ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 90/ मन्त्र 9
तस्मा॑द्य॒ज्ञात्स॑र्व॒हुत॒ ऋच॒: सामा॑नि जज्ञिरे । छन्दां॑सि जज्ञिरे॒ तस्मा॒द्यजु॒स्तस्मा॑दजायत ॥
स्वर सहित पद पाठतस्मा॑त् । य॒ज्ञात् । स॒र्व॒ऽहुतः॑ । ऋचः॑ । सामा॑नि । ज॒ज्ञि॒रे॒ । छन्दां॑सि । ज॒ज्ञि॒रे॒ । तस्मा॑त् । यजुः॑ । तस्मा॑त् । अ॒जा॒य॒त॒ ॥
स्वर रहित मन्त्र
तस्माद्यज्ञात्सर्वहुत ऋच: सामानि जज्ञिरे । छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत ॥
स्वर रहित पद पाठतस्मात् । यज्ञात् । सर्वऽहुतः । ऋचः । सामानि । जज्ञिरे । छन्दांसि । जज्ञिरे । तस्मात् । यजुः । तस्मात् । अजायत ॥ १०.९०.९
ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 90; मन्त्र » 9
अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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अष्टक » 8; अध्याय » 4; वर्ग » 18; मन्त्र » 4
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भाष्य भाग
हिन्दी (3)
पदार्थ
(तस्मात् सर्वहुतः-यज्ञात्) उस सर्वहुत सङ्गमनीय परमात्मा से (ऋचः सामानि जज्ञिरे) ऋग्वेद के मन्त्र सामवेद के मन्त्र उत्पन्न हुए (तस्मात् छन्दांसि जज्ञिरे) उसी से अथर्ववेद के मन्त्र उत्पन्न हुए (तस्मात्-यजुः अजायत) उस परमात्मा से यजुर्वेद उत्पन्न हुआ ॥९॥
भावार्थ
परमात्मा ने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद उत्पन्न किये हैं ॥९॥
विषय
ऋक्-साम-अथर्व-यजु
पदार्थ
[१] (तस्माद्) = उस (यज्ञात्) = पूज्य (सर्वहुतः) = सब कुछ देनेवाले प्रभु से (ऋचः) = ऋचाएँ (जज्ञिरे) = प्रादुर्भूत हुईं। 'ऋच् स्तुतौ' धातु के अनुसार ये वे मन्त्र हैं जिनमें कि सब पदार्थों के गुणधर्मों का वर्णन है । सब प्रकृति सम्बद्ध विद्याएँ इन ऋचाओं का विषय हैं । [२] उस प्रभु से (सामानि) = साम मन्त्र प्रादुर्भूत हुए। ये वे मन्त्र हैं जो आत्मा की उपासना के साथ सम्बद्ध हैं। इसी से सामवेद का नाम ही उपासना वेद हो गया है। [३] (तस्मात्) = उस प्रभु से (छन्दांसि) = छन्द, अथर्व के मन्त्र प्रादुर्भूत हुए। इन्हें ‘छन्द' इसलिए कहा गया है कि ये मुख्यरूप से 'छद अपवारणे' रोगों व युद्धों का अपवारण करते हैं । [४] (तस्मात्) = उस प्रभु से ही (यजुः) = यज्ञों के प्रतिपादक यजुर्वेद के मन्त्र भी प्रादुर्भूत हुए। इन यज्ञों के द्वारा ही जीव ने इहलोक के अभ्युदय व परलोक के निःश्रेयस्य को सिद्ध करना है ।
भावार्थ
भावार्थ - प्रभु ने सृष्टि के प्रारम्भ में 'ऋग्, यजु, साम व अथर्व' का प्रकाश किया। इनके द्वारा क्रमशः प्रकृतिविद्या, कर्मविज्ञान, उपासना व रोगचिकित्सा युद्धविद्या का उपदेश दिया।
विषय
वेदों का स्रष्टा प्रभु।
भावार्थ
(तस्मात्) उस (यज्ञात्) सर्वोपास्य यज्ञस्वरूप (सर्व हुतः) सर्व जगत्-मय विराट् रूप परम पुरुष को अपने में धारण करने वाले परमेश्वर से (ऋचः) ऋचाएं, (सामानि) सामगण (जज्ञिरे) उत्पन्न हुए। (छन्दांसि जज्ञिरे तस्मात्) उससे छन्द उत्पन्न हुए। (तस्मात्) उससे (यजुः अजायत) यजुर्वेद उत्पन्न हुआ।
टिप्पणी
‘छन्दांसि’—पद से अथर्ववेद का ग्रहण है। (दया०)॥
ऋषि | देवता | छन्द | स्वर
ऋषिर्नारायणः॥ पुरुषो देवता॥ छन्दः–१–३, ७, १०, १२, निचृदनुष्टुप्। ४–६, ९, १४, १५ अनुष्टुप्। ८, ११ विराडनुष्टुप्। १६ विराट् त्रिष्टुप्॥
संस्कृत (1)
पदार्थः
(तस्मात् सर्वहुतः-यज्ञात्) तस्मात् पूर्वोक्तात् सर्वहुतः सङ्गमनीयात् परमात्मनः (ऋचः सामानि-जज्ञिरे) ऋग्वेदमन्त्राः-सामवेदमन्त्राः-उत्पन्नाः-प्रादुर्भूताः। (तस्मात्-छन्दांसि जज्ञिरे) तस्मादेव-अथर्ववेदमन्त्राः प्रादुर्भूताः “यदिदं किञ्च ऋचो यजूंषि सामानि-छन्दांसि [बृह० १।२।५] (तस्मात्-यजुः-अजायत) तस्मात् परमात्मनो यजुर्वेदः प्रादुर्भूतः ॥९॥
इंग्लिश (1)
Meaning
From that Lord of universal yajna were born the Rks and the Samans. From him were born the Chhandas and from him were bom the Yajus.
मराठी (1)
भावार्थ
परमात्म्याने ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्ववेद उत्पन्न केलेले आहेत. ॥९॥
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