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ऋग्वेद मण्डल - 3 के सूक्त 32 के मन्त्र
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  • ऋग्वेद - मण्डल 3/ सूक्त 32/ मन्त्र 15
    ऋषिः - गोपवन आत्रेयः सप्तवध्रिर्वा देवता - इन्द्र: छन्दः - निचृत्त्रिष्टुप् स्वरः - धैवतः

    आपू॑र्णो अस्य क॒लशः॒ स्वाहा॒ सेक्ते॑व॒ कोशं॑ सिसिचे॒ पिब॑ध्यै। समु॑ प्रि॒या आव॑वृत्र॒न्मदा॑य प्रदक्षि॒णिद॒भि सोमा॑स॒ इन्द्र॑म्॥

    स्वर सहित पद पाठ

    आपू॑र्णः । अ॒स्य॒ । क॒लशः॑ । स्वाहा॑ । सेक्ता॑ऽइव । कोश॑म् । सि॒सि॒चे॒ । पिब॑ध्यै । सम् । ऊँ॒ इति॑ । प्रि॒याः । आ । अ॒व॒वृ॒त्र॒म् । मदा॑य । प्र॒ऽद॒क्षि॒णित् । अ॒भि । सोमा॑सः । इन्द्र॑म् ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    आपूर्णो अस्य कलशः स्वाहा सेक्तेव कोशं सिसिचे पिबध्यै। समु प्रिया आववृत्रन्मदाय प्रदक्षिणिदभि सोमास इन्द्रम्॥

    स्वर रहित पद पाठ

    आपूर्णः। अस्य। कलशः। स्वाहा। सेक्ताऽइव। कोशम्। सिसिचे। पिबध्यै। सम्। ऊँ इति। प्रियाः। आ। अववृत्रन्। मदाय। प्रऽदक्षिणित्। अभि। सोमासः। इन्द्रम्॥

    ऋग्वेद - मण्डल » 3; सूक्त » 32; मन्त्र » 15
    अष्टक » 3; अध्याय » 2; वर्ग » 11; मन्त्र » 5
    Acknowledgment

    संस्कृत (1)

    विषयः

    पुनस्तमेव विषयमाह।

    अन्वयः

    ये सोमासः प्रिया मदायेन्द्रमभ्याववृत्रन् त उ अस्य जगतो मध्ये पिबध्यै सेक्तेव कोशं संसिसिचे स्वाहा आपूर्णः कलशः प्रदक्षिणिदापूर्णः कलश इव सुखकरो जायते ॥१५॥

    पदार्थः

    (आपूर्णः) समन्तात् पूरितः (अस्य) (कलशः) कुम्भः (स्वाहा) सत्यया क्रियया (सेक्तेव) पूरकवत् (कोशम्) मेघम्। कोश इति मेघना०। निघं० १। १०। (सिसिचे) सिञ्चति (पिबध्यै) पातुम् (सम्) (उ) (प्रियाः) कमनीयाः (आ) समन्तात् (अववृत्रन्) आवृण्वन्ति (मदाय) आनन्दाय (प्रदक्षिणित्) यः प्रदक्षिणमेति सः। अत्र शकन्ध्वादेराकृतिगणत्वात् पररूपमेकादेशः। (अभि) आभिमुख्ये (सोमासः) ऐश्वर्य्ययुक्ताः (इन्द्रम्) सूर्य्यम् ॥१५॥

    भावार्थः

    ये धनादिकं प्राप्यान्येभ्यो यथा सुपात्रं सद्व्यवहारं च विज्ञाय ददति ते सेक्ता कुम्भमिव सर्वान्पूर्णसुखान् कुर्वन्ति ॥१५॥

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    हिन्दी (3)

    विषय

    फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

    पदार्थ

    जो (सोमासः) ऐश्वर्य्य से युक्त (प्रियाः) कामना करने योग्य (मदाय) आनन्द के लिये (इन्द्रम्) सूर्य्य को (अभि) सन्मुख (आ) चारों ओर से (अववृत्रन्) घेरते हैं वे (उ) (अस्य) इस संसार के मध्य में (पिबध्यै) पान करने के लिये (सेक्तेव) पूर्ण करनेवाले के तुल्य (कोशम्) मेघ को (सम्) (सिसिचे) सींचते हैं (स्वाहा) सत्य क्रिया से (आपूर्णः) चारों ओर से भरा हुआ (कलशः) घड़ा (प्रदक्षिणित्) दाहिनी ओर चलनेवाले पूर्ण घड़े के तुल्य सुखकारक होता है ॥१५॥

    भावार्थ

    जो लोग धन आदि को प्राप्त हो के औरों के लिये सुपात्र और उत्तम व्यवहार करनेवाले को जानके देते हैं, वे लोग सींचनेवाला घड़े को जैसे वैसे सम्पूर्ण जनों को पूर्ण सुखयुक्त करते हैं ॥१५॥

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    विषय

    कलश की आपूर्णता

    पदार्थ

    [१] गतमन्त्र में वर्णित यौवन में ही प्रभु की उपासना में प्रवृत्त होनेवाले (अस्य) = इसका (कलश:) = यह शरीररूप कलश (आपूर्ण:) = सोम से पूर्ण होता है। इसके रेतः कण इस शरीर-कलश में ही सुरक्षित रहते हैं। इनके रक्षण से (स्वाहा) = यह व्यक्ति उत्तम त्यागवाला होता है अपने जीवन को ही यह प्राजापत्य यज्ञ में आहुत कर देता है । (इव) = जैसे एक (सेक्ता) = सेचन करनेवाला भूमि का सेचन करता है, उसी प्रकार मैं कोशे इस शरीरकोष को सुरक्षित रेतः कणों से (सिसिचे) = सिक्त करता हूँ। इस प्रकार यह सोम (पिबध्यै) = मेरे पान के लिए होता है। इसे मैं शरीर में ही पीने का प्रयत्न करता हूँ। [२] (उ) = निश्चय से (प्रिया:) = प्रीणित करनेवाले ये (सोमासः) = सोमकण (इन्द्रं अभि) = इन्द्र की ओर (प्रदक्षिणित्) = प्रकृष्ट दाक्षिण्य [सरलता] के साथ (सं अववृत्तन्) = सम्यक् प्राप्त होते हैं और ये (मदाय) = उस इन्द्र को - जितेन्द्रिय पुरुष को हर्षित करनेवाले होते हैं।

    भावार्थ

    भावार्थ- जितेन्द्रिय पुरुष अपने शरीर कलश को सोमकणों से पूर्ण करने का प्रयत्न करता है । वीर्य को शरीर में ही पीने का प्रयत्न करता है। यह सुरक्षित वीर्य उसके आनन्द का कारण बनता है।

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    विषय

    कुशलवत् राष्ट्र को पूर्ण समृद्ध करने का उपदेश।

    भावार्थ

    (सेक्ता इव) सेचन करने वाला जिस प्रकार (पिबध्यै) वृक्षादि को पानी पिलाने के लिये (कोशं सिसिचे) मेघ को वरसाता है और जिस प्रकार (कलशः आ पूर्णः) कलसा खूब भरा हुआ और दूसरा (सेक्ता) जल धारा सेचन करने वाला पुरुष (पिबध्यै) दूसरे को जलपान कराने के लिये (कोशं सिसिचे) जल प्रदान करता है उसी प्रकार (अस्य) इस प्रजाजन या राजा का (कलशः) कलश, राष्ट्र (स्वाहा) सुखजनक कर आदि प्रदान से उत्तम ऐश्वर्यों से (आपूर्णः) खूब भरा हुआ हो। वह (पिबध्यै) स्वयं और प्रजाजन को पालन और उपभोग करने के लिये (सेक्ता इव) मेघ या सूर्य के समान ही (कोशं सिसिचे) अपने खज़ाने को प्रजा के उपकारार्थ लगादे। अथवा प्रजाजन भी (सेक्ता) अभिषेक करने वाला होकर (कोशं) खज़ाने के समान प्रजा पालक पुरुष को ही (पिबध्यै) अपनी रक्षार्थ (सिसिचे) अभिषेक करे। और (प्रियाः) उसके प्रिय (सोमासः) ऐश्वर्यवान्, अन्य अभिषिक्त पदाधिकारी जन (इन्द्रम्) इस शत्रुहन्ता पुरुष के (अभि प्रदक्षिणित) चारों ओर घिरकर (मदाय) अपने हर्ष और तृप्ति या स्तुति के लिये (उ) ही (सम् आववृत्रन्) अच्छी प्रकार वेर लें। इसी प्रकार (इन्द्रम् सोमासः) ऐश्वर्यवान् राष्ट्र को जलयुक्त मेघवत् अभिषिक्त जन तृप्ति लाभ के लिये घेरकर सुरक्षित रक्खें।

    टिप्पणी

    missing

    ऋषि | देवता | छन्द | स्वर

    विश्वामित्र ऋषिः॥ इन्द्रो देवता॥ छन्दः–१–३, ७–६, १७ त्रिष्टुप्। ११–१५ निचृत्त्रिष्टुप्। १६ विराट् त्रिष्टुप्। ४, १० भुरिक् पङ्क्तिः। ५ निचृत् पङ्क्तिः। ६ विराट् पङ्क्तिः। सप्तदशर्चं सूक्तम्॥

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    मराठी (1)

    भावार्थ

    जे लोक सुपात्र व उत्तम व्यवहार करणाऱ्यांना जाणून इतरांना धन देतात ते सिंचन करणाऱ्या घटाप्रमाणे सर्वांना सुखयुक्त करतात. ॥ १५ ॥

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    इंग्लिश (2)

    Meaning

    Full to the brim is the cup of life for Indra to drink, filled with the best of thought, perception and action, like the dense cloud of vapours poured in by the sun. Dear friends and admirers, lovers of the soma-joy of life, come close and stand round Indra in homage to join and celebrate the Lord’s gift of life.

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    Subject [विषय - स्वामी दयानन्द]

    The duties for the common men are told.

    Translation [अन्वय - स्वामी दयानन्द]

    Those who encircle the sun from all sides in order to achieve prosperous and desirable happiness, they irrigate (fill with water) the ideal clouds for seeking happiness in the world. Like a well-filled pitcher, they make the human beings completely happy.

    Commentator's Notes [पदार्थ - स्वामी दयानन्द]

    N/A

    Purport [भावार्थ - स्वामी दयानन्द]

    Having achieved wealth and other things, those who give them away deliberately to others who deserve them, they also make others fully happy like a man fills a pitcher with water.

    Foot Notes

    (कोशम् ) मेघम् | कोश इति मेघनाम । (N.G. 1, 10) = Cloud. (सोमासः) ऐश्वर्य्ययुक्ताः। = Endowed with wealth.

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