Loading...
ऋग्वेद मण्डल - 10 के सूक्त 98 के मन्त्र
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12
मण्डल के आधार पर मन्त्र चुनें
अष्टक के आधार पर मन्त्र चुनें
  • ऋग्वेद का मुख्य पृष्ठ
  • ऋग्वेद - मण्डल 10/ सूक्त 98/ मन्त्र 9
    ऋषिः - देवापिरार्ष्टिषेणः देवता - देवाः छन्दः - पादनिचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    त्वां पूर्व॒ ऋष॑यो गी॒र्भिरा॑य॒न्त्वाम॑ध्व॒रेषु॑ पुरुहूत॒ विश्वे॑ । स॒हस्रा॒ण्यधि॑रथान्य॒स्मे आ नो॑ य॒ज्ञं रो॑हिद॒श्वोप॑ याहि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    त्वाम् । पूर्वे॑ । ऋष॑यः । गीः॒ऽभिः । आ॒य॒न् । त्वाम् । अ॒ध्व॒रेषु॑ । पु॒रु॒ऽहू॒त॒ । विश्वे॑ । स॒हस्रा॑णि । अधि॑ऽरथानि । अ॒स्मे इति॑ । आ । नः॒ । य॒ज्ञम् । रि॒हि॒त्ऽअ॒श्वा । उप॑ । या॒हि॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    त्वां पूर्व ऋषयो गीर्भिरायन्त्वामध्वरेषु पुरुहूत विश्वे । सहस्राण्यधिरथान्यस्मे आ नो यज्ञं रोहिदश्वोप याहि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    त्वाम् । पूर्वे । ऋषयः । गीःऽभिः । आयन् । त्वाम् । अध्वरेषु । पुरुऽहूत । विश्वे । सहस्राणि । अधिऽरथानि । अस्मे इति । आ । नः । यज्ञम् । रिहित्ऽअश्वा । उप । याहि ॥ १०.९८.९

    ऋग्वेद - मण्डल » 10; सूक्त » 98; मन्त्र » 9
    अष्टक » 8; अध्याय » 5; वर्ग » 13; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    हिन्दी (3)

    पदार्थ

    (पुरुहूत) हे बहुत प्रकार से आमन्त्रण करने योग्य (रोहिदश्व) तेजोधर्म से व्याप्त परमात्मन् ! (त्वाम्) तुझे (पूर्वे) पुरातन (ऋषयः) वैदिक ऋषि परमर्षि (गीर्भिः) स्तुतियों से (आयन्) प्राप्त हुए हैं (विश्वे) अन्य सब विद्वान् (अध्वरेषु) भिन्न-भिन्न यज्ञों में आमन्त्रित करते हैं (अस्मे) हमारे लिए (सहस्राणि) बहुत (अधिरथानि) रमणीय मोक्षसम्बन्धी धनसाधनों को प्रदान कर (नः) हमारे (यज्ञम्) श्रेष्ठतम कर्म के प्रति (उप-आ-याहि) प्राप्त हो, उसे उपयोगी बना ॥९॥

    भावार्थ

    पुरातन वैदिक महर्षियों ने इसकी स्तुतियों के द्वारा उसे तथा उसके वेदज्ञान को प्राप्त किया, अन्य अर्वाचीन सब ऋषि भी भिन्न-भिन्न यज्ञों में उसे आमन्त्रित करते हैं, वह मोक्षसम्बन्धी रमणीय भोगों को प्रदान करता है ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    जीवन-यज्ञ

    पदार्थ

    [१] हे (पुरुहूत) = बहुतों से पुकारे जानेवाले प्रभो ! [ पुरु = बहुत] पालक व पूरक है पुकार जिसकी ऐसे प्रभो! [पृपालनपूरणयोः] (त्वाम्) = आपको (पूर्वे) = अपना पालन व पूरण करनेवाले (ऋषयः) = ज्ञानी पुरुष (गीर्भिः) = इन ज्ञान की वाणियों के द्वारा (आयन्) = प्राप्त होते हैं। (विश्वे) = इस संसार में प्रविष्ट होनेवाले व्यक्ति (अध्वरेषु) = हिंसारहित यज्ञात्मक कर्मों के होने पर (त्वाम्) = आपको प्राप्त होते हैं। [२] हे प्रभो! आपको प्राप्त होने पर (अस्मे) = हमें (अधिरथानि) = इस शरीररूप रथ में (सहस्राणि) = हजारों ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं। इसलिए हे (रोहिदश्व) = तेजस्वी वृद्धिशील इन्द्रियाश्वों को प्राप्त करानेवाले प्रभो ! आप (नः यज्ञम्) = हमारे जीवनयज्ञ में (उप आयाहि) = समीपता से प्राप्त होइये । आपकी कृपा से ही तो हमारा यह जीवनयज्ञ पूर्ण होना है। 'कर्णाविमौ नासिके चक्षणी मुखम्' इन सात होताओं से ही तो यह जीवनयज्ञ चलता है। इन सातों को आपने ही तेजस्विता प्राप्त करानी है।

    भावार्थ

    भावार्थ-ज्ञान व यज्ञ प्रभु प्राप्ति के साधन हैं। प्रभु के प्राप्त होने पर ही हमारा जीवनयज्ञ निर्विघ्नता से पूर्ण होना है।

    इस भाष्य को एडिट करें

    विषय

    प्रभु से अनेक ऐश्वर्यों की प्राप्ति।

    भावार्थ

    (पूर्वे ऋषयः) पूर्व के ऋषिजन (गीर्भिः त्वाम् आयन्) स्तुति वाणियों से तुझको प्राप्त होते हैं, हे (पुरुहूत) बहुतों से पुकारे जाने वाले, बहुतों में उपाश्रित ! (त्वाम्) तुझको (विश्वे) सब मनुष्य (अध्वरेषु) यज्ञों से स्तुतियों द्वारा उपासना करते हैं। (अस्मे) हमारे (सहस्राणि अधि रथानि) रथों से युक्त सहस्रो ऐश्वर्यों, देह युक्त सहस्रों अनेक सुख व बल आदि प्राप्त हों। हे (रोहिद्-अश्व) लाल, देदीप्त तेज रूप में व्यापने वाले ! तू (नः यज्ञम् उपयाहि) हमारे यज्ञ को प्राप्त हो।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    ऋषिर्देवापिरार्ष्टिषेणः। देवा देवताः॥ छन्द:- १, ७ भुरिक् त्रिष्टुप्। २, ६, ८, ११, १२ निचृत् त्रिष्टुप्। ३, ५ त्रिष्टुप्। ९ पादनिचृत् त्रिष्टुप्। ४, १० विराट् त्रिष्टुप्॥ द्वादशर्चं सूक्तम्॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    संस्कृत (1)

    पदार्थः

    (पुरुहूत रोहिदश्व) हे बहुप्रकारेणामन्त्रणीय तेजोव्यापिन् परमात्मन् ! (त्वां पूर्वे विश्वे ऋषयः-गीर्भिः-आयन्) त्वां प्राक्तना वैदिकर्षयः परमर्षयः स्तुतिभिः प्राप्तवन्तः (विश्वे-अध्वरेषु) अन्ये सर्वे विद्वांसः भिन्नभिन्नयज्ञेषु त्वामाह्वयन्ति (अस्मे) अस्मभ्यं (सहस्राणि-अधिरथानि) बहूनि रमणीयं मोक्षमधिकृत्य धनानि साधनानि प्रयच्छेति शेषः (नः-यज्ञम्-उपायाहि) अस्माकं श्रेष्ठतमं कर्म प्रति खलूपागच्छोपयुक्तं कुरु ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें

    इंग्लिश (1)

    Meaning

    Agni, universally invoked and adored yajnic power and showers of rain, saints and seers of the world of all time approached you with songs of adoration and prayer in yajna. O lord of red flames and thunderous voice, pray visit our yajna and grant us a thousandfold gifts overflowing our chariots of life.

    इस भाष्य को एडिट करें

    मराठी (1)

    भावार्थ

    प्राचीन वैदिक महर्षींनी स्तुतीद्वारे त्या परमेश्वराला वेदज्ञानाद्वारे प्राप्त केले. इतर अर्वाचीन सर्व ऋषीही भिन्न-भिन्न यज्ञांत त्याला आमंत्रित करतात. तो मोक्षाचा रमणीय भोग प्रदान करतो. ॥९॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top