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ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 68 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 68/ मन्त्र 9
    ऋषिः - अयास्यः देवता - बृहस्पतिः छन्दः - त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    सोषाम॑विन्द॒त्स स्व१॒॑: सो अ॒ग्निं सो अ॒र्केण॒ वि ब॑बाधे॒ तमां॑सि । बृह॒स्पति॒र्गोव॑पुषो व॒लस्य॒ निर्म॒ज्जानं॒ न पर्व॑णो जभार ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । उ॒षाम् । अ॒वि॒न्द॒त् । सः । स्वरिति॑ स्वः॑ । सः । अ॒ग्निम् । सः । अ॒र्केण॑ । वि । ब॒बा॒धे॒ । तमां॑सि । बृह॒स्पतिः॑ । गोऽव॑पुषः । व॒लस्य॑ । निः । म॒ज्जान॑म् । न । पर्व॑णः । ज॒भा॒र॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सोषामविन्दत्स स्व१: सो अग्निं सो अर्केण वि बबाधे तमांसि । बृहस्पतिर्गोवपुषो वलस्य निर्मज्जानं न पर्वणो जभार ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः । उषाम् । अविन्दत् । सः । स्व१रिति स्वः । सः । अग्निम् । सः । अर्केण । वि । बबाधे । तमांसि । बृहस्पतिः । गोऽवपुषः । वलस्य । निः । मज्जानम् । न । पर्वणः । जभार ॥ १०.६८.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 68; मन्त्र » 9
    अष्टक » 8; अध्याय » 2; वर्ग » 18; मन्त्र » 3
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    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (सः-उषाम्) वह आत्मा अज्ञान को नष्ट करनेवाली ज्ञानज्योति को प्राप्त करता है (सः-स्वः) वह सुख को प्राप्त करता है (सः-अग्निम्) वह अपने शरीर के नायक परमात्मा को प्राप्त करता है (सः-अर्केण तमांसि विबबाधे) ज्ञानप्रकाशक मन्त्र से अज्ञान अन्धकारों को दूर करता है (गोवपुषः) वाणियों के शरीर अर्थात् वेद से (वलस्य) आवरक अज्ञान के (मज्जानम्) मज्जा के समान प्रभाव को (पर्वणः-निर्जभार) तृप्ति करनेवाले परमात्मज्ञान से नष्ट करता है-क्षीण करता है ॥९॥

    भावार्थ

    आत्मा वेदप्रकाश के द्वारा अपने अन्दर से अज्ञानान्धकार को हटाकर परमात्मा का साक्षात्कार करता है। सब प्रकार के दुःखों से दूर होकर अनन्त सुख को भी प्राप्त करता है ॥९॥

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    विषय

    साधना से ऋतम्भरा के प्रति प्रकाशमय आत्मा का दर्शन, पोरु २ में मज्जा वा सीख के दृष्टान्त से आत्म-विवेचन का उपदेश।

    भावार्थ

    (सः) वह साधक (उषाम्) अपने साधना मार्ग में उषा = प्रभात वेला के तुल्य पापों वा कर्म-बन्धनों को भस्म कर देने वाली ऋतंभरा, ज्योतिष्मती, विशोका प्रज्ञा को (अविन्दत्) प्राप्त करे। (सः स्वः) वह सूर्यवत् तेजोमय आत्मा को प्राप्त करे। (सः अग्निम्) वह अग्नि के तुल्य स्वयं-प्रकाश रूप आत्मा को प्राप्त करे। (सः) वह (अर्केण) मन्त्ररूप ज्ञान के प्रकाश से अन्धकार के तुल्य (तमांसि वि बबाधे) अनेक अन्धकारों को विनष्ट करे। (बृहस्पतिः) बड़े भारी व्रत वा शक्ति का पालन करने वाला विद्वान् (गो-वपुषः) गौ, इन्द्रियों के सहित देहरूप में बने (वलस्य) आत्मा को आवरण करने वाले इस काय-बन्धन के (पर्वणः) एक २ पोरु में से अपने बद्ध आत्मा को (मज्जानं न निः जभार) ऐसे अलग करे जैसे पोरु २ में से मज्जा धातु को वा (वलस्य पर्वणः) फल को घेरने वाली गांठ वा गुठली वा अखरोट में से को मींगी निकाल लेते हैं।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    अयास्य ऋषिः॥ बृहस्पतिर्देवता। छन्दः— १, १२ विराट् त्रिष्टुप्। २, ८—११ त्रिष्टुप्। ३–७ निचृत् त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

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    विषय

    आत्म-विवेचन का उपदेश

    पदार्थ

    (सः) = वह साधक (उषाम्) = अपने साधनामार्ग में, प्रभातवेला के तुल्य पापमल को भस्म कर देनेवाली ऋतम्भरा, ज्योतिष्मती, विशोका प्रज्ञा को (अविन्दत्) = प्राप्त करे । (सः स्वः) = वह सूर्यवत् तेजोमय आत्मा को प्राप्त करे। (सः अग्निम्) = वह अग्नि के तुल्य स्वयं प्रकाश रूप आत्मा को प्राप्त करे । (सः) = वह अर्केण मन्त्ररूप ज्ञान के प्रकाश से अन्धकार के तुल्य (तमांसि वि बबाधे) = अनेक अन्धकारों को विनष्ट करे। (बृहस्पतिः) = बड़े भारी व्रत वा शक्ति का पालन करनेवाला विद्वान् (गो वपुषः) = इन्द्रियों के सहित देहरूप में बने (वलस्य) = आत्मा को आवरण करनेवाले इस काय-बन्धन के (पर्वणः) = एक-एक पोरु में से अपने बद्ध आत्मा को (मज्जानं न निः जभार) = ऐसे अलग करे जैसे पोरु-पोरु में से मज्जा धातु को वा (वलस्य पर्वणः) = फल को घेरनेवाली गाँठ वा गुठली वा अखरोट में से मींगी को निकाल लेते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ-साधक योग से जन्म-मरण के बन्धन से मुक्त होता है ।

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    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (सः-उषाम्) “सुपां सुलुक्” [अष्टा० ७।१।३९] ‘इति सोर्लुक् पुनः सन्धिः’ स आत्माऽज्ञानदग्ध्रीं ज्ञानदीप्तिं लभते (सः-स्वः) स सुखं लभते (सः-अग्निम्) स्वशरीरस्य नायकं परमात्मानं लभते (सः-अर्केण तमांसि विबबाधे) ज्ञानप्रकाशकेन मन्त्रेणान्धकारान् दूरीकरोति (गोवपुषः) वाचां वपुषः-वेदात् (वलस्य) आवरकस्याज्ञानस्य (मज्जानम्) मज्जानमिव प्रभावं (पर्वणः-निर्जभार) तृप्तिकरेण परमात्मज्ञानेन निर्हरति ॥९॥

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    इंग्लिश (1)

    Meaning

    The blessed man realises the light of the dawn of knowledge, the light and bliss of heaven, the vision of refulgent divinity, and with that light wards off the darkness of evil and ignorance. Indeed, Brhaspati raises the man subject to body, senses and mind, now blest with divine vision like a real man, otherwise completely sinking in the depths of darkness and evil.

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    आत्मा वेदप्रकाशाद्वारे आपल्यामध्ये असलेल्या अज्ञानान्ध:काराला दूर करण्यासाठी परमेश्वराचा साक्षात्कार करतो. सर्व प्रकारच्या दु:खांपासून दूर होऊन अनंत सुख प्राप्त करतो. ॥९॥

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