ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 42/ मन्त्र 2
दोहे॑न॒ गामुप॑ शिक्षा॒ सखा॑यं॒ प्र बो॑धय जरितर्जा॒रमिन्द्र॑म् । कोशं॒ न पू॒र्णं वसु॑ना॒ न्यृ॑ष्ट॒मा च्या॑वय मघ॒देया॑य॒ शूर॑म् ॥
स्वर सहित पद पाठदोहे॑न । गाम् । उप॑ । शि॒क्ष॒ । सखा॑यम् । प्र । बो॒ध॒य॒ । ज॒रि॒तः॒ । जा॒रम् । इन्द्र॑म् । कोश॑म् । न । पू॒र्णम् । वसु॑ना । निऽऋ॑ष्टम् । आ । च्य॒व॒य॒ । म॒घ॒ऽदेया॑य । शूर॑म् ॥
स्वर रहित मन्त्र
दोहेन गामुप शिक्षा सखायं प्र बोधय जरितर्जारमिन्द्रम् । कोशं न पूर्णं वसुना न्यृष्टमा च्यावय मघदेयाय शूरम् ॥
स्वर रहित पद पाठदोहेन । गाम् । उप । शिक्ष । सखायम् । प्र । बोधय । जरितः । जारम् । इन्द्रम् । कोशम् । न । पूर्णम् । वसुना । निऽऋष्टम् । आ । च्यवय । मघऽदेयाय । शूरम् ॥ १०.४२.२
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 42; मन्त्र » 2
अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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अष्टक » 7; अध्याय » 8; वर्ग » 22; मन्त्र » 2
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(जरितः) हे स्तोता ! तू (जारम्) स्तुति करने योग्य (सखायम्-इन्द्रम्) मित्ररूप परमात्मा को (दोहेन गाम्-उप शिक्ष) दूध को निमित्त बनाकर जैसे गौ को भोज्य वस्तु प्रदान करते हैं, ऐसे (प्र बोधय) स्तुति करके अपनी ओर आकर्षित कर (शूरं मघदेयाय) प्राप्त होने के स्वभाववाले परमात्मा को आध्यात्मधन देने के लिए (कोशं न पूर्णं वसुना) जल से पूर्ण मेघ की भाँति अध्यात्मधन से पूर्ण परमात्मा को (न्यृष्टम्-आ च्यावय) स्वनिकट प्राप्त करो ॥२॥
भावार्थ
परमात्मा आनन्दधन से पूर्ण है और मित्र के समान है, स्तुत्य है। उसकी स्तुति करने से वह अपने आध्यात्मिक आनन्दधन से उपासक को तृप्त कर देता है ॥२॥
विषय
गोदोहन व इन्द्रयबोधन
पदार्थ
[१] गत मन्त्र की भावना को अन्य शब्दों में इस प्रकार कहते हैं कि (गां दोहेन) = वेदवाणी रूप गौ को दोहन से, अर्थात् ज्ञान प्राप्ति के द्वारा तू (सखायम्) = उस सनातन मित्र प्रभु को (उपशिक्षा) = समीपता से जाननेवाला हो, ज्ञानी भक्त बनकर तू प्रभु की आत्मा ही बन जा 'ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम् ' । [२] इस ज्ञान के द्वारा (जरितः) = स्तवन करनेवाले जीव ! तू (जारम्) = विषयवासनाओं के जीर्ण करनेवाले (इन्द्रम्) = उस असुरों के संहारक प्रभु को (प्रबोधय) = अपने हृदय में जागरित कर । इस प्ररूप के सूर्य उदय के साथ सब वासनान्धकार विलीन हो जाएगा। [३] ये प्रभु (कोशं न पूर्णम्) = एक पूर्ण कोश के समान हैं, प्रभु की प्राप्ति से तेरी सारी कामनाएँ पूर्ण हो जायेंगी । (वसुना) = निवास के लिये आवश्यक सब धनों से (न्यृष्टम्) = वे प्रभु निश्चय से युक्त हैं। सम्पूर्ण वसु उस प्रभु की ओर ही प्रवाहवाले हैं [ऋष् to flow]। प्रभु को प्राप्त कर लेने पर इनकी प्राप्ति तो हो ही जाती है। इसलिए तू (शूरम्) = सब धनों के विजेता तथा सब बुराइयों के शीर्ण करनेवाले उस प्रभु को (मघदेयाय) = ऐश्वर्यों के देने के लिये (आच्यावय) = अपने अभिमुख कर। प्रभु की प्राप्ति में ही सब धनों की प्राप्ति है।
भावार्थ
भावार्थ - हम ज्ञानधेनु का दोहन करें, प्रभु के प्रकाश को हृदय में प्राप्त करने का प्रयत्न करें ।
विषय
गौ के तुल्य प्रभु की सेवा करो। प्रभु के प्रति सखि-भाव का उपदेश।
भावार्थ
हे (जरितः) स्तुतिकर्त्ता ! विद्वन् ! (दोहेन गाम्) दूध दोहने के लिये जिस प्रकार गौ की सेवा की जाती है उसी प्रकार (दोहेन) अपने अभीष्ट फलों को प्राप्त करने के हेतु (जारम्) विद्वान् (इन्द्रम्) संशयों और कष्टों के उच्छेदन करने वाले, ऐश्वर्यवान् (सखायं) परम मित्र, ज्ञानवान्, समदर्शी प्रभु को (उप शिक्ष) प्राप्त कर, उसकी सेवा कर। (पूर्णं कोशं न) जल से पूर्ण मेघ के समान (वसुना नि-ऋष्टं) ऐश्वर्य से पूर्ण (शूरम्) शूरवीर प्रभु को (मघ-देयाय) उत्तम ऐश्वर्य दान के लिये (आ च्यवय) सब ओर से प्रेरित कर, उसकी ही उपासना कर।
टिप्पणी
‘सखा’—समानं ख्यानं ज्ञानं दर्शनमुपदेशो वा यस्य स सखा।
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिः कृष्णः। इन्द्रो देवता॥ छन्द:–१, ३, ७-९, ११ त्रिष्टुप्। २, ५ निचृत् त्रिष्टुम्। ४ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ६, १० विराट् त्रिष्टुप्॥ एकादशर्चं सूक्तम्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(जरितः) हे स्तोतः ! त्वम् (जारम्) स्तोतव्यम् “जरति अर्चतिकर्मा” [निघ० ३।१४] (सखायम्-इन्द्रम्) सखिभूतं परमात्मानम् (दोहेन गाम्-उपशिक्ष) दोहेन दुग्धनिमित्तेन दुग्धं निमित्तीकृत्य यथा गामुपशिक्षति किमपि भोज्यं वस्तु दत्त्वा तृप्यति तथा (प्रबोधय) स्तुत्वा स्वाभिमुखं कुरु (शूरं मघदेयाय) प्रापणशीलम् “शूरः शवतेर्गतिकर्मणः” [निरु० ३।१३] अध्यात्मधनदानाय (कोशं न पूर्णं वसुना) जलेन पूर्णं मेघमिव “कोशो मेघनाम” [निघ० १।१०] वासकेनाध्यात्मधनेन पूर्णं परमात्मानम् (न्यृष्टम् आ च्यावय) स्वनिकटीभूतं समन्तात् प्रापय ॥२॥
इंग्लिश (1)
Meaning
O celebrant, with constant churning of the mind, refine and energise your voice of adoration, send it in to your friend Indra, the soul within, and, like a treasurehold overflowing with wealth of light, stir it, wake up the brave soul for the gift of excellence and grandeur.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्मा आनंदधनाने पूर्ण आहे व मित्राप्रमाणे स्तुत्य आहे. त्याची स्तुती करण्याने तो आपल्या आध्यात्मिक आनंदधनाने उपासकाला तृप्त करतो. ॥२॥
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