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ऋग्वेद मण्डल - 2 के सूक्त 19 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 2/ सूक्त 19/ मन्त्र 8
    ऋषिः - गृत्समदः शौनकः देवता - इन्द्र: छन्दः - विराट्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    ए॒वा ते॑ गृत्सम॒दाः शू॑र॒ मन्मा॑व॒स्यवो॒ न व॒युना॑नि तक्षुः। ब्र॒ह्म॒ण्यन्त॑ इन्द्र ते॒ नवी॑य॒ इष॒मूर्जं॑ सुक्षि॒तिं सु॒म्नम॑श्युः॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ए॒व । ते॒ । गृ॒त्स॒ऽम॒दाः । शू॒र॒ । मन्म॑ । अ॒व॒स्यवः॑ । न । व॒युना॑नि । त॒क्षुः॒ । ब्र॒ह्म॒ण्यन्तः॑ । इ॒न्द्र॒ । ते॒ । नवी॑यः । इष॑म् । ऊर्ज॑म् । सु॒ऽक्षि॒तिम् । सु॒म्नम् । अ॒श्युः॒ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    एवा ते गृत्समदाः शूर मन्मावस्यवो न वयुनानि तक्षुः। ब्रह्मण्यन्त इन्द्र ते नवीय इषमूर्जं सुक्षितिं सुम्नमश्युः॥

    स्वर रहित पद पाठ

    एव। ते। गृत्सऽमदाः। शूर। मन्म। अवस्यवः। न। वयुनानि। तक्षुः। ब्रह्मण्यन्तः। इन्द्र। ते। नवीयः। इषम्। ऊर्जम्। सुऽक्षितिम्। सुम्नम्। अश्युः॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 2; सूक्त » 19; मन्त्र » 8
    अष्टक » 2; अध्याय » 6; वर्ग » 24; मन्त्र » 3
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    हे शूरेन्द्र ये गृत्समदा ब्रह्मण्यन्तो जनास्ते मन्मावस्यवो न वयुनानि तक्षुस्त एव ते तव नवीय इषमूर्जं सुक्षितिं सुम्नं चाश्युः ॥८॥

    पदार्थः

    (एव) अत्रापि दीर्घः (ते) तव (गृत्समदाः) गृत्सोऽभिकाङ्क्षितो मद आनन्दो येषान्ते (शूर) (मन्म) मन्तव्यम् (अवस्यवः) आत्मनो रक्षणमिच्छवः (न) इव (वयुनानि) प्रज्ञानानि (तक्षुः) विस्तृणीयुः (ब्रह्मण्यन्तः) ब्रह्म धनं कामयन्तः (इन्द्र) विद्वन् (ते) तव (नवीयः) नवीनम् (इषम्) अन्नम् (ऊर्जम्) पराक्रमम् (सुक्षितिम्) शोभनां भूमिम् (सुम्नम्) सुखम् (अश्युः) प्राप्नुयुः ॥८॥

    भावार्थः

    ये विदुषां सुशिक्षया विज्ञानवन्तो भवेयुस्तेऽनेकविधं सुखमश्नुयुः ॥८॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है।

    पदार्थ

    हे (शूर) शूर (इन्द्र) विद्वान् जो (गृत्समदाः) अभीष्ट आनन्दवाले (ब्रह्मण्यन्तः) धन की कामना करते हुए जन (ते) आपके (मन्म) मन्तव्य को और (अवस्यवः) अपने को रक्षा चाहते हुए के (न) समान (वयुनानि) उत्तम ज्ञानों को (तक्षुः) विस्तारें वे (एव) ही (ते) आपके (नवीयः) नवीन (इषम्) अन्न और (ऊर्जम्) पराक्रम को तथा (सुक्षितिम्) सुन्दर भूमि को और (सुम्नम्) सुख को (अश्युः) प्राप्त हों ॥८॥

    भावार्थ

    जो विद्वानों की उत्तम शिक्षा से विज्ञानवान् हों, वे अनेकविध सुख को प्राप्त हों ॥८॥

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    विषय

    इष-ऊर्ज-सुक्षिति-सुम्न

    पदार्थ

    १. हे (शूर) = शत्रुओं का हिंसन करनेवाले प्रभो ! (गृत्समदाः) = [गृणाति, माद्यति] आपका स्तवन करनेवाले व प्रसन्न रहनेवाले व्यक्ति (एवा) = इस प्रकार (ते) = आपके (मन्म) = स्तोत्र को (तक्षुः) = बनाते हैं- आपकी स्तुति करते हैं। उसी प्रकार (न) = जैसे कि (अवस्यवः) = रक्षण की कामनावाले (वयुनानि) = प्रज्ञानों व कर्मों को सम्पादित करते हैं, प्रज्ञानपूर्वक किये गये कर्मों से ही रक्षण होता है। २. (ब्रह्मण्यन्तः) = ज्ञान व स्तोत्रों की कामना करते हुए लोग हे इन्द्र हे प्रभो ! (ते) = आपके-आपसे दिये गये (नवीयः इषम्) = प्रशंसनीय [नु स्तुतौ] अन्नों को, (ऊर्जम्) = बल व प्राणशक्ति को, (सुक्षितिम्) = उत्तम निवास को तथा (सुम्नम्) = सुख को (अश्युः) = प्राप्त करते हैं ।

    भावार्थ

    भावार्थ— उपासक को प्रभु उत्कृष्ट अन्न, बल, उत्तमनिवास व सुख प्राप्त कराते हैं, अर्थात् उपासना से ऐहिक अभ्युदय भी प्राप्त होता है ।

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    विषय

    जिज्ञासु का कर्त्तव्य ।

    भावार्थ

    ( अवस्यवः वयुनानि न ) गमन करने वाले जिस प्रकार मार्गों को बना लेते हैं और जिस प्रकार ( अवस्यवः ) अन्यों को ज्ञान देने की इच्छा करने वाले पुरुष ( वयुनानि ) नाना ज्ञानों को प्रकट करते हैं उसी प्रकार हे ( शूर ) शूर ! शूर पुरुष के समान सब संकटों से बचाने हारे ! प्रभो ! ( अवस्यवः ) ज्ञान और शरण के इच्छुक, ( गृत्समदाः ) आनन्द को चाहने वाले और सब की आकांक्षा के पात्र परम मेधावी परमेश्वर ही में हर्ष प्राप्त करने वाले योगि जन ( एव ) तेरे ही मननीय, ज्ञानमयस्वरूप और ( वयुनानि ) नाना ज्ञानों और कर्मों, उत्तम आचरणों को ( तक्षुः ) स्वयं आचरण करते, और उसका अन्यों को उपदेश करते हैं। वे ( ब्रह्मण्यन्तः ) परम ब्रह्म ज्ञान या साक्षात्कार की अभिलाषा करते हुए हे ( इन्द्र ) परमेश्वर ! ( ते ) तेरी ( नवीयः ) नये से नये अनुपम ( इषम् ) प्रेरणा, ( ऊर्जं ) सर्वोत्तम बल और ( सुक्षितिम् ) तेरे में उत्तम निवास और तेरे ( सुम्नम् ) परम सुख को ( अश्युः ) प्राप्त करते हैं ।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    गृत्समद ऋषिः ॥ इन्द्रो देवता ॥ छन्दः– १, २, ६, ८ विराट् त्रिष्टुप् । ९ त्रिष्टुप् । ३ पङ्क्तिः । ५, ७ भुरिक् पङ्क्तिः । ५ निचृत् पङ्क्तिः ॥ नवर्चं सूक्तम ॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे विद्वानांद्वारे उत्तम शिक्षण घेऊन विज्ञानवान होतात ते अनेक प्रकारे सुख प्राप्त करतात. ॥ ८ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    O lord of light and divine action, thus do your admirers and celebrants in ecstasy, like children seeking protection of the parent, sing in praise of your thought and marvellous actions. And thus may they, praying and working for the gifts of Divinity, attain the blessings of your eternal and ever new food and energy, peaceable haven and home, and joy and comfort in the shade of Divinity.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The subject of learned person still moves on.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    O learned person ! those who are desirous of wealth, and seek delight, they always extend your imparted knowledge, in order to have their security. Such people should always receive the new crops of food grains, chivalry, nice land and happiness from you.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Those who get good education from the learned people, they get happiness in more than one ways.

    Foot Notes

    (गृत्समदाः) गृत्सोऽमिकाङ्क्षितोमद आनन्दो येषान्ते। = Drawing abundance of happiness. (ब्रह्मण्यन्तः) ब्रह्म धनं कामयन्तः = Desirous of wealth. (मन्म) मन्तव्यम् । = Objectives. (अवस्यवः) आत्मनो रक्षणमिच्छवः। = Seeker of the self-protection. (सुन्मम् ) सुखम् । = Happiness. (अश्य:) प्राप्नुयुः | = Would get.

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