ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 90/ मन्त्र 3
ए॒तावा॑नस्य महि॒मातो॒ ज्यायाँ॑श्च॒ पूरु॑षः । पादो॑ऽस्य॒ विश्वा॑ भू॒तानि॑ त्रि॒पाद॑स्या॒मृतं॑ दि॒वि ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तावा॑न् । अ॒स्य॒ । म॒हि॒मा । अतः॑ । ज्याया॑न् । च॒ । पुरु॑षः । पादः॑ । अ॒स्य॒ । विश्वा॑ । भू॒तानि॑ । त्रि॒ऽपात् । अ॒स्य॒ । अ॒मृत॑म् । दि॒वि ॥
स्वर रहित मन्त्र
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः । पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥
स्वर रहित पद पाठएतावान् । अस्य । महिमा । अतः । ज्यायान् । च । पुरुषः । पादः । अस्य । विश्वा । भूतानि । त्रिऽपात् । अस्य । अमृतम् । दिवि ॥ १०.९०.३
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 90; मन्त्र » 3
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 17; मन्त्र » 3
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(एतावान् महिमा-अस्य) यह जड़-जङ्गम प्रसार या संसार इस परम पुरुष परमात्मा का महिमा-महत्त्वसूचक व्यापार है (अतः-ज्यायान् पूरुषः) इससे बड़ा वह परमात्मा है (विश्वा भूतानि-अस्य पादः) साड़ी जड़-जङ्गम वस्तुएँ इसके पादमात्र हैं (अस्य त्रिपात्) इस परमात्मा का त्रिपाद्रूप (दिवि-अमृतम्) प्रकाशमय स्वरूप में अमृत है ॥३॥
भावार्थ
सारा संसार उसके एकदेश में है, वह परमात्मा इससे महान् है, तथा ये सारी जड़-जङ्गम वस्तुएँ उसके एक पादमात्र हैं, उसका अमृतस्वरूप त्रिपाद तो प्रकाशस्वरूप में है ॥३॥
विषय
यह ब्रह्माण्ड प्रभु की महिमा है
पदार्थ
[१] (अस्य) = इस पुरुष की (एतावान् महिमा) = इतनी महिमा है । सारा ब्रह्माण्ड उनके एकदेश में है और सब 'भूत-भाव्य-अमृत' प्राणियों के वे ईश हैं। इस सारे ब्रह्माण्ड में तथा सब प्राणियों प्रभु की ही महिमा दृष्टिगोचर होती है, सूर्यादि पिण्डों को वे ही ज्योति दे रहे हैं, तो बुद्धिमानों की बुद्धि भी वे ही हैं, और तेजस्वियों का तेज भी वे ही हैं । [२] वे (पुरुषः) = ब्रह्माण्डनगरी में निवास करनेवाले प्रभु (अतः ज्यायान् च) = इस ब्रह्माण्ड से बड़े हैं, यह सारा ब्रह्माण्ड तो उनके एकदेश में ही स्थित है। प्रभु की तुलना में यह विशाल ब्रह्माण्ड दशांगुल मात्र है। (विश्वाभूतानि) = ये सारे प्राणी (अस्य पादः) = इस प्रभु के चतुर्थांश में ही हैं। यह सारा जन्म-मरण चक्र इस चतुर्थांश में ही चल रहा है । (अस्य त्रिपाद्) = इस प्रभु के तीन अंश तो दिवि अपने द्योतनात्मक रूप में (अमृतम्) = अमृत हैं । उन तीन अंशों में यह जीवों के जन्म ग्रहण व शरीर को छोड़नेरूप मृत्यु का व्यवहार नहीं होता, सो उस त्रिपात् को यहाँ 'अमृत' कहा गया है।
भावार्थ
भावार्थ-सारा ब्रह्माण्ड प्रभु की महिमा का प्रतिपादन कर रहा है। वे प्रभु इस ब्रह्माण्ड से बहुत बड़े हैं। यह ब्रह्माण्ड तो प्रभु के एकदेश में ही है।
विषय
सबसे महान् अविनाशी प्रभु।
भावार्थ
(अस्य महिमा एतावान्) इस जगत् का महान् सामर्थ्य इतना है पर (पूरुषः) वह सर्वशक्तिमान् इस जगत् में व्यापक प्रभु (अतः ज्यायान्) इससे कहीं बड़ा है। (विश्वा भूतानि) समस्त उत्पन्न पदार्थ इस के (पादः) एक चरणवत् हैं। (अस्य त्रिपात्) इस के तीन चरण (दिवि) प्रकाशमय स्वरूप में (अमृतं) अविनाशी अमृत रूप हैं।
टिप्पणी
missing
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्नारायणः॥ पुरुषो देवता॥ छन्दः–१–३, ७, १०, १२, निचृदनुष्टुप्। ४–६, ९, १४, १५ अनुष्टुप्। ८, ११ विराडनुष्टुप्। १६ विराट् त्रिष्टुप्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(एतावान्-महिमा-अस्य) एतावान् जडजङ्गमरूपः प्रसारः संसारो वाऽस्य परमपुरुषस्य परमात्मनो महिमा महत्त्वसूचको व्यापारः (अतः-ज्यायान् पूरुषः) अस्माज्ज्येष्ठः स परमात्मा (विश्वा-भूतानि-अस्य पादः) सर्वाणि भूतानि जडजङ्गमानि वस्तूनि खल्वस्य पाद एव (अस्य त्रिपात्-दिवि-अमृतम्) अस्य परमात्मनस्त्रिपाद्रूपं द्योतनात्मके स्वरूपेऽमृतं विद्यते ॥३॥
इंग्लिश (1)
Meaning
So great is the grandeur and glory of It, and still the Purusha is greater. The entire worlds of existence are but one fourth of It. Three parts of Its mystery are in the transcendental heaven of immortality beyond the universe.
मराठी (1)
भावार्थ
संपूर्ण संसार ज्याच्या एकदेशात आहे तो परमात्मा त्याहूनही महान आहे, तसेच या साऱ्या जडजङ्गम वस्तू (संसार) त्याच्या एक पादमात्र आहेत. त्याचा अमृतस्वरूप त्रिपाद तर प्रकाशस्वरूपात आहे. ॥३॥
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