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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 19/ मन्त्र 3
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः

    स माहि॑न॒ इन्द्रो॒ अर्णो॑ अ॒पां प्रैर॑यदहि॒हाच्छा॑ समु॒द्रम्। अज॑नय॒त्सूर्यं॑ वि॒दद्गा अ॒क्तुनाह्नां॑ व॒युना॑नि साधत्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सः । माहि॑नः । इन्द्रः॑ । अर्णः॑ । अ॒पाम् । प्र । ऐ॒र॒य॒त् । अ॒हि॒ऽहा । अच्छ॑ । स॒मु॒द्रम् । अज॑नयत् । सूर्य॑म् । वि॒दत् । गाः । अ॒क्तुना॑ । अह्ना॑म् । व॒युना॑नि । सा॒ध॒त् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स माहिन इन्द्रो अर्णो अपां प्रैरयदहिहाच्छा समुद्रम्। अजनयत्सूर्यं विदद्गा अक्तुनाह्नां वयुनानि साधत्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सः। माहिनः। इन्द्रः। अर्णः। अपाम्। प्र। ऐरयत्। अहिऽहा। अच्छ। समुद्रम्। अजनयत्। सूर्यम्। विदत्। गाः। अक्तुना। अह्नाम्। वयुनानि। साधत्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 19; मन्त्र » 3
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 23; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनः सूर्यविषयमाह।

    अन्वयः

    हे मनुष्या यथा स माहिनाऽहिहेन्द्रोऽपामर्णोऽच्छ प्रैरयत्। समुद्रं सूर्यमजनयदक्तुनाऽह्नां गा विदद्वयुनानि साधत्तथा यूयमप्याचरत ॥३॥

    पदार्थः

    (सः) (माहिनः) (महान्) (इन्द्रः) विद्युत् (अर्णः) जलम् (अपाम्) अन्तरिक्षस्य मध्ये (प्र) (ऐरयत्) (अहिहा) मेघस्य हन्ता (अच्छ) यथाक्रमम्। अत्र निपातस्य चेति दीर्घः (समुद्रम्) सागरम् (अजनयत्) जनयति (सूर्यम्) सवितृमण्डलम् (विदत्) प्राप्नोति (गाः) पृथिवीः (अक्तुना) रात्र्या (अह्नाम्) दिनानाम् (वयुनानि) प्रज्ञानानि (साधत्) साध्नुयात् ॥३॥

    भावार्थः

    ये मनुष्या विद्युद्वद्वेगाऽऽकर्षणयुक्ताः शत्रुहन्तारो विद्यादिशुभगुणप्रचारका अन्यायाऽन्धकारनाशका जगतः सुखं साध्नुवन्ति ते सर्वत्र पूज्यन्ते ॥३॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर सूर्य विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे मनुष्यो जैसे (सः) वह (माहिनः) बड़ा (अहिहा) मेघ का हननेवाला (इन्द्रः) बिजली रूप अग्नि (अपाम्) अन्तरिक्ष के बीच (अर्णः) जलको (अच्छ) (प्रैरयत्) यथाक्रम से प्रेरणा देता है (समुद्रम्) समुद्र को और (सूर्यम्) सूर्यमण्डल को (अजनयत्) उत्पन्न करता है (अक्तुना) रात्रि के साथ (अह्नाम्) दिनों के सम्बन्ध करनेवाली (गाः) पृथिवियों को (विदत्) प्राप्त होता और (वयुनानि) उत्तम ज्ञानों को (साधत्) सिद्ध करता वैसे तुम लोग भी आचरण करो ॥३॥

    भावार्थ

    जो मनुष्य बिजली के समान वेग और आकर्षणयुक्त शत्रुओं के हनने और विद्यादि शुभगुणों को प्रचार करनेवाले हैं, अन्याय और अन्धकार का विनाश करनेवाले संसार का सुख सिद्ध करते हैं, वे सर्वत्र पूज्य होते हैं ॥३॥

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    विषय

    माहिनः इन्द्रः

    पदार्थ

    १. (सः) = वह (माहिन:) = पूजा की वृत्तिवाला (इन्द्रः) = जितेन्द्रिय पुरुष (अहिहा) = वासनारूप अहि का हनन करनेवाला होता हुआ (अपाम् अर्णः) = ज्ञान जलों के प्रवाह को (समुद्रम् अच्छा) = [स मुद्] उस आनन्दमय प्रभु की ओर (प्रैरयत्) = प्रेरित करता है, अर्थात् जब हम प्रभुपूजन करते हैं तो वासना विनष्ट होती है और हमारा ज्ञानप्रवाह हमें आनन्दमय प्रभु की ओर ले चलनेवाला होता है। २. यह अहिहा इन्द्र अहि का हनन करने पर (सूर्यम् अजनयत्) = ज्ञानसूर्य को प्रादुर्भूत करता है। बादल के हटने पर जैसे सूर्य चमक उठता है, इसी प्रकार वासना के विनष्ट होने पर ज्ञान के सूर्य का प्रादुर्भाव हो जाता है। यह (अहिहा गा) = ज्ञान की वाणियों को (विदद्) = प्राप्त करता है और (अक्तुना) = ज्ञानरश्मियों द्वारा (अह्नाम्) = दिनों के वयुनानि प्रज्ञानों व कर्मों को (साधत्) = सिद्ध करता है, अर्थात् जहाँ दैनिक कार्यक्रम को ठीक प्रकार निभाता है वहाँ प्रतिदिन स्वाध्याय द्वारा ज्ञान को भी बढ़ाने का प्रयत्न करता है।

    भावार्थ

    भावार्थ - वासनारूप आवरण के हटते ही ज्ञान के सूर्य का उदय होता है और हमारे दैनिक प्रज्ञान व कर्म ठीक प्रकार चलते हैं ।

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    विषय

    जिज्ञासु का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    जिस प्रकार (इन्द्रः) सूर्य, विद्युत्, या वायु, ( अहिहा ) मेघ पर आघात करनेवाला होकर (अपां अर्णः) अन्तरिक्ष के जल के ( समुद्रम् अच्छ प्रेरयत् ) समुद्र की तरफ नीचे फेंकता है और (अपां अर्णः समुद्रम् अच्छ प्रेरयत् ) जलों के सागर के जल को समुद्र अर्थात् आकाश की ओर ले जाता है वही विद्युत् या वायु मेघ को छिन्न भिन्न करके ( सूर्यं अजनयत् ) सूर्य को प्रकाशित करता और ( गाः विदत् ) किरणों और भूमियों को प्राप्त कर ( अक्तुना ) प्रकाश से ( अह्नः वयुनानि साधत् ) दिनों के सब कामों को करवाता है। उसी प्रकार ( सः ) वह परमेश्वर ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान् ( माहिनः ) गुणों और कर्मों में महान्, होकर ही ( अहिहा ) अव्यक्त तम, प्रलय दशा में अविकृत प्रकृति तत्व में व्याप्त होकर ( इह ) इस लोक में ( समुद्रम् अच्छ ) समस्त आकाश में ( अपां ) प्रकृति के सूक्ष्म परमाणुओं के बीच में ( अर्णः ) विशेष वेग या स्पन्दन को (प्र ईरयत्) अच्छी प्रकार उत्पन्न करता है । तब वह ( समुद्रम् ) महान् आकाश को और ( सूर्यम् ) सूर्य या प्रकाश को ( अजनयत् ) प्रकट करता है। और ( अक्तुना ) सब पदार्थों को प्रकट करने वाले तेजस्तत्व से ( गाः विदत् ) सब किरणों को प्रदान करता, (अह्नां) दिनों और दिनों के समान न नाश होकर भी पुनः उत्पन्न और अस्त होनेवाले जीवों के ज्ञानों और कर्मों को ( साधत ) साधता है । ( २ ) ( इन्द्रः ) ऐश्वर्यवान् राजा महाशक्तिशाली होकर ( अपां ) आप्त प्रजाजन के ( अर्णः ) जल प्रवाह के समान बल को संचालित करे, समुद्र और सूर्य के समान गम्भीर सेनापति को प्रकट करे, ( गाः ) भूमियों को प्राप्त करे । रात्रि के समय भी दिनों के समान सब कर्म और विज्ञान कार्य साधे । दिन रात समान रूप से यत्नवान् रहे ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, २, ६, ८ विराट् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् । ३ पङ्क्तिः । ५, ७ भुरिक् पङ्क्तिः । ५ निचृत् पङ्क्तिः ॥ नवर्चं सूक्तम ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जी माणसे विद्युतप्रमाणे वेग व आकर्षणयुक्त असतात, शत्रूंचे हनन व विद्या इत्यादी शुभ गुणांचा प्रसार करतात, अन्याय अंधकाराचा नाश करतात व संसाराचे सुख सिद्ध करतात, ती सर्वत्र पूज्य ठरतात. ॥ ३ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    That great Indra, lord omnipotent, activates the waters in the midst of space and he, breaker of darkness into light and life, then creates the oceans. He creates the solar system, reveals the stars, planets and satellites, shows the days by nights and directs the daily round of world’s activities.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The functions and qualities of the Sun are elaborated.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O men ! the great sun activates the energy/power and thus brings water on earth through the firmament by smashing the clouds. It also creates oceans and a solar orbit. It brings days and nights on the earth regularly, and thus acquires new dimensions of knowledge about the sun, You should also emulate and act on it.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who are engaged in the propagation of the the noble virtues and kill the wicked and jolt the enemies quickly like lightning, and those who remove injustice and darkness, they bring happiness unto the world and are respected everywhere.

    Foot Notes

    (माहिन:) महान्। = The great. (अर्ण:) जलम् = Water. (अपाम् ) अन्तरिक्षस्य मध्ये। = Through the firmament. (अहिहा) मेघस्य हन्ता = Smasher of the clouds. (अच्छ) यथाक्रमम् । = In a regular way. (सूर्यम् ) सवितृमण्डलम् । = Solar system or orbit. (गा :) पृथिवीः = Worlds. (अक्तुना) रात्न्या। By = night (साधत्) साध्नुयात् । = Accomplisher.

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