ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 42/ मन्त्र 10
गोभि॑ष्टरे॒माम॑तिं दु॒रेवां॒ यवे॑न॒ क्षुधं॑ पुरुहूत॒ विश्वा॑म् । व॒यं राज॑भिः प्रथ॒मा धना॑न्य॒स्माके॑न वृ॒जने॑ना जयेम ॥
स्वर सहित पद पाठगोभिः॑ । त॒रे॒म॒ । अम॑तिम् । दुः॒ऽएवा॑म् । यवे॑न । क्षुध॑म् । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । विश्वा॑म् । व॒यम् । राज॑ऽभिः । प्र॒थ॒मा । धना॑नि । अ॒स्माके॑न । वृ॒जने॑न । ज॒ये॒म॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
गोभिष्टरेमामतिं दुरेवां यवेन क्षुधं पुरुहूत विश्वाम् । वयं राजभिः प्रथमा धनान्यस्माकेन वृजनेना जयेम ॥
स्वर रहित पद पाठगोभिः । तरेम । अमतिम् । दुःऽएवाम् । यवेन । क्षुधम् । पुरुऽहूत । विश्वाम् । वयम् । राजऽभिः । प्रथमा । धनानि । अस्माकेन । वृजनेन । जयेम ॥ १०.४२.१०
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 42; मन्त्र » 10
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 5
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(पुरुहूत) हे बहुत आह्वान करने योग्य राजन् (गोभिः-दुरेवाम्-अमतिम्) वेदवाणियों से दुःख प्राप्त करानेवाली अज्ञान बुद्धि को (यवेन विश्वां क्षुधम्) अन्न से समस्त भूख को (तरेम) पार करें-निवृत्त करें (राजभिः प्रथमा धनानि) आप जैसे राजाओं से प्रमुख धनों को प्राप्त करें (अस्माकेन वृजनेन जयेम) तथा हम अपने बल से विजय प्राप्त करें ॥१०॥
भावार्थ
राष्ट्र की प्रजाएँ शासकों की सहायता से धनसम्पत्ति का उपार्जन करें। अपने बल से अपने कार्यों में सफलता प्राप्त करें। विविध भोजनों से क्षुधा की निवृत्ति करें एवं नाना विद्याओं के अध्ययन से अज्ञानबुद्धि को दूर करें ॥१०॥
विषय
गोदुध व यव
पदार्थ
[१] गत मन्त्र के अनुसार 'हम 'देवकाम' बने रहें' इसके लिये आवश्यक है कि (गोभिः) = गोदुग्ध के प्रयोग से (दुरेवाम्) = दुष्ट आचारणवाली (अमतिम्) = कुत्सितमति को हम तरेम जीत लें। गोदुग्ध के प्रयोग से बुद्धि सात्त्विक बनती है और हम सब दुरितों से दूर होते हैं । [२] हे (पुरुहूत) = बहुतों से पुकारे जाने योग्य प्रभो ! हम (विश्वाम्) = इस शरीर में प्रवेश करनेवाली (क्षुधम्) = भूख को (यवेन) = जौ इत्यादि सात्त्विक अन्नों के प्रयोग से तैरें। भूख लगने पर जौ इत्यादि सात्त्विक अन्नों का प्रयोग करें। [३] (अस्माकेन) = हमारे वृजनेन पापवर्जन व पवित्रता के बल से (राजनि:) = राजाओं से (प्रथमा धनानि) = उत्कृष्ट धनों को (जयेम) = जीतनेवाले बनें। राजाओं के द्वारा पवित्रता के लिये पुरस्कार रूप में रखे गये मुख्य धनों को हम प्राप्त करनेवाले हों। [४] यहाँ पर संकेत स्पष्ट है कि राजाओं का कर्त्तव्य है कि राष्ट्र में पवित्र जीवन को प्रोत्साहित करने के लिये विविध पुरस्कारों की उद्घोषणा करें। उन पुरस्कारों को प्राप्त करने के लिये हमारा उद्योग हो। जैसे जनक आदि राजा शास्त्रज्ञान के उत्कर्ष के लिये शतशः गौवों के पुरस्कार को देते थे, इसी प्रकार पवित्र जीवन के लिये पुरस्कार रखें जाएँ और राष्ट्र जीवन में पवित्रता के महत्त्व को प्रसारित किया जाए।
भावार्थ
भावार्थ - गोदुग्ध व जौ के प्रयोग से हमारी बुद्धि सात्त्विक हो और हम पवित्रता के द्वारा उत्कृष्ट धनों के विजेता हों।
विषय
प्रभु और राजा से अज्ञान और धनों के विजय की प्रार्थना।
भावार्थ
हे (पुरु-हूत) बहुतों से पुकारने, आपत्तिकाल में स्मरण करने और अपनाने योग्य प्रभो ! राजन् ! हम लोग (दुरेवाम्) दुःखों के सहित आने वाले, कठिन उपायों से दूर होने वाले, दुःसाध्य (अमतिम्) अज्ञान को (गोभिः तरेम) वेदवाणियों और गुरु-उपदेशों से पार करें। और (यवेन विश्वाम् क्षुधं तरेम) यव आदि अनेक अन्न से सब प्रकार की भूखों को तरे। (वयम्) हम लोग (राजभिः) तेजस्वी पुरुषों से और (अस्माकेन वृजनेन) अपने बल से (प्रथमा धनानि जयेम) श्रेष्ठ २ धनों को प्राप्त करें। अथवा—(प्रथमाः) हम स्वयं वीर पुरुष और बल से श्रेष्ठ होकर धनों को प्राप्त करें।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः कृष्णः। इन्द्रो देवता॥ छन्द:–१, ३, ७-९, ११ त्रिष्टुप्। २, ५ निचृत् त्रिष्टुम्। ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ६, १० विराट् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(पुरुहूत) हे बहुह्वातव्य राजन् ! (गोभिः-दुरेवाम्-अमतिम्) वेदवाग्भिर्दुःखप्रापिकामज्ञानबुद्धिम् (यवेन विश्वां क्षुधम्) अन्नेन सर्वां क्षुधम् (तरेम) पारयेम (राजभिः प्रथमा धनानि) भवादृशैः शासकैः प्रमुखानि धनानि (अस्माकेन वृजनेन जयेम) तथा स्वकीयेनास्मदीयेन बलेन जयेम-जयं प्राप्नुयाम ॥१०॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O ruler of the world invoked and celebrated by all humanity, let us solve the difficult problem of poverty and mental and cultural backwardness by cow development, land development and proper education, and the problem of hunger, by food production across the world. Let us take the initiative first to win wealth by cooperation with other rulers, and ultimately win our goals by our own power and effort.
मराठी (1)
भावार्थ
राष्ट्रातील प्रजेने शासकाच्या साह्याने धनसंपत्तीचे उपार्जन करावे. आपल्या बलाने आपल्या कार्यात सफलता प्राप्त करावी. विविध भोजनांनी क्षुधेची निवृत्ती करावी व नाना विद्येच्या अध्ययनाने अज्ञानबुद्धी दूर करावी. ॥१०॥
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