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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 42 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 42/ मन्त्र 7
    ऋषिः - कृष्णः देवता - इन्द्र: छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आ॒राच्छत्रु॒मप॑ बाधस्व दू॒रमु॒ग्रो यः शम्ब॑: पुरुहूत॒ तेन॑ । अ॒स्मे धे॑हि॒ यव॑म॒द्गोम॑दिन्द्र कृ॒धी धियं॑ जरि॒त्रे वाज॑रत्नाम् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आ॒रात् । शत्रु॑म् । अप॑ । बा॒ध॒स्व॒ । दू॒रम् । उ॒ग्रः । यः । शम्बः॑ । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । तेन॑ । अ॒स्मे इति॑ । धे॒हि॒ । यव॑ऽमत् । गोऽम॑त् । इ॒न्द्र॒ । कृ॒धि । धिय॑म् । ज॒रि॒त्रे । वाज॑ऽरत्नाम् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आराच्छत्रुमप बाधस्व दूरमुग्रो यः शम्ब: पुरुहूत तेन । अस्मे धेहि यवमद्गोमदिन्द्र कृधी धियं जरित्रे वाजरत्नाम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आरात् । शत्रुम् । अप । बाधस्व । दूरम् । उग्रः । यः । शम्बः । पुरुऽहूत । तेन । अस्मे इति । धेहि । यवऽमत् । गोऽमत् । इन्द्र । कृधि । धियम् । जरित्रे । वाजऽरत्नाम् ॥ १०.४२.७

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 42; मन्त्र » 7
    अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 23; मन्त्र » 2
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (पुरुहूत-इन्द्र) हे बहु प्रकार से आमन्त्रण करने योग्य राजन् ! (यः) जो तेरा (उग्रः शम्बः) तीक्ष्ण वज्र है, (तेन शत्रुम्) उससे शत्रु को (आरात्-अप बाधस्व) समीप से आक्रमण की सन्निकटता से पीड़ित कर या दूर भगा (अस्मे) हमारे लिए (यवमत्) अन्नवाला भोजन (गोमत्) दुग्धवाला भोजन (कृधि) कर दे (जरित्रे) पुरोहित के लिए (वाजरत्नां धियम्) अमृतान्नरत्न से युक्त कर्मप्रवृत्ति को कर ॥७॥

    भावार्थ

    राजा को चाहिए अपने तीक्ष्ण शस्त्र से शत्रु को पीड़ित करे या दूर करे और प्रजाजनों के लिए दुग्ध आदि मिश्रित भोजन मिलता रहे, ऐसी व्यवस्था करे ॥७॥

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    विषय

    रमणीय शक्ति व बुद्धि

    पदार्थ

    [१] हे (पुरुहूत) = बहुतों से पुकारे जानेवाले प्रभो ! (यः) = जो आपका (उग्रः) = तीव्र (शम्बः) = वज्र है (तेन) = उस शत्रुओं को शान्त [समाप्त] करनेवाले वज्र से (आरात् शत्रुम्) = इस समीप आनेवाले शत्रु को (दूरं अपबाधस्व) = सुदूर विनष्ट करनेवाले होइये । प्रभु ने हमें क्रियाशीलता रूप वज्र दिया हुआ है, इसी से हमने वासना को विनष्ट करना है। [२] हे (इन्द्र) = परमैश्वर्यशालिन् प्रभो ! (अस्मे) = हमारे लिये आप (यवमत्) = जौवाले व (गोमत्) = गौवेंवाले, गोदुग्ध से युक्त अन्न को (धेहि) = धारण करिये। जौ इत्यादि अन्नों से हमारे में प्राणशक्ति का वर्धन होगा और गोदुग्ध से हमें सात्त्विक बुद्धि प्राप्त होगी। [३] हे प्रभो ! (जरित्रे) = स्तोता के लिये (वाजरत्नाम्) = रमणीय शक्तियोंवाली (धियम्) = बुद्धि को (कृधी) = करिये आपका स्तोता जहाँ बुद्धि को प्राप्त करे वहाँ उसे रमणीय शक्तियाँ भी प्राप्त हों । शक्तियों की रमणीयता इसी में है कि वह रक्षा के कार्य में विनियुक्त होती है, ध्वंस के कार्य में नहीं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- हम क्रियाशीलता के द्वारा वासना को नष्ट करें। जौ व गोदुग्ध का प्रयोग करते हुए रमणीय शक्ति व बुद्धि को प्राप्त करें।

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    विषय

    राजा शत्रु का दूर से ही नाश करे।

    भावार्थ

    हे (पुरु-हूत) बहुत से प्रजाजनों से पुकारे एवं राजारूप से स्वीकार के किये गये राजन् ! (यः उग्रः शम्बः) जो उग्र, अति बलशाली, शत्रुओं का दमन करने और उनको मार कर सुला देने वाला शस्त्रबल है (तेन) उससे तू (आरात्) दूर रहते ही (शत्रुम् अप बाधस्व) शत्रु को पीड़ित कर, दूर भगा। और (अस्मे) हमें (यवमत् गोमत्) अन्न और गौ आदि पशुओं से समृद्ध ऐश्वर्य प्रदान कर। और (जरित्रे) स्तुति करने वाले की (धियं) बुद्धि और कर्म को (वाज-रत्नां धेहि) ज्ञान और बल से सुशोभित कर।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिः कृष्णः। इन्द्रो देवता॥ छन्द:–१, ३, ७-९, ११ त्रिष्टुप्। २, ५ निचृत् त्रिष्टुम्। ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ६, १० विराट् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (पुरुहूत-इन्द्र) हे बहुप्रकारेण ह्वातव्य राजन् ! (यः) यस्ते (उग्रः शम्बः) तीक्ष्णो वज्रः “शम्ब इति वज्रनाम, शमयतेर्वा शातयतेर्वा” [निरु० ५।२४] (तेन शत्रुम्-आरात्-अपबाधस्व) तेन वज्रेण समीपात्-आक्रमणसन्निकटात्-पीडय दूरमपगमय (अस्मे) अस्मभ्यम् (यवमत्) अन्नयुक्तं भोजनम् (गोमत्) दुग्धयुक्तं भोज्यं वस्तु (कृधि) सम्पादय तथा (जरित्रे) पुरोहिताय (वाजरत्नां धियम्) अमृतान्नरत्नयुक्तां कर्मप्रवृत्तिं कुरु “धीः कर्मनाम” [निघ० २।१] ॥७॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Indra, ruler of the world, invoked and celebrated by all, by that thunderbolt of power and justice which is lustrous and awful, throw out and keep off from us all social and environmental enemies. Give us abundance of grain, lands and cows, and for the celebrant yajna create an environment of enlightened action productive of the jewel wealth of life.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    राजाने आपल्या तीक्ष्ण शस्त्राने शत्रूला त्रस्त करावे किंवा दूर करावे व प्रजेला दूध इत्यादी मिश्रित भोजन मिळावे अशी व्यवस्था करावी. ॥७॥

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