Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 98 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 98/ मन्त्र 8
    ऋषिः - देवापिरार्ष्टिषेणः देवता - देवाः छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    यं त्वा॑ दे॒वापि॑: शुशुचा॒नो अ॑ग्न आर्ष्टिषे॒णो म॑नु॒ष्य॑: समी॒धे । विश्वे॑भिर्दे॒वैर॑नुम॒द्यमा॑न॒: प्र प॒र्जन्य॑मीरया वृष्टि॒मन्त॑म् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यम् । त्वा॒ । दे॒वऽआ॑पिः । शु॒शु॒चा॒नः । अ॒ग्ने॒ । आ॒र्ष्टि॒षे॒णः । म॒नु॒ष्यः॑ । स॒म्ऽई॒धे । विश्वे॑भिः । दे॒वैः । अ॒नु॒ऽम॒द्यमा॑नः । प्र । प॒र्जन्य॑म् । ई॒र॒य॒ । वृ॒ष्टि॒ऽमन्त॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यं त्वा देवापि: शुशुचानो अग्न आर्ष्टिषेणो मनुष्य: समीधे । विश्वेभिर्देवैरनुमद्यमान: प्र पर्जन्यमीरया वृष्टिमन्तम् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यम् । त्वा । देवऽआपिः । शुशुचानः । अग्ने । आर्ष्टिषेणः । मनुष्यः । सम्ऽईधे । विश्वेभिः । देवैः । अनुऽमद्यमानः । प्र । पर्जन्यम् । ईरय । वृष्टिऽमन्तम् ॥ १०.९८.८

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 98; मन्त्र » 8
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 13; मन्त्र » 2
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (अग्ने) हे अग्रणायक राजन् ! (यत्) जब (आर्ष्टिषेणः-देवापिः) ज्ञानशक्तिसेनासम्पन्न का रक्षक पुरोहित विद्वान् मननशील (त्वा समीधे) तुझे तेजस्वी करता है-बनाता है (विश्वेभिः) सब (देवैः) वैज्ञानिकों के साथ (अनुमद्यमानः) अनुकूल मति प्राप्त करता हुआ (वृष्टिमन्तम्) वृष्टिवाले (पर्जन्यम्) मेघ को (प्र-ईरय) प्रेरित करता है ॥८॥

    भावार्थ

    ज्ञान और शस्त्रास्त्रशक्तिसम्पन्न विद्वान् पुरोहित राजा को जैसे तेजस्वी बनाता है, ऐसे ही समस्त विद्वानों की सहमति से वैज्ञानिक प्रयोग द्वारा राष्ट्र में जलवृष्टि करनेवाले मेघ को नीचे प्रेरित कर लेता है ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    शुशुचान

    पदार्थ

    [१] हे (अग्ने) = परमात्मन् ! (यं त्वा) = जिन आपको (देवापिः) = देवों को मित्र बनानेवाला, (शुशुचानः) = अपने को पवित्र करनेवाला, (आर्ष्टिषेणः) = 'इन्द्रियों, मन व बुद्धि' की सेना को वासनारूप शत्रुओं के संहार के लिए भेजनेवाला (मनुष्यः) = विचारशील पुरुष (समीधे) = समिद्ध करता है। [२] (सः) = वे आप (विश्वेभिः देवैः) = सब देवों से (अनुमद्यमानः) = प्रसन्न किये जाते हुए (वृष्टिमन्तं पर्जन्यम्) = आनन्द की वर्षा करनेवाले समाधि स्थिति के मेघ को (ईरया) = प्रेरित करिये । उस मेघ से आनन्द की वृष्टि को कराइये। [३] जब मनुष्य 'उत्तम माता, पिता व आचार्य' आदि देवों के सम्पर्क में आता है तो उसका ज्ञान बढ़ता है और उसका जीवन पवित्र होता है । यह वासनाओं का संहार करता हुआ, प्रभु-दर्शन के योग्य बनता है। इन देववृत्ति के पुरुषों से स्तुति किये जाते हुए प्रभु इन्हें आनन्द की वृष्टि का अनुभव कराते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ- देवापि बनकर अपने जीवनों को पवित्र करते हुए हम आनन्द की वृष्टि का अनुभव करें।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    भक्ति-प्रार्थनादि द्वारा उपासित प्रभु का जलद मेघ के तुल्य वर्णन।

    भावार्थ

    हे (अग्ने) प्रकाशस्वरूप ! (यत्) जब (देवजब (देव-आपिः) प्रभु के बन्धु के तुल्य प्रिय, प्रभु तक स्तुति उपासना से प्राप्त होने हारा (शुशुचानः) शुद्ध पवित्र, तेजस्वी होता हुआ (अर्ष्टिषेणः) दर्शन शक्तियों की सेना अर्थात् इन्द्रियगण पर विजयी एवं (मनुष्यः) मननशील होकर (त्वा सम् ईधे) तुझे भली प्रकार प्रदीप्त करता है, तेरे गुणों का प्रकाश करता है, तब तू (विश्वेभिः देवैः अनु-मद्यमानः) समस्त मनुष्यों और उपासकों से प्रति दिन स्तुति किया जाता हुआ, (वृष्टिमन्तं पर्जन्यम् प्र ईरय) वृष्टि वाले मेघ के तुल्य अपने आनन्दमय रसों के दाता रूप को प्रकट कर। मेघवृष्टिपक्ष में—जब देवों के विज्ञान का ज्ञाता वृष्टिज्ञानी पुरुष यज्ञ करे तो सब दिव्य गुणों से पुष्ट होकर अग्नि वा सूर्य जलप्रद मेघ को प्रकट करता है।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्देवापिरार्ष्टिषेणः। देवा देवताः॥ छन्द:- १, ७ भुरिक् त्रिष्टुप्। २, ६, ८, ११, १२ निचृत् त्रिष्टुप्। ३, ५ त्रिष्टुप्। ९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४, १० विराट् त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (अग्ने) हे अग्रणायक राजन् ! (यत्) यदा (आर्ष्टिषेणः-देवापिः) ज्ञानशक्तिसेनासम्पन्नस्य रक्षकः पुरोहितो विद्वान् मननशीलः (त्वा समीधे) त्वां तेजस्विनं करोति (विश्वेभिः-देवैः-अनुमद्यमानः) समस्तवैज्ञानिकविद्वद्भिः-सहानुमोदनं प्राप्नुवन् (वृष्टिमन्तं पर्जन्यं प्र-ईरय) वृष्टिजलपूरितं मेघं प्रेरयति ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, whom Devapi, priest and sagely scholar of the science of rain, shining with ardent adoration among men, lights and serves with sacred fire and prayer, be pleased along with all the divine powers and move the clouds laden with rain showers for humanity.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    ज्ञान व शस्त्रास्त्र शक्तिसंपन्न विद्वान पुरोहित राजाला जसे तेजस्वी बनवितो, तसेच संपूर्ण विद्वानांच्या मान्यतेने वैज्ञानिक प्रयोगाद्वारे राष्ट्रात जलवृष्टी करणाऱ्या मेघाला खाली प्रेरित करतो. ॥८॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top