Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 118 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 118/ मन्त्र 4
    ऋषिः - उरुक्षय आमहीयवः देवता - अग्नी रक्षोहा छन्दः - गायत्री स्वरः - षड्जः

    घृ॒तेना॒ग्निः सम॑ज्यते॒ मधु॑प्रतीक॒ आहु॑तः । रोच॑मानो वि॒भाव॑सुः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    घृ॒तेन॑ । अ॒ग्निः । सम् । अ॒ज्य॒ते॒ । मधु॑ऽप्रतीकः । आऽहु॑तः । रोच॑मानः । वि॒भाऽव॑सुः ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    घृतेनाग्निः समज्यते मधुप्रतीक आहुतः । रोचमानो विभावसुः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    घृतेन । अग्निः । सम् । अज्यते । मधुऽप्रतीकः । आऽहुतः । रोचमानः । विभाऽवसुः ॥ १०.११८.४

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 118; मन्त्र » 4
    अष्टक » 8; अध्याय » 6; वर्ग » 24; मन्त्र » 4
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (विभावसुः) विशिष्ट दीप्ति से बसानेवाला (रोचमानः) प्रकाशमान (अग्निः) अग्रणेता परमात्मा या अग्नि, (घृतेन) देवकर्म-मुमुक्षुचर्य से या घृत से (सम् अज्यते) साक्षात् होता है या जलता है-प्रज्ज्वलित होता है (आहुतः) आमन्त्रित हुआ या होम में प्रदीप्त हुआ (मधुप्रतीकः) मधु सुखप्रतीति का निमित्त या-मधुगन्धप्रतीति करानेवाला होता है ॥४॥

    भावार्थ

    परमात्मा विशेष दीप्ति से बसानेवाला प्रकाशमान है। वह मुमुक्षुचर्या से साक्षात् होता है, वह मधुसुख की प्रतीति का निमित्त है एवं अग्नि विशिष्ट ज्योति से बसानेवाला प्रकाशमान घृत की आहुति से प्रज्ज्वलित होता है और मधुमय गन्ध की प्रतीति-कराता है, उससे प्रतिदिन होम करना चाहिये ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    'मधु प्रतीक' प्रभु

    पदार्थ

    [१] (घृतेन) = मलों के क्षरण व ज्ञान के दीपन से (अग्निः) = वे अग्रेणी प्रभु (समज्यते) = जाने जाते हैं। [अगि गतौ ] प्रभु प्राप्ति का उपाय यह है कि- हम शरीर से मलों का क्षरण करके शरीर को स्वस्थ रखने का ध्यान करें और स्वाध्याय के द्वारा ज्ञान को दीप्त करें। [२] वे प्रभु मधु (प्रतीकः) = अत्यन्त मधुर मुखवाले हैं, अत्यन्त प्रेममय शब्दों में उत्साह की प्रेरणा देनेवाले हैं। (आ- हुत:) = [आ हुतं यस्य] समन्तात् दानवाले हैं। (रोचमान:) = तेजस्विता व ज्ञान से दीप्त हैं। (विभावसुः) = ज्ञानरूप धनवाले हैं। उपासक को भी प्रभु यह ज्ञानरूप धन प्राप्त कराते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ - प्रभु प्राप्ति के लिए हम मलों को अपने से दूर करें तथा ज्ञान को प्राप्त करने के लिए यत्नशील हों । प्रभु हमें अत्यन्त मधुर शब्दों में प्रेरणा देते हैं ।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    घृत से प्रज्वलित अग्निवत् ज्ञानी और तेजस्वी हो।

    भावार्थ

    (घृतेन अग्निः समज्यते) जैसे घी से अग्नि अच्छी प्रकार प्रकाशित होता है उसी प्रकार (अग्निः) तेजस्वी प्रकाशवान् पुरुष भी अपने विशेष प्रकाश से (सम् अज्यते) भली प्रकार प्रकाशित होता है। (मधुप्रतीकः) अभि जिस प्रकार ज्वाला रूप अवयवों में मधु अर्थात् तेज वा ताप से युक्त होता है उसी प्रकार विद्वान् भी (मधु-प्रतीकः) मधुर वचनों को मुख में धारण करने वाला हो। वह (आ-हुतः) आहुति प्राप्त अग्नि के तुल्य गुरु द्वारा उपदेश प्राप्त कर (रोचमानः) प्रकाशित एवं सब को प्रिय लगता हुआ, (विभा-वसुः) दीप्ति के धनी अग्नि के तुल्य (वि भाव-सुः) विशेष सामर्थ्य को प्रकट करने वाला हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिरुरुक्षय आमहीयवः॥ देवता—अग्नी रोहा॥ छन्दः—१ पिपीलिकामध्या गायत्री। २, ५ निचृद्गायत्री। ३, ८ विराड् गायत्री। ६, ७ पादनिचृद्गायत्री। ४, ९ गायत्री॥ नवर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (विभावसुः-रोचमानः) विशिष्टदीप्त्या वासयिता प्रकाशमानः (अग्निः-घृतेन सम् अज्यते) अग्रणेता परमात्मा देवकर्मणा मुमुक्षुचर्येण साक्षाद्  भवति यद्वा यज्ञाग्निः घृतेन ज्वलितो भवति (आहुतः-मधुप्रतीकः) आमन्त्रितः सन् मधुसुखप्रतीतिनिमित्तः यद्वा समन्तात् होमे हुतः सन् मधुगन्धप्रत्यायको भवति ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, honoured and adored with ghrta, served and adorned with honey sweets, invoked and exalted with Vedic hymns, shines and illuminates us as the sun.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    परमात्मा विशेष दीप्तीने प्रकाशित असतो. तो मुमुक्षूंच्या आचरणाने साक्षात होतो. तो मधुसुखाच्या प्रतीतीचे निमित्त आहे. अग्नी विशिष्ट ज्योतीने वसविणाऱ्या प्रकाशमान घृताच्या आहुतीने प्रज्वलित होतो व मधुमय गंधाची प्रतीती करवितो. त्यामुळे प्रत्येक दिवशी होम केला पाहिजे. ॥४॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top