रम्-एति) अग्रासन को प्राप्त करता है (तम्-एव) उसको ही (नृपतिं मन्ये) नरों का पालक मानता हूँ, मैं दक्षिणाप्रार्थी (यः) जो (प्रथमः) सर्वप्रथम (दक्षिणाम्) दक्षिणा को (आविवाय) अधिकारी जनों के लिये प्राप्त कराता है-समर्पित करता है ॥५॥
भावार्थ
अधिकारी पात्र को दक्षिणा देनेवाला सर्वप्रथम दक्षिणा देकर मनुष्यों द्वारा आमन्त्रित किया जाता है-सम्मनित किया जाता है। ग्राम नगर में नेता बनकर अग्रासन होता है, वह मनुष्यों का पालक होकर लोगों के हृदय में बैठ जाता है, अतः पात्र को दक्षिणा देनी चाहिए ॥५॥
विषय
दान व सर्वप्रथम स्थान
पदार्थ
[१] (दक्षिणावान्) = देने की वृत्तिवाला पुरुष (प्रथमः हूतः) = सबसे प्रथम पुकारा जाकर (एति) = सर्वमुख होकर गति करता है । अर्थात् इस दानी पुरुष को सभा आदि में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त होता है । यह (दक्षिणावान्) = दानवाला पुरुष (ग्रामणीः) = ग्राम का नेता बनकर [ = कौन्सिलर आदि बनकर ] (अग्रम् एति) सबके आगे-आगे चलता है । [२] यः-जो (प्रथमः) = सबसे पूर्व (दक्षिणाम्) = दानवृत्ति को (आविवाय) = [वी प्रजनन] अपने में उत्पन्न व विकसित करता है (तं एव) = उसको ही (जनानाम्) = लोगों का (नृपतिं मन्ये) = राजा मानता हूँ । वस्तुतः ही वह इस दानवृत्ति से (नृ-पति) = मनुष्यों का पालन करनेवाला होता है ।
भावार्थ
भावार्थ- दान हमें सर्वप्रथम स्थान प्राप्त कराता है। दानी पुरुष सच्चे अर्थों में नृपति-प्रजा का रक्षक है।
विषय
अन्नदाता की प्रतिष्ठा।
भावार्थ
अन्न द्रव्य का दाता स्वामी, (प्रथमः) सर्वश्रेष्ठ रूप से (हूतः) स्वीकृत होकर (एति) सबको प्राप्त होता है। और (दक्षिणावान्) दक्षिणावान्, दानशील पुरुष (ग्रामणीः) जन संघों को सन्मार्ग पर ले जाने हारा होकर (अग्रम् एति) अग्रासन पर आता है। (जनानां) मनुष्यों के बीच में (तम् एव नृपतिं मन्ये) उसको ही मैं मनुष्यों का पालक राजावत् मानता हूं। (यः) जो (प्रथमः) सर्वश्रेष्ठ होकर (दक्षिणाम् आ विवाय) दूसरों के उत्साह को उत्पन्न करने वाला दान, भृति, वेतनादि प्रदान करता है।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्दिव्य आंगिरसो दक्षिणा वा प्राजापत्या॥ देवता—दक्षिणा, तद्दातारो वा॥ छन्द:– १, ५, ७ त्रिष्टुप्। २, ३, ६, ९, ११ निचृत् त्रिष्टुपु। ८, १० पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४ निचृञ्जगती॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(दक्षिणावान्) दक्षिणादानाय यस्य पार्श्वे स दक्षिणादाता (हूतः) जनैः स्वीकृतः सम्मानितः (प्रथमः) प्रमुखः सन् (एति) जनसमाजे प्राप्तो भवति (दक्षिणावान्) दक्षिणादाता (ग्रामणीः-अग्रम्-एति) ग्रामस्य नगरस्य नेता सन् अग्रासनं प्राप्नोति (तम्-एवं नृपतिं मन्ये) तमेव दक्षिणादातारं नॄणां जनानां पालयितारं मन्येऽहं दक्षिणार्थी (यः प्रथमः-दक्षिणाम्-आविवाय) यः सर्वप्रथमः सन् दक्षिणां जनेभ्यः समन्तात् प्रापयति समर्पयति ॥५॥
इंग्लिश (1)
Meaning
The giver of dakshina is first invited and goes about in advance of all, the giver of dakshina is chosen as leader and head of the community and goes to occupy the first place. I accept him as leader and ruler of the people, who rises first and highest as the man of generous giving.
मराठी (1)
भावार्थ
यथायोग्य पात्रता असणाऱ्यांना दक्षिणा देणाऱ्या माणसांकडून आमंत्रित, सन्मानित केले जाते. तो ग्रामनगरचा नेता बनून अग्रासन प्राप्त करतो. तो माणसांचा पालक बनून लोकांच्या हृदयात वसतो. त्यासाठी पात्राला दक्षिणा दिली पाहिजे. ॥५॥
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